REWA : जानिए शहीदों के परिवार किस तरह से करते है चुनौतियों का सामना, सरकार घोषणाएं तो कर देती है लेकिन उन पर अमल नहीं करती

 

REWA : जानिए शहीदों के परिवार किस तरह से करते है चुनौतियों का सामना, सरकार घोषणाएं तो कर देती है लेकिन उन पर अमल नहीं करती

रीवा। देश के सीमाओं की रक्षा हो या अन्य अवसर हमारे जवानों ने डटकर मुकाबला किया। देश की आन-बान-शान को कोई आंच नहीं आए इसलिए अंतिम सांस तक मुकाबला करते हुए शहीद हो गए। इनके पीछे पूरा परिवार अनाथ हो गया। ऐसे में सरकारें समय-समय पर घोषणाएं कर शहीदों के परिवार की जिम्मेदारी लेने की बातें करती रही हैं। शहादत के समय पर घोषणाएं कर भावनात्मक रूप से सम्मान देने की बातें होती हैं लेकिन कई परिवार ऐसे भी हैं जो वर्षों से अपने जीवनयापन के लिए सरकारी दफ्तरों के दरवाजे पर दस्तक देकर गुहार लगा रहे हैं। अधिकांश सैनिकों के परिवार में कमाने वाले वह इकलौते रहे हैं लेकिन उनकी शहादत के बाद परिवार अनाथ की तरह हो गया है। जीवनयापन का सहारा सरकार से मिलने वाली मदद पर निर्भर है।

अब तक शहीद हुए सैनिक

रीवा जिले के वीर सपूतों ने जब भी समय आया है देश के लिए कुर्बानी दी है। अब तक शहीद होने वालों में प्रमुख रूप से एलएन तिवारी, ओझा पुरवा गांव के जो इंडो-चाइना वार में 18 नवंबर 1962 को शहीद हुए थे। इसी तरह इंडो-पाक वार में खड्डा के रामचरण 20 सितंबर 1965 को शहीद हुए। पाकिस्तान के साथ ही 1971 में युद्ध करते हुए पुरवा के रामखेलावन, खैर के जयपाल सिंह शहीद हुए। 1988 के आपरेशन पवन में गाडऱपुरवा के पीके गौतम, 1989 में गाजीपुर(मऊगंज) के बंसतलाल, भगदेवा के आरएन मिश्रा, आपरेशन मेघदूत में 1989 में गहिरा के रामभुवन पटेल, 1990 में मौहरिया के वीपी चतुर्वेदी, 1992 में तोमरपुरवा के अवधेश सिंह तोमर, आपरेशन रक्षक में 1992 में लौआ के सुखेन्द्र सिंह बघेल, आपरेशन सोमालिया में 1994 में देवरी बघेलान के रामलाल पटेल, नैकिन के रामपाल गुप्ता, ऊंची के रामसजीन जायसवाल, आपरेशन करगिल विजय में 1999 में डेरवा के कालू प्रसाद पाण्डेय, आपरेशन रक्षक में भेर्रहा खैरहन के चंद्रचूर्ण प्रसाद, 2001 में गुढ़वा के सुभाष त्रिपाठी, 2003 में लभौली के पुष्पराज सिंह, इसी वर्ष अमहिया के आशीष कुमार दुबे, म्यांमार बार्डर पर फरहदी के जितेन्द्र कुमार कुशवाहा, छह नंवबर 2019 को गोंदरी के अखिलेश कुमार पटेल, नौ मार्च 2020 को मझगवां के वीरेन्द्र कुमार कुशवाहा आदि शहीद हुए हैं। १५ जून २०२० को चीन के गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ हुई झड़प में फरेंदा-मनिकवार के दीपक सिंह गहरवार शहीद हुए हैं। चीन के बार्डर पर देश की सुरक्षा करते हुए इसके पहले लालमणि सिंह, रामविश्वास सिंह, सिपाही अंझा, लक्ष्मणी निवास आदि शहीद हुए हैं।

शहीदों के परिवारों की दास्तां..

शहीद सुभाष त्रिपाठी

नायक सुभाष कुमार त्रिपाठी निवासी गुढ़वा(गुढ़) जिला रीवा 4 अक्टूबर 2001 को आपरेशन रक्षक में जम्मू-कश्मीर में शहीद हो गए थे। उनकी वीर नारी मीना त्रिपाठी को मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 10 लाख रुपए दिए गए थे। मीना पहले से स्कूल में शिक्षिका थीं जो अब गांव में ही रहती हैं। इन्हें सरकार की ओर से कोई मकान-प्लाट नहीं मिला है। दो बेटियां वैष्णवी एवं गरिमा में से किसी एक को वह सरकारी नौकरी चाहती हैं। कई बार शासन से इसके लिए मांग की गई लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही। शहर के वार्ड नौ में परिवार रहता है लगातार सड़क, नाली निर्माण की मांग की जा रही है कोई सुनने को तैयार नहीं है।

शहीद रामसजीवन जायसवाल- सरकार की कोई मदद नहीं मिली

शहीद लांस नायक रामसजीवन जायसवाल निवासी ऊंची(ढेरा), मऊगंज रीवा ने रक्षक आपरेशन में 23 मार्च 1996 को जम्मू-कश्मीर में शहीद हो गए थे। शहीद की पत्नी देववती को भारत सरकार की ओर से 1.96 लाख रुपए मिला था। राज्य सरकार द्वारा न मकान-प्लाट और न ही किसी बच्चों को नौकरी दी गई है। दो बच्चे हैं बेटा उदय और बेटी उर्मिला जो कालेज स्तर की पढ़ाई पूरी कर सरकारी नौकरी के लिए आवेदन लेकर भटक रहे हैं। वीर नारी देववती बताती हैं कि शहादत के समय बच्चे छोटे थे, जब वह बड़े हुए तो नौकरी के लिए आवेदन किया। मौखिक रूप से अधिकारी कह रहे हैं कि समयावधि अधिक होने की वजह से कोई सहायता नहीं मिलेगी। देववती का सवाल है कि जब बच्चे वयस्क होंगे तभी तो नौकरी की मांग करेंगे। शुरुआती दिनों में आश्वासन भी मिला था।

शहीद कालूप्रसाद पाण्डेय

13 वर्षों के संघर्ष के बाद पेट्रोलपंप मिला, अन्य सुविधाओं के लिए भटक रहे

भारत-पाक कारगिल युद्ध में नायक कालू प्रसाद पाण्डेय निवासी डेरवा(अंदवा), जवा रीवा 28 जून 1999 को आपरेशन विजय के दौरान शहीद हो गए थे। उनकी वीर नारी श्यामकली पाण्डेय को मध्य प्रदेश सरकार की तरफ से 10 लाख रुपए मिले थे। भारत सरकार की ओर से पेट्रोल पंप 13 वर्षों के संघर्ष के बाद मिला था। परिवार का कहना है कि कोई मकान-प्लाट नहीं मिला और न ही किसी बच्चे को विशेष अनुकम्पा नियुक्ति मिली है। इतना ही नहीं पड़ोस में रहने वाला एक व्यक्ति लगातार परेशान करता है, जिसके शिकायतें विश्वविद्यालय थाने में दर्ज हैं लेकिन पुलिस शहीद के परिवार को ही उल्टा धमका रही है। पुत्री नेहा और पुत्र अंकुल पढ़ाई के बाद सरकार की मदद का इंतजार कर रहे हैं। गांव में घर तक पहुंचने के लिए सड़क तक सरकार नहीं बनवा पाई है।

शहीद उमेश प्रसाद शुक्ला-

एक हजार आवेदन देने के बाद मिला आवास

सीआइएसएफ में पदस्थ रहे उमेश प्रसाद शुक्ला की नक्सलियों के साथ हुई मुठभेड़ में नौ फरवरी २००६ को शहादत हो गई थी। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में हुई इस शहादत के बाद पत्नी सरोज शुक्ला अपने भाई रामउजागर के साथ हर उस दरवाजे पर गईं जहां पर सहयोग की उम्मीद थी। रीवा के जिला प्रशासन के साथ मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ की सरकारों को लगातार ज्ञापन देकर सहायता की मांग उठाई। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं केन्द्रीय गृहमंत्री सहित अन्य को भी लगातार ज्ञापन दिया। रीवा आने वाले सत्ता और विपक्ष से जुड़े हर नेता को लगातार ज्ञापन दे रहे हैं। हाल ही में मध्यप्रदेश सरकार ने एक आवास उपलब्ध कराया है। श्रद्धा सम्मान निधि और सरकारी नौकरी की मांग लगातार परिवार की ओर से की जा रही है। बताया गया है कि विशेष नक्सली बीमा कराए बिना ही उनकी तैनाती नक्सल प्रभावित क्षेत्र में कर दी गई थी। जिससे राशि देने में अब तक रुकावट बनी हुई है। सरोज शुक्ला लगातार पुत्री ज्योती एवं पुत्र अभिषेक के लिए नौकरी की मांग कर रही हैं।

अर्धसैनिक बल के नायक छोटेलाल लोध निवासी बरहुला पनवार 1999 में, सीआरपीएफ के जवान नारायण सोनकर गंगतीरा सहित अन्य शहीद हुए हैं जिन्हें पर्याप्त सुविधाएं सरकार की ओर से नहीं मिली हैं।

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