MP : अगर अधिकारियों से जान-पहचान है तो बेड के लिए करो इंतजार : अस्पतालों में वेटिंग बढ़ी

 

MP : अगर अधिकारियों से जान-पहचान है तो बेड के लिए करो इंतजार : अस्पतालों में वेटिंग बढ़ी

इंदौर। कोरोना संक्रमितों के इलाज के लिए भले ही इंदौर जिला प्रशासन ने लगभग सौ से ज्यादा अस्पताल चिह्नित कर रखे हैं। मगर इन दिनों मरीजों को अस्पताल में आसानी से बेड नहीं मिल रहा है। इसके लिए भी लोगों को नेता और अधिकारियों से जान-पहचान निकालना पड़ रही है। जब तक इन लोगों का फोन अस्पताल तक नहीं पहुंचता है, तब तक मरीज अस्पताल के बाहर ही खड़ा मिलता है। निजी के अलावा ऐसा हाल सरकारी अस्पताल भी नजर आने लगा है। सूत्रों के मुताबिक कई अस्पताल में आइसीयू बेड भी अधिकारियों के इशारे पर तुरंत खाली हो जाते हैं। अभी तक खास लोगों को अस्पताल के लिए भटकते हुए नहीं देखा जा रहा है। सुपर स्पेशएलिटी में भी लोग 30 से 40 घंटे तक परिसर बैठे देखा गया है। वेटिंग हाल में मुंह पर आक्सीजन मास्क लगाकर अपनी बारी का इंतजार करते हैं।

साधारण बेड में भी वेटिंग

शहरभर में कोविड अस्पतालों में चार से पांच हजार गंभीर मरीजों के लिए बेड की व्यवस्था है। मगर आक्सीजन और साधारण बेड भी खाली नहीं है। यही वजह है कि ज्यादातर मरीज अस्पतालों के बाहर हैं, जो बेड खाली होने का इंतजार करते हैं। सुपर स्पेशएलिटी, एमआरटीबी, एमटीएच सहित निजी बड़े अस्पताल में 20-30 की वेटिंग बनी है। मगर कई बार उनके पीछे वाले मरीजों का अस्पताल में इलाज शुरू हो जाता है। नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर मरीज के स्वजन ने बताया कि निजी अस्पताल में मरीजों को भर्ती नहीं किया जा रहा था। काफी देर बाद अस्पताल में एक परिचित निकला। उसने सलाह दी कि नेताओं से फोन करवा दो थोड़ी देर में बिस्तर की व्यवस्था हो जाएगी। फिर कई बार फोन करने बाद नेता जी से बात हुई। उन्होंने दूसरे अस्पताल में आक्सीजन बेड करवा दिया। फिलहाल मरीज की स्थिति ठीक है।

भटक रहे आक्सीजन-दवाई के लिए

कोरोना संक्रमित मरीज के इलाज को लेकर निजी अस्पताल की मनमानी जारी है। ज्यादा पैसा वसूलने के बावजूद सुविधा कुछ नहीं है। आक्सीजन से लेकर रेमडेसिविर तक का इंतजाम स्वजन को करना पड़ रहा है। यहां तक अस्पताल का खाना भी मरीजों का स्वाद बिगड़ा रहा है। धार निवासी महेश ठाकुर ने कहा कि 18 अप्रैल को पिता को मोहल्ले के निजी अस्पताल में भर्ती कराया। पहले दो इंजेक्शन को अस्पताल की तरफ से लगे। मगर बाकी चार डोज का इंतजाम बाहर से करना पड़े। यहां तक कि वे आक्सीजन सिलेंडर लेकर आए थे। डिस्चार्ज के वक्त बिल करीब दो लाख रुपए प्रबंधन ने थमा दिया। बिल को लेकर काफी बहस हुई तो पंद्रह हजार रुपए कम किए।

पहुंचा रहे घर से खाना

इलाज के लिए जिन लोगों को अस्पताल मिल चुका है। उनकी समस्या भी कम नहीं हुई है। दवाइयों के लिए भागदौड़ के बीच अपने मरीजों को पौष्टिक खाना भी घर से लाना पड़ रहा है। जबकि लंच और डिनर का चार्ज भी अस्पताल द्वारा वसूला जाता है। खाना मिलता है, लेकिन उसका स्वाद मरीजों को पसंद नहीं आता है। पवन श्रीवास्ताव का कहना है कि मेरी पत्नी का इलाज निजी अस्पताल में चल रहा था। मगर पहले ही दिन पत्नी ने बातचीत में बताया कि अस्पताल का खाना बेस्वाद है। फिर अगले दिन से घर से खाना भिजवाया जाने लगा।

इन अस्पतालों में लगी है लाइन

रोजाना सैकड़ों मरीज संक्रमित हो रहे हैं, जिसमें 30-40 फीसद मरीजों को अस्पताल की जरूरत पड़ने लगी है। पर अस्पतालों में तुरंत भर्ती होना आम लोगों के लिए थोड़ा मुश्किल है। कई अस्पतालों के बाहर मरीजों की लाइन लगी है, जिसमें सुपर स्पेशएलिटी, एमटीएच, एमआरटीबी, राबर्ट नर्सिंग होम शामिल है। यहां मरीज परिसर में बैठे दिखते हैं। जबकि निजी अस्पतालों में तालमेल बैठाकर वेटिंग में शामिल हो जाते हैं। ये अरबिंदो अस्पताल, चोइथराम अस्पताल, बाम्बे अस्पताल, सहित कई अस्पताल हैं। बताया जाता है कि प्रशासन कोविड अस्पतालों पर निगरानी रखने में लगा है।

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