MP : तीसरी लहर की तैयारी लेकिन डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ की कमी : डॉक्टरों के 5 हजार और नर्सिंग स्टाफ के 16 हजार पद खाली; वैकेंसी निकाली फिर भी कोई आने को तैयार नहीं

 

MP : तीसरी लहर की तैयारी लेकिन डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ की कमी : डॉक्टरों के 5 हजार और नर्सिंग स्टाफ के 16 हजार पद खाली; वैकेंसी निकाली फिर भी कोई आने को तैयार नहीं

मध्यप्रदेश में कोरोना ड्यूटी पर तैनात डॉक्टरों को 18-18 घंटे ड्यूटी करनी पड़ रही है। वजह - डॉक्टरों की कमी। मेडिकल कॉलेज में हाल ये कि 30 बेड वाले कोविड वॉर्ड का जिम्मा दो जूनियर डॉक्टर, दो नर्स और एक वॉर्ड ब्वाय पर है। अभी प्रदेश में 5000 डॉक्टरों की जरूरत है। 13 मेडिकल कॉलेजों में 1000 तो सरकारी अस्पतालों में 4000 डॉक्टरों के पद खाली हैं। 16 हजार नर्सिंग स्टाफ की कमी है।

इनके लिए वैकेंसी तो निकल रही है, लेकिन कोई आने को तैयार नहीं है। और जो आ रहे हैं वो क्वालिफाइड नहीं है। भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज ने डॉक्टर व नर्सिंग स्टाफ के लिए हाल ही में 325 तो रतलाम मेडिकल कॉलेज ने 500 अस्थाई वैकेंसी निकाली, लेकिन इनके लिए उम्मीदवार ही नहीं आ रहे। डॉक्टरों की कमी के बावजूद सरकार नए मेडिकल कॉलेज खोल रही है। ऐसे में सवाल ये कि तीसरी लहर की तैयारी में जुटी सरकार बिना डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ के कोरोना संक्रमण से निपटेगी कैसे?

देश में अभी 11082 लोगों पर औसतन एक सरकारी डॉक्टर है। यह डब्ल्यूएचओ के स्टैंडर्ड से 10 गुना ज्यादा है

चार राज्यों में मरीजों की तुलना में डॉक्टर सबसे कम हैं। इनमें उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के साथ मध्यप्रदेश भी शामिल है

मप्र में अभी 16996 लोगों पर एक डॉक्टर है, जबकि डब्ल्यूएचओ के मुताबिक 1000 पर एक डॉक्टर होना चाहिए

प्रदेश में डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ की कमी से 9 साल में सरकारी अस्पतालों में 72 हजार नवजातों की मौत हुई है

पिछले साल अप्रैल में 6 मेडिकल ऑफिसर भर्ती किए, समय पूरा होने के पहले ही उन्हें हटाया

पिछले साल 12 अप्रैल को एनआरएचएम एमडी छवि भारद्वाज ने जीएमसी में 6 मेडिकल ऑफिसर भर्ती किए। ये सभी कोविड ड्यूटी में थे, लेकिन 31 मई 2021 को कार्यकाल खत्म होने के 10 दिन पहले ही उन्हें नौकरी छोड़ने का नोटिस दे दिया गया।

मेडिकल कॉलजों में सीटों के हिसाब से 7 हजार भर्तियां होनी चाहिए, लेकिन

2814 ही स्वीकृत पद हैं। इनमें अभी 1958 भरे हैं। भोपाल, इंदौर, ग्वालियर सहित 8 कॉलेजों में स्थाई डीन नहीं है। दो महीने में नाराज होकर 16 डॉक्टर्स नौकरी छोड़ चुके हैं।

             MP : तीसरी लहर की तैयारी लेकिन डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ की कमी : डॉक्टरों के 5 हजार और नर्सिंग स्टाफ के 16 हजार पद खाली; वैकेंसी निकाली फिर भी कोई आने को तैयार नहीं

इसलिए नहीं आना चाहते डॉक्टर; न 2016 का वेतनमान, न प्रमोशन पॉलिसी तो मरने के लिए क्यों आएं

शासन में बैठे अफसर डॉक्टर्स के प्रति संवेदनशील नहीं है और वे उन्हें दोयम दर्जे का समझते हैं। उनके लिए ना 2016 वेतनमान, न प्रमोशन पॉलिसी, न पेंशन योजना का लाभ। ऐसे में कोरोना काल में मरने के लिए नए डॉक्टर्स क्यों आएंगे। सरकार नए मेडिकल कॉलेज खोल रही है। लेकिन यहां इलाज के लिए डॉक्टर्स कहां से आएंगे। इस पर मंथन नहीं चल रहा है।

सरकार को पहले अपनी नीतियों को ठीक करना होगा। तभी नए डॉक्टर्स मेडिकल कॉलेज में आएंगे। दूसरी राज्यों में एक असिस्टेंट प्रोफेसर 13 साल में प्रोफेसर बन जाता है। जबकि हमारे यहां की नीतियों में खामियों के चलते उसे 20 साल ये इंतजार करना पड़ता है। सरकार को ये कई बार बता चुके हैं कि आने वाले समय में नए डॉक्टर्स प्रदेश के शासकीय मेडिकल कॉलेज में नहीं मिलेंगे। - डॉ. राकेश मालवीय, सचिव, मप्र मेडिकल टीचर्स एसो.

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