मां के जाने के बाद मायका सूना हो जाता है लेकिन वहां पिता हमेशा अपनी बेटी के इंतज़ार में रहते हैं, ये बात एक बेटी समझ चुकी थी

 
मां के जाने के बाद मायका सूना हो जाता है लेकिन वहां पिता हमेशा अपनी बेटी के इंतज़ार में रहते हैं, ये बात एक बेटी समझ चुकी थी

बच्चों की गर्मियों की छुट्टियां लगे अभी दो दिन ही हुए थे। सुबह- सुबह पापा का कॉल आ गया। बोले– बेटा कब आओगी? मैंने अनमने मन से बोल दिया– ‘पापा कुछ पक्का नहीं है। ऋषि टूर पर गए हैं, उनके आने के बाद देखती हूं।’ पापा की आवाज़ रुआंसी हो गई। बोले– ‘बेटा तुम्हारी मां नहीं है, तो क्या हुआ। तुम्हारा मायका तो है। और मैं तो हूं। ऋषि से बात करो और जल्दी आ जाओ।’ मैं ‘जी पापा’ के आगे कुछ बोल ही नहीं पाई। जब तक मां थीं, उनसे रोज़ फोन पर ढेरों बातें करती थी। साल में एक बार गर्मी की छुट्टियों में मैं पूरे दस दिन के लिए मायके जाती थी। वो सुख किसी जन्नत से कम नहीं होता था। बच्चों से ज़्यादा मुझे गर्मी की छुट्टियों का इंतज़ार रहता था, पर जबसे मां गईं मेरा मायके जाने का मन ही नहीं करता। 
ऐसा लगता जैसे मेरा मायका ही ख़त्म हो गया। एक सूनापन, एक ख़ालीपन-सा मेरी ज़िन्दगी में भर गया था। पापा एकदम शांत स्वभाव के थे और कम बोलते थे। पर सबकी ज़रूरत का पूरा ध्यान रखते थे। ऐसा नहीं कि मैं पापा को प्यार नहीं करती थी पर बचपन से मैं मां के ज़्यादा क़रीब थी। या यूं कहूं कि वे मेरे दिल के सबसे क़रीब थीं। अपने सारे सुख-दुःख एक सहेली की भांति मैं उनसे साझा करती थी। 

आज सुबह-सुबह पापा का कॉल आया तो उन्हें मना नहीं कर पाई। पापा का दिल रखने के लिए ऋषि से बोल कर अगले ही हफ़्ते के टिकट करवा लिए और पहुंच गई मायके। जैसे ही दरवाज़े पर पहुंची मां की याद आ गई। ऐसा लगा जैसे वो अभी बाहर निकल कर मुझे गले लगा लेंगी। सोच के आंखें भर आईं। किन्तु आज मां की जगह पापा बांहंे फ़ैलाए मेरा इंतज़ार कर रहे थे। सालों बाद पापा को गले लगा के ख़ूब रोई। पापा ने अपने आंसू छुपाते हुए प्यार से मेरे सिर पर हाथ फेरा तो दिल थोड़ा हल्का हो गया। बहुत दिन बाद पापा को देखा। कमज़ोर लग रहे थे। 

वैसे तो भाई-भाभी और पापा सभी मेरा बहुत ध्यान रख रहे थे। बच्चे तो अपने खेल और मस्ती में व्यस्त हो गए थे, पर ना जाने क्यों मेरी नज़रें हरपल जैसे मां को हीं ढूंढती थीं। आज भी पापा पहले की तरह रोज़ खाने के बाद मेरी पसंदीदा मटका कुल्फ़ी लाना नहीं भूलते थे। भाई भी बच्चों को कभी पार्क, कभी चिड़ियाघर तो कभी बाज़ार घुमाने ले जाता था। भाभी भी रोज़ मुझसे पूछ कर मेरी पसंद का खाना बनातीं। सब कुछ पहले की तरह ही था, बस मां नहीं थीं। इस बार मायके में मेरा दिल नहीं लग रहा था। मां की कमी मुझे बहुत खल रही थी। ऋषि को कॉल करके मैंने दो दिन बाद का टिकट करवा लिया। सबने मुझे रोकने की बहुत कोशिश की, पर मैं नहीं मानी। देखते ही देखते मेरे जाने का समय आ गया। आज शाम की ट्रेन से मेरी घर वापसी थी। मैंने सामान पैक कर के रख लिया था। बस, पापा का इंतज़ार कर रही थी। पापा ना जाने सुबह से बिना बताए कहां चले गए थे। उनका मोबाइल भी नहीं लग रहा था। मन घबरा रहा था। बिना बताए आख़िर गए कहां? इधर मेरी ट्रेन का समय भी होता जा रहा था। समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं? तभी पापा का कॉल आया बोले– ‘गुड़िया, तुम लोग स्टेशन पहुंच जाओ मैं सीधे वहीं पहुंच रहा हूं।’ हम लोग स्टेशन पहुंच गए। ट्रेन सही समय पर थी। पापा स्टेशन पर हमारा इंतज़ार कर रहे थे। उनके हाथ में एक बॉक्स था। उन्होंने मुझे देते हुए गले लगाया और बोले, ‘इसे ही लेने गया था, इसलिए देर हो गई। 

संभाल के रखो।’ मैंने आश्चर्य चकित होते हुए पूछा ‘इसमें क्या है?’ पापा की आंखें भर आईं। अपने आंसू पोंछते हुए बोले, ‘तुम्हारी मां का प्यार।’ कुछ समझती तभी ट्रेन आ गई। हमें ट्रेन में बैठा के पापा और भाई ने विदा कर दिया। मेरी नज़रों से ओझल होने तक पापा वहीं खड़े हाथ हिलाते रहे। मैं भी एकटक ना जाने कब तक बाहर खिड़की से उन लोगों को निहारती रही। तभी बेटे ने आवाज़ दी और मेरे हाथों में एक चिट्ठी थमाते हुए कहा- ‘मम्मी नाना जी ने ये आपके लिए दिया है।’ मैंने तुरंत चिट्ठी खोली। ‘मेरी प्यारी गुड़िया रानी, सदा ख़ुश रहो। जब तक तुम्हारी मां थी, तुम्हारी हर छोटी-बड़ी बात का ख़्याल वही रखती थी। मैं जानता हूं कि मैं तुम्हारी मां की जगह तो नहीं ले सकता, पर उनकी कमी की पूर्ति करने की कोशिश तो कर ही सकता हूं। आज तुम्हारी मां होती तो हमेशा की तरह अपने हाथों से तुम्हारे लिए बड़ी, पापड़, अचार बना के साथ भेजती। मां के हाथ का तो नहीं पर उसके स्वाद जैसा सब सामान एक दुकानदार से बनवाने की कोशिश की है। उम्मीद है, तुम्हें पसंद आएगा और हां बेटा मां नहीं है तो क्या हुआ, तुम्हारा मायका और हम तो हैं। पहले की ही तरह तुम्हारा इंतज़ार रहेगा। ढेर सारे प्यार और आशीर्वाद के साथ तुम्हारे पापा। 

पत्र पढ़ते-पढ़ते मेरी आंखों से अश्रुधारा बहने लगी। सहसा मेरे मुंह से निकला- ‘आई लव यू पापा।’ बात छोटी-सी थी पर उसमें अथाह प्यार समाहित था। ये सिर्फ़ मैं ही महसूस कर सकती थी। मायके से घर आए एक महीना बीत गया था। अब पापा से रोज़ एक बार कॉल कर के मम्मी की तरह घंटों बातें करती हूं।

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