एक बार फिर बड़ी घटनाओं को अंजाम देने की फिराक में अलकायदा और ISIS : अब बैठक में अमरीका बनाएगा अगली रणनीति

 

  • एक बार फिर बड़ी घटनाओं को अंजाम देने की फिराक में अलकायदा और ISIS : अब बैठक में अमरीका बनाएगा अगली रणनीति

नई दिल्ली। अफगानिस्तान में अमरीका तालिबान सरकार के बाद अब आतंकी संगठनों अलकायदा और आईएसआईएस के खतरे से निपटने की तैयारी कर रहा है। अफगानिस्तान से विदेशी सैनिकों की वापसी के बाद अमरीकी सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी यूनान में इस हफ्ते के अंत में नाटो के अधिकारियों के साथ बैठक कर इस पर अगली रणनीति बनाएंगे।

बताया जा रहा है कि इस बैठक का उद्देश्य आतंकी संगठनों से अमरीका और क्षेत्र को संभावित खतरों के संबंध में सहयोग बढ़ाने, खुफिया सूचनाएं साझा करने और दूसरे महत्वपूर्ण समझौतों पर बात हो सकती है। अमरीका सेना में ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ के प्रमुख जनरल मार्क मिले के अनुसार, नाटो के सदस्य देशों के रक्षा प्रमुख अफगानिस्तान से गठबंधन के सैनिकों की पूर्ण वापसी के बाद आगे के कदमों पर बात करेंगे।

गौरतलब है कि तमाम खुफिया रिपोर्ट में ऐसी बातें सामने आई हैं कि अफगानिस्तान में तालिबान सरकार की वापसी के कारण अलकायदा और आईएसआईएस एक बार फिर अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के हथकंडे अपना सकते हैं। इसके तहत आतंकी संगठन अलकायदा और आईएसआईएस अमरीका समेत दुनियाभर में कई देशों में खतरनाक घटनाओं को अंजाम दे सकता है।

मार्क मिले के अलावा, अमरीकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन और अमरीकी खुफिया विभाग के कई अधिकारियों ने अलग-अलग रिपोर्ट के माध्यम से इस बारे में आगाह भी किया है। इसके तहत अलकायदा या इस्लामिक स्टेट अफगानिस्तान में फिर से अपना वजूद स्थापित कर सकता है। ये संगठन आने वाले एक या दो वर्ष में अमरीका के लिए खतरे का सबब बन सकते हैं। वहीं, अमरीकी सेना ने कहा कि इस पर अभी से रोक लगाने के लिए आतंकवाद रोधी निगरानी की व्यवस्था की जा सकती है। जरूरत पडऩे पर दूसरे देशों के सैन्य अड्डों से अफगानिस्तान में आतंकी ठिकानों पर कार्रवाई की जा सकती है।

वैसे, अधिकारियों ने स्पष्ट कर दिया है कि फारस की खाड़ी में सैन्य अड्डों से टोही विमानों की लंबी उड़ान की क्षमता सीमित है। ऐसे में अफगानिस्तान के पास के देशों में स्थित सैन्य अड्डों को लेकर समझौते और एक दूसरे के क्षेत्र में विमानों को उड़ाने का अधिकार देने तथा खुफिया सूचनाओं को साझा करने पर बातचीत हो सकती है। पिछले कुछ महीनों में सैन्य अड्डों को लेकर कोई समझौता नहीं हुआ है।

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