REWA : अजब गजब : हिन्दुस्तान से लेकर इंग्लैण्ड- अमेरिका तक विख्यात है व्हाइट टाइगर मोहन का नाम, रीवा में जन्में सफेद बॉघ की 34 सन्तानें दुनियाभर में चर्चित

 

REWA : अजब गजब : हिन्दुस्तान से लेकर इंग्लैण्ड- अमेरिका तक विख्यात है व्हाइट टाइगर मोहन का नाम, रीवा में जन्में सफेद बॉघ की 34 सन्तानें दुनियाभर में चर्चित

रीवा। किसी सेलेब्रटी से कम नही है मोहन, दुनिया में फक्र से लिया जाता है व्हाइट टाइगर का नाम गजब की पहचान है चाहे वह इंसान का हो या फिर जानवर का नाम। भारत के एक जानवर का नाम दुनिया में जानवर क्या इंसान के चर्चित चेहरों को भी मात दे रहा है। इसका नाम हिन्दुस्तान से लेकर इंग्लैण्ड तक अमेरिका विख्यात है। हम बात कर रहे है सफेद बाघ मोहन की  जिसकी संताने दुनियाभर में चर्चित हैं। दुनिया के नक्से में पहली बार रीवा का नाम आया इसकी वजह भी व्हाइट टाइगर मोहन। 

रीवा मे जन्मे सफेद बॉघ के वंशज पूरी दुनियॉ मे चर्चित है। मोहन की कहानी रीवा से शुरु होती है जो पूरी दुनियॉ मे मशहूर है। सफेद बॉघ 9 फिट लम्बाए सफेद रंगए गुलाबी नाकए लम्बा जबडा नुकीले दॉत। जी हॉ यही है सफेद बॉघो का जनक मोहन मोहन की कहानी रीवा से शुरु होती है जो पूरी दुनियॉ मे मशहूर है। 1951 में सीधी के बगरी जंगल से महाराजा मार्तण्ड सिंह ने शिकार के दौरान 6 माह के शावक को पकडा और इसका नाम रखा मोहन। इस बॉघ को पकडकर गोविन्दगढ किला लाया गया और इसे यहॉ रखने के लिये बॉघ महल बनाया गया। नन्हे मोहन को महल मे रखने के पुख्ता इंतजाम थे। 

गोविन्दगढ बॉघ महल मे नन्हा मोहन अकेलापन होने के चलते उदास रहता था. कभी सोज विचार के बाद महाराज ने बाघिन भी महल मे रखने का निर्णय लिया। मोहन और बेगम को महल मे छोड दिया गया इसके बाद मोहन ने जंगल की तरफ मोड कर नही देखा। मोहन की चर्चा देश.विदेशो मे फैल गयी और एक.एक करके सफेद बॉघ पूरी दुनियॉ मे पहुंच गये।  प्रतिदिन 10 किलो बकरे का गोस्त, दूध, अंडे मोहन का प्रिय आहार था। लेकिन आश्चर्य यह था कि मोहन रविवार के दिन व्रत रखता था और फुटवाल उसका पसंदीदा खेल था। मोहन की अठखेलियॉ देखने के लिये दूर-दूर से सैलानी आते थे और बॉघ महल की बॉघो के देखने के लिये सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये गये थे। 

मोहन की तीन रानियॉ बॉघ महल गोविन्दगढ मे थी और इनसे 34 सफेद बॉघ सन्तानें जन्में। 16 वर्षीय सफेद बॉघ मोहन की राधाए सुकेशी नाम की तीन रानियॉ थीए बेगम ने 14ए राधा 7 और सुकेशी ने 13 सफेद बॉघो को जन्मा। 1955 में पहली बार बॉघो के बेचने और क्रय करने की घटना हुई। 

कोलकत्ता के पीण्एमण्दास है 2 बॉघ और बाघिन को क्रय किया। इसके पूर्व बॉघो के चमडो की बिक्री  होती थी यह नई घटना थी इसलिये चर्चा का विषय बन गयी। बॉघ देखने के लिये राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद और प्रधानमंत्री पं.्जवाहरलाल नेहरु रीवा आये। इन्हे यहॉ महाराज ने एक.एक बॉघ भेंट किये। इसके बाद देश-विदेशो मे बॉघ भेजने का दौर शुरु हो गया। जीवित बॉघो की ताबडतोड खरीदी.बिक्री तो रीवा रियासत मे हुई ही, मरने वाले सफेद बॉघो को भी लकडी की चौखट मे जडवाकर ब्रिटेन की समाग्री महारानी विक्टोरिया को भेंट किया गया। 

यह किंग्सटन प्राकृतिक संग्रहालय में सुरक्षित रखा हुआ है। रीवा रियासत मे बॉघो की सवारी निकलती थी ये बॉघ महाराज की बॉघ्घी खीचते थे। गोविन्दगढ बॉघ महल मे मोहन का वंशज विराट आखिरी बॉघ था। इसकी मौत के बाद महाराज के बॉघो से मोह भंग हो गया. बॉघो को यहा से बाहर भेज दिया गया।

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