MP : 500 रुपए में खरीदी पिस्तौल से हुई थी गांधी की हत्या : चलिए जानते हैं कि गांधी की हत्या और गोडसे का ग्वालियर कनेक्शन ...

 

MP : 500 रुपए में खरीदी पिस्तौल से हुई थी गांधी की हत्या : चलिए जानते हैं कि गांधी की हत्या और गोडसे का ग्वालियर कनेक्शन  ...

देश में महात्मा गांधी की जब भी बात होती है तो ऐसा हो नहीं सकता कि गोडसे का जिक्र न हो। जब भी नाथूराम गोडसे का नाम आता है तो ग्वालियर की बात होना स्वभाविक है। आज गांधी जयंती है और हर जगह गांधीजी को पूजा जा रहा है। चलिए जानते हैं कि गांधी की हत्या और गोडसे का ग्वालियर से क्या कनेक्शन है।

महात्मा गांधी की हत्या में उपयोग होने वाली पिस्तौल को ग्वालियर से सिर्फ 500 रुपए में खरीदा गया था। इसी पिस्तौल से 3 गोलियां नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी के सीने में उतारकर हत्या की थी। हत्या से पहले 3 दिन नाथूराम गोडसे, नारायण आप्टे ग्वालियर के हिंदू महासभा के भवन में ही रुके थे। सुबह का नाश्ता शिंदे की छावनी की एक दुकान पर तय था। रात को मूंगफली खाकर लंबी चर्चा करते थे।

ग्वालियर में गोडसे ने रची बापू हत्याकांड की साजिश

30 जनवरी 1948 को दिल्ली के बिड़ला भवन में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी प्रार्थना सभा से उठे थे तो उसी दौरान नाथूराम गोडसे ने बापू के सीने को गोलियों से छलनी कर दिया था, लेकिन यह हत्याकांड किसी एक दिन की प्लानिंग नहीं थी। गांधीजी की हत्या की साजिश आजादी के 7 दिन पहले से शुरू हो गई थी। एक बार अपने प्रयास में गोडसे विफल हो चुका था। इसलिए इस बार वह कोई मौका देना नहीं चाहता था।

30 जनवरी 1948 से तीन दिन पहले नाथूराम गोडसे अपने साथी प्रोफेसर नारायण आप्टे के साथ ग्वालियर पहुंचा। यहां से वह दौलतगंज स्थित हिंदू महासभा के भवन पहुंचे। ग्वालियर में वह तीन दिन तक रुके। यहीं गांधी जी की हत्या की पूरी प्लानिंग की गई। यहां हिंदू महासभा के नेता डॉक्टर परचुरे और गंगाधर दंडवत ने उनकी मदद की।

स्वर्ण रेखा में ली थी ट्रेनिंग

नाथूराम गोडसे ने जिस पिस्तौल से बापू की हत्या की थी, उस पिस्तौल को ग्वालियर से 500 रुपए में खरीदा था। उस समय रियासत काल था और आसानी से यहां पिस्तौल मिल जाती थी। अखिल भारतीय हिंदू महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जयवीर भारद्वाज ने बताया कि यह पिस्तौल को चलाने के लिए नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे ने तीन दिन ग्वालियर में ही रुककर पूरी प्रैक्टिस की थी। वह दौलतगंज महासभा के भवन में ही ठहरे थे। सिंधिया के महल के सामने स्वर्ण रेखा नदी, जो नाला हो गया है के पास यहां पिस्तौल को चलाने और सटीक निशाना लगाने की प्रैक्टिस की थी।

29 जनवरी को ट्रेन पकड़कर दिल्ली के लिए रवाना हुए

हिंदू महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बताते हैं कि 3 दिन तक यहीं प्रैक्टिस करने के बाद गोडसे और आप्टे 29 जनवरी की सुबह ग्वालियर रेलवे स्टेशन से ट्रेन पकड़कर दिल्ली के लिए रवाना हुए। 29 की सुबह उनको रवाना होना था, लेकिन 28 जनवरी की रात को उन्हें मिशन को लेकर काफी बैचेनी हो रही थी। ढंग से नींद भी नहीं आई थी। रात को उन्होंने समय बिताने के लिए मूंगफली मंगाकर खाई थी।

1935 से हिंदू महासभा का गढ़ है ग्वालियर

ग्वालियर शुरू से ही हिंदू महासभा का गढ़ रहा है, जहां आज भी गोडसे को कार्यकर्ता पूजते हैं। मध्य भारत हिंदू महासभा का प्रमुख कार्यालय है। अखिल भारतीय हिंदू महासभा की स्थापना यहीं 1935 में वीर सावरकर ने की थी। यही वजह है कि बापू की हत्या करने वाले गोडसे का ग्वालियर से गहरा नाता रहा है। ग्वालियर में जब हिंदू महासभा का गढ़ बना ही था, तब से नाथूराम गोडसे ग्वालियर आया-जाया करते थे। यहां के दफ्तर में 1947 में नाथूराम गोडसे ने कुछ दिन भी बिताएं हैं। गोडसे का मंदिर तक यहां हिंदू महासभा बना चुकी है।

किताब में भी गांधी जी की हत्या का उल्लेख

महात्मा गांधी की हत्या की साजिश 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति से एक सप्ताह पहले ही रच ली गई थी। यह दावा एक किताब में किया गया है जो हत्या के लिए इस्तेमाल की गई बेरेटा पिस्तौल तथा ग्वालियर के एक डॉक्टर दत्तात्रेय सदाशिव परचुरे द्वारा इसकी व्यवस्था किए जाने सहित पूरी घटना का विवरण पेश करती है। अप्पू एस्थोस सुरेश और प्रियंका कोटमराजू द्वारा लिखी गई किताब ‘द मर्डरर, द मोनार्क एंड द फकीर: ए न्यू इन्वेस्टिगेशन ऑफ महात्मा गांधीज असैसिनेशन’ गांधी की हत्या की परिस्थितियों, इसके कारणों और इसके बाद की जांच आदि पर प्रकाश डालती है।

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