REWA : रीवा के हरिओम मशरुम की खेती कर कमा रहे लाखों : youtube से सीखा था खेती का तरीका, एग्रीकल्चर से की है पढ़ाई

 

REWA : रीवा के हरिओम मशरुम की खेती कर कमा रहे लाखों : youtube से सीखा था खेती का तरीका, एग्रीकल्चर से की है पढ़ाई

रीवा के 22 साल के हरिओम विश्वकर्मा मशरूम के खेती कर हर महीने 30 से 40 हजार रुपए कमा रहे हैं। वो भी पुराने कच्चे घर के 10×10 के एक छोटे से कमरे में। हरिओम BSC एग्रीकल्चर की पढ़ाई कर रहे हैं। मशरूम की खेती का आइडिया उन्हें यूट्यूब पर VIDEO देखकर आया। आइए उन्हीं से जानते हैं ...

हरिओम के मुताबिक उसने उत्तराखंड के दिव्या रावत और प्रीति के VIDEO देखे। जब यकीन हो गया कि वह यह कर सकते हैं तो रीवा कृषि विज्ञान केंद्र पहुंच गया। कृषि वैज्ञानिक डॉ. केवल सिंह बघेल के सामने मशरूम की खेती करने की इच्छा जाहिर की। उन्होंने मुस्कुराते हुए हरी झंडी दे दी। साथ ही बीज उपलब्ध कराने में मदद की।

अपने पैतृक और पुराने कच्चे घर के एक कमरे को मशरूम के लिए आरक्षित कर लिया। चारों ओर की दीवार को प्लास्टिक से कवर कर दिया, जिससे बाहर का तापमान अंदर असर न करे। बाहरी दीवार में घास-फूस लगाकर ढंक दिया। बाद में तापमान चेक किया तो मशरूम की खेती के हिसाब से ह्यूमिडिटी (आद्रता) मिली।

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खेती का तरीका

मीडिया से बातचीत में हरिओम ने बताया कि सबसे पहले हम भूसे को कारमेंडा जिम पाउडर और फारमेल डिहाइड के घोल में भूसे को स्ट्रेलाइज (कीटाणु रहित बनाना) करते है। फिर 12 से 24 घंटे के लिए स्ट्रेलाइज होने के लिए छोड़ देते है। इसके बाद हम इस भूसे को छानते हैं। छानने के बाद पीपी बैग में भूसे को लेयर बाई लेयर रखते हैं।

एक प्लास्टिक के बैग में करीब एक किलो भूसे के साथ 70 ग्राम बीज डालते हैं। इसके बाद बैग को टाइट कर बांध देते हैं। टैम्परेचर मेंटेन होने के बाद अंधेरे में रखते हैं। इस बैग में ऊपर-नीचे दो-चार छेद कर अंधेरे कमरे में एक से डेढ सप्ताह के लिए छोड़ देते हैं। इस दौरान माइसीलियम ( धागेनुमा फफूंद) बनता है।

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माइसीलियम बनने के बाद पीपी बैग सफेद हो जाता है। इसके बाद बैग को कमरे में टांग देते हैं। अब इस कमरे का तापमान और आद्रता मैंटेन करना होता है। आद्रता को 80 से 85 परसेंट रखना होता है। गर्मियों के समय में दो से तीन बार फव्वारे से बैग और कमरे की सिंचाई करना पड़ती है। इसके एक से दो हफ्ते बाद छोटे-छोटे पिन हेड्स निकलना चालू हो जाते हैं। इसके दो-तीन बाद तोड़कर मशरूम को बाजार में बेच सकते हैं। करीब 40 से 50 दिन में मशरूम डेढ़ से दो किलो तक का हो जाता है।

एक बैग की लागत 17 रुपए, कमाई 300

दो साल पहले मशरूम खेती की शुरुआत करने वाले हरिओम ने बताया कि एक बैग को तैयार करने में 17 रुपए की लागत आती है। हर बैग से कमाई ढाई से तीन सौ रुपए होती है। पहले साल औसतन 300 बैग तैयार किए। इससे करीब 2 से 3 लाख रुपए की कमाई हुई थी।

बिना जमीन के होती है ये खेती

मशरूम की खेती के लिए किसी जमीन की आवश्यकता नहीं है। बल्कि आप 10 बाई 10 के एक कमरे में खेती कर साल में 2 से 3 लाख तक कमा सकते हैं।

मशरूम से बन रहे कई प्रोडक्ट

जिम और फिटनेस क्लब में उपयोग होने वाले पाउडर से लेकर एक दर्जन प्रोडेक्ट मशरूम से तैयार हो सकते हैं। जैसे अचार, खाने की सब्जी, बरी, पेस्ट, पाउडर, घोल, मेडिकल में इसका उपयोग होता है। साथ ही फूड प्रोसेसिंग यूनिट के माध्यम से यह व्यापार और अच्छा हो सकता है।

150 रुपए किलो मिल रहा बीज

कृषि विज्ञान केन्द्र रीवा के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एके पाण्डेय ने बताया कि रीवा कृषि विज्ञान केन्द्र में 150 रुपए प्रति किलो बीज आसानी से उपलब्ध करा दिया जाता है। इस कार्य में डॉ. चन्द्रजीत सिंह, डॉ. संजय सिंह, डॉ. ब्रजेश तिवारी आदि का सहयोग रहता है। हमारा प्रयास है कि ज्यादा से लोग आत्मनिर्भर बने, जिससे मध्यप्रदेश के युवा किसानों को नया मंच मिल सके।

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