सनातन धर्म के प्रसिद्ध चार पीठों की शंकराचार्य ने की थी स्थापना : हिन्दू धर्म के माने जाते है प्रचारक, आइये जानते हैं कौन हैं आदि शंकराचार्य....

 

सनातन धर्म के प्रसिद्ध चार पीठों की शंकराचार्य ने की थी स्थापना : हिन्दू धर्म के माने जाते है प्रचारक, आइये जानते हैं कौन हैं आदि शंकराचार्य....

नई दिल्ली। हमारे देश में अनेकों महान संत-महात्माओं का अवतरण हुआ। इनमें से ही एक से आदि शंकराचार्य। आज देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केदारनाथ में आदि शंकराचार्य की मूर्ति का अनावरण किया है। आइये जानते हैं कौन हैं आदि शंकराचार्य....

जीवन यात्रा -

आदि शंकराचार्य के जन्म का नाम शंकर था, इनका जन्म 788 ई. को दक्षिण भारत के केरल में स्थित कालड़ी ग्राम में हुआ था। आदि शंकराचार्य को अद्वैत वेदान्त के प्रणेता, संस्कृत के विद्वान, उपनिषद व्याख्याता और हिन्दू धर्म प्रचारक मना जाता है। हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार आदि शंकराचार्य को भगवान शंकर का अवतार गया है। शंकराचार्य लगभग पूरे भारत की यात्रा की और इनके जीवन का अधिकांश भाग उत्तर भारत में बीता। 7 वर्ष की आयु में लिया था संन्यास 7 वर्ष का आयु में संन्यास लेने वाले शंकराचार्य ने मात्र 2 वर्ष की आयु में सारे वेदों, उपनिषद, रामायण, महाभारत को कंठस्थ कर लिया था । शंकराचार्य ने चार पीठों (मठ) की स्थापना की । उन्होंने अनेक ग्रन्थ लिखे हैं। शंकराचार्य का शरीर 820 ई. में मात्र 32 साल की उम्र में केदारनाथ में शांत हो गया ।

ऐसे मिला शंकराचार्य नाम- शंकराचार्य के माता-पिता ने उनके जन्म के लिए वर्षों तक भगवान शिव की तपस्या की थी। जिसके बाद शंकराचार्य का जन्म हुआ। इनके माता-पिता ने उनका नाम शंकर रख दिया। जन्म के कुछ ७ सालों बाद ही शंकराचार्य संन्यासी बन गए। अपनी माता से आज्ञा लेकर उन्होंने वैराग्य धारण किया था। संन्यासी बनने के बाद भी शंकराचार्य ने अपनी मां का दाह संस्कार किया। समय के साथ शंकर नाम का यह बालक जगद्गगुरु शंकराचार्य कहलाया। शंकराचार्य ने संन्यासी समुदाय में सुधार के लिए उपमहाद्वीप में चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की। 'अवतारवाद' के अनुसार, ईश्वर तब अवतार लेता है, जब धर्म की हानि होती है। धर्म और समाज को व्यवस्थित करने के लिए ही आशुतोष शिव का आगमन आदि शकराचार्य के रूप में हुआ।

ज्ञान और दर्शन -

शंकराचार्य ने अपने गुरू से शास्त्रों के ज्ञान के साथ ही कम उम्र में ही ब्रह्मत्व का भी अनुभव कर लिया था। काशी में रहकर उन्होंने जीवन के व्यवहारिक और आध्यात्मिक पक्ष के पीछे की सत्यता को भी जाना। शंकराचार्य ने बचपन में ही वेदों का पूरा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। उन्होंने मात्र १६ वर्ष की आयु में 100 से भी ज्यादा ग्रंथों की रचना की। शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए देश के चारों कोनों में चार मठों की स्थापना भी की. जो बाद में शंकराचार्य पीठ के नाम से पहचाने जाते हैं।

आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित अद्वैत वेदांत संप्रदाय नौंवी शताब्दी में बेहद लोकप्रिय हुआ। श्री आदि शंकराचार्य ने प्राचीन भारतीय उपनिषदों के सिद्धान्तों को फिर से एक बार जीवित करने का प्रयास ही नहीं किया, बल्कि ईश्वर के स्वरूप को पूरी आत्मीयता और वास्तविकता के साथ स्वीकार किया। उनका मानना था कि वे लोग जो इस मायावी संसार को वास्तविक मानते हैं और ईश्वर के स्वरूप को नकार देते हैं वह पूरी तरह अज्ञानी होते हैं। इसके बाद संन्यासी समुदाय में सुधार लाने और संपूर्ण भारत को एकता के सूत्र में पिरोने के लिए उन्होंने भारत में चार मठ गोवर्धन पीठ: ऋग्वेद, शारदा पीठ: यजुर्वेद, द्वारका पीठ: साम वेद और ज्योतिर्मठ: अथर्ववेद की स्थापना की।

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