पायलट बनने का सपना करें साकार : 12वीं फिजिक्स मैथमेटिक्स से पास होना जरूरी; पायलट बनने के बाद जॉब लगी, तो सैलरी कितनी?

 

पायलट बनने का सपना करें साकार : 12वीं फिजिक्स मैथमेटिक्स से पास होना जरूरी; पायलट बनने के बाद जॉब लगी, तो सैलरी कितनी?

हर किसी का सपना होता है कि वह हवा में उड़े। प्लेन में सवार होकर धरती की खूबसूरती को ऊंचाई से देखे। इनमें से कुछ ऐसे भी होते हैं, जिनका ख्वाब प्लेन उड़ाने का होता है। जानकारी के अभाव में कई बार उनका सपना अधूरा रह जाता है।

मीडिया ने ऐसे ही युवाओं की मदद के मकसद से कैप्टन एसएस शरण से बात की। शरण ग्लोबल एविएशन के एमडी हैं। ग्लोबल एविएशन ने मंदसौर में फ्लाइंग क्लब की शुरुआत की है। कमर्शियल पायलट तैयार करने की मध्यप्रदेश का ये पहला ट्रेनिंग सेंटर है। देशभर के 16 युवा मंदसौर में पायलट बनने की ट्रेनिंग ले रहे हैं। यहां कमर्शियल पायलट लाइसेंस विद मल्टी इंजन इंस्ट्रूमेंट रेटिंग पायलट तैयार किए जा रहे हैं।

कोई युवा पायलट कैसे बन सकता है?

पायलट बनने की चाह रखने वाले युवाओं काे 10+2 फिजिक्स और मैथमेटिक्स के साथ पास होना चाहिए। पुलिस वैरिफिकेशन और मेडिकली फिट होने पर एडमिशन मिलता है। कोई भी युवा मंदसौर जाकर ट्रेनिंग सेंटर में फॉर्म भर सकता है। शुरुआत मे दो सप्ताह में फ्लाइंग और ग्राउंड की बेसिक ट्रेनिंग दी जाती है। इसके बाद दी गई ट्रेनिंग का टेस्ट होता है। टेस्ट में पास करने पर स्टूडेंट काे पायलट लाइसेंस इशू किया जाता है।

लाइसेंस इशू होने के साथ ही शुरू होती है फ्लाइंग ट्रेनिंग। साथ ही, ग्राउंड स्कूल की पढ़ाई भी करवाई जाती है। इसमें ग्राउंड सब्जेक्ट की परीक्षा होती है। यह परीक्षा DGCA द्वारा ली जाती है।

DGCA क्या है, यह करता क्या है?

DGCA (डायरेक्टर जनरल सिविल एविएशन) लाइसेंस इश्यू अथॉरिटी है, जो पायलट को लाइसेंस देती है। यह फ्लाइंग कंट्रोल अथॉरिटी है, जो देश में हर फ्लाइंग को कंट्रोल करती है। फ्लाइंग के लाइसेंसिंग प्रोसेस यही से होते हैं।

इसमें DGCA का रोल है?

इसमें स्टूडेंट को एनरोल कर अपने पेपर सबमिट करने होते हैं। फ्लाइंग की जितनी भी लाइसेंसिंग प्रोसेस है, वह डीजीसीए के माध्यम से ही पूरी होती हैं। इसके बाद डीजीसी पायलट का लाइसेंस जारी करता है।

9 से 12 महीने की ट्रेनिंग में 200 घंटों की उड़ान

स्टूडेंट को फ्लाइंग लाइसेंस जारी होने के बाद 9 से 12 महीने की फ्लाइंग ट्रेनिंग दी जाती है। इसमें 200 घंटे की फ्लाइंग होती है। यह 9 से 12 महीने में पूरी होती है। इसके बाद फ्लाइंग टेस्ट होता है, जिसे क्लियर करने के बाद डीजीसीए द्वारा लाइसेंस जारी किया जाता है।

पायलट बनने के लिए कितना खर्च आता है?

अभी हम कमर्शियल लाइसेंस की ट्रेनिंग दे रहे हैं। इसमें करीब 52 से 55 लाख खर्च आता है। हमारी फ्लाइंग फीस 36 लाख रुपए है। फ्लाइंग की फीस फ्यूल प्राइज पर डिपेंड करती है। प्लेन का ईंधन बाहर से आता है। इसमें बहुत खर्च होता है। फ्लाइंग फीस के बाद बच्चों के रहने खाने का खर्च भी होता है। कुल मिलाकर एडमिशन लेने से कमर्शियल लाइसेंस इश्यू होने का खर्च करीब 52 से 55 लाख का खर्च आता है।

पायलट बनने के बाद जॉब की कितनी संभावनाएं हैं?

एविएशन इंडस्ट्रीज की अगले 10 साल तक करीब 24 फीसदी की ग्रोथ रेट तय की गई है। कोरोना की वजह से इस इंडस्ट्रीज में भी थोड़ा उतार आया है, लेकिन भविष्य अच्छा है। कोरोना से पहले देश में कमर्शियल पायलट की खासी डिमांड थी। कोई पायलट बेरोजगार नहीं था। आगे ही ऐसी ही संभावनाएं हैं। अगले 8 से 10 साल तक हर साल दो से ढाई हजार पायलट की डिमांड होगी।

पायलट बनने के बाद जॉब लगी, तो सैलरी कितनी?

पायलट लाइसेंस इश्यू होने के बाद शुरुआत में 50 से 60 हजार की सैलरी मिलती है, लेकिन जैसे से आपकी 500 घंटे ही उड़ान पूरी होती है। सैलरी बढ़कर एक से डेढ़ लाख प्रति महीने हो जाती है। 1500 घंटे की उड़ान के बाद यह और बढ़ जाती है। इसके बाद जैसे-जैसे उड़ान का अनुभव बढ़ता जाता है, सैलरी भी बढ़ती जाती है।

कितनी तरह के पायलट लाइसेंस जारी होते हैं?

शुरुआत में स्टूडेंट लाइसेंस मिलता है। इसमें फ्लाइंग सिखाई जाती है। 200 घंटों की फ्लाइंग के बाद डीजीसी द्वारा कमर्शियल पायलट लाइसेंस जारी किया जाता है। इस कैटेगरी में सामान्य तरह के प्लेन उड़ा सकते हैं। एयर लाइन ट्रांसपोर्ट लाइसेंस मिलने के बाद हैवी यान को उड़ाने की अनुमति होती है। इसमें हर महीने साढ़े तीन लाख से ऊपर का पैकेज होता है।

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