कहानी है UP के उस DON की जिसने AK-47 बन्दूक दिखा कर जुर्म की दुनिया में सबसे उपर नाम बनाया

 
कहानी है UP के उस DON की जिसने AK-47 बन्दूक दिखा कर जुर्म की दुनिया में सबसे उपर नाम बनाया

श्री प्रकाश शुक्ल अपराधी और माफिया थे। वह अपने विरोधियों को मारने के लिए राजनेताओं द्वारा काम पर रखा जाता था। वह 22 सितंबर 1998 को गाजियाबाद में पुलिस मुठभेड़ में मारा गया था। मृत्यु के समय उनकी आयु लगभग 25 वर्ष थी।

Born Gorakhpur , India
Date of death : September 22,1998
Died : Ghaziabad, India
Date of Reg. : 2019-06-01

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कहानी है यूपी के उस डॉन की, जो अपराध और ताकत की सीढ़ियां इस तेजी से चढ़ा, जिस तेजी से किसी गेम में मिशन पूरे किए जाते हैं. बहन को छेड़ने वाले का मर्डर करके वह बदमाश बना. फिर उसकी लिस्ट में थे कई नेता और बदमाश. कच्ची उम्र में बड़ी हैसियत बना ली. एक दौर में यूपी के अखबार उसी की खबरों से रंगे होते थे. लखनऊ के हर नुक्कड़, चाय की दुकान और पान के ठीहों पर उसी की बातें होती थीं. लेकिन तब हद हो गई, जब उसने प्रदेश के चीफ मिनिस्टर कल्याण सिंह की सुपारी ले ली. इस सुपारी की कीमत थी 6 करोड़ रुपये.

श्रीप्रकाश शुक्‍ला! 90 के दशक में अपराध की दुनिया में एक ऐसा नाम जिसके खौफ से पूरा उत्तर प्रदेश कांपता था. पूर्वी उत्‍तर प्रदेश के गोरखपुर का 25-26 साल का शार्प-शूटर और ‘सुपारी किलर’ श्रीप्रकाश शुक्ला से पुलिस के साथ अपराधी भी खौफ खाते थे. श्रीप्रकाश और उसके पास मौजूद एके-47 दहशत का दूसरा नाम था. और आपको बता दूँ की श्री प्रकाश शुक्ला को पकड़ने के लिए ही यूपी में एसटीएफ का गठन हुआ था.

शुक्ला को ‘जिगरवाला बदमाश’ माना जाता था. श्रीप्रकाश शुक्ला की आम पहलवान से बदमाश बनने तक का सफर किसी हिन्दी फिल्म की कहानी से कम नहीं है.

श्रीप्रकाश शुक्ला का जन्म गोरखपुर के ममखोर गांव में हुआ था. उसके पिता एक स्कूल में शिक्षक थे. वह अपने गांव का मशहूर पहलवान हुआ करता था. साल 1993 में श्रीप्रकाश शुक्ला ने अपनी बहन को देखकर सीटी बजाने वाले राकेश तिवारी नाम के एक व्यक्ति की हत्या कर दी थी. 20 साल के श्रीप्रकाश की जिन्दगी का यह पहला जुर्म था. ऐसा कहा जाता है कि इस मर्डर के बाद वह बैंकॉक भाग गया था. लेकिन, पैसे की तंगी के चलते वह ज्यादा दिन वहां नहीं रह सका और भारत लौट आया. देश आने के बाद उसने मोकामा बिहार का रुख किया और सूबे के सूरजभान गैंग में शामिल हो गया.

उसके बाद तो मानो श्री प्रकाश ने कभी पीछे मुड कर नहीं देखा.. श्री प्रकाश अपने अनोखे अंदाज के कारण जल्द ही मीडिया की सुर्खियों में आ गया.. श्रीप्रकाश ने 90 के दशक में ak-47 जैसी खतरनाक बन्दूक का इस्तमाल कर अपने नाम का खौफ़ फैला दिया था.. उसका खुले आम मर्डर कर देना, दिन दहाड़े अपराध करना लोगो के दिल में उसके लिए और भी ज्यादा डर पैदा करने लगा था..

ऐसा नहीं था की अपराध की दुनिया में श्री प्रकाश से पहले कोई नहीं आया था पर श्री प्रकाश शुक्ला ने अपराध की दुनिया को एक अपने सबसे अलग अंदाज से हिला कर रख दिया था.. यूँ तो श्री प्रकाश का खौफ दिन ब दिन बढ़ते ही जा रहा था… पर 1997 में कुछ ऐसा हुआ जिसने पुरे उत्तर प्रदेश में श्री प्रकाश शुक्ला को अपराध की दुनिया का बेताज बादशाह बना दिया..

साल था 1997 और जगह थी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ. ऐसा कहा जाता है की श्री प्रकाश शुक्ला ने हरिशंकर तिवारी के कहने पर उनके धुर विरोधी वीरेन्द्र शाही की गोली मार कर हत्या कर दी थी..वह चिल्लुपार विधानसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहता था. इसके बाद तो यूपी में श्रीप्रकाश शुक्ला का आतंक कायम हो गया. क्युकी तिवारी और शाही दोनों के बीचे एक लम्बे समय से वर्चस्व की लड़ाई चल रही थी.. ऐसा माना जाता है की उस समय उत्तर प्रदेश दो गुटों में बटा हुआ था. एक था ब्राह्मण गुट और दूसरा था ठाकुर गुट..ब्राह्मण गुट के नेता माने जाते थे हरी शंकर तिवारी और ठाकुर गुट का प्रतिनिधित्व कर रहे थे वीरेन्द्र शाही. और श्री प्रकाश ने दिन दहाड़े वीरेन्द्र शाही की हत्या करके बॉल अपने पाले में ले ली थी..

श्री प्रकाश शुक्ला कितना बेखौफ़ था इसका अंदाजा इस वाकये से लगाइए की अगस्त 1997, दिलीप होटल, लखनऊ का कमरा नंबर 206 था. कमरे में चार लोग ठहाके लगा रहे थे. चाय नाश्ता कर रहे थे. होटल के नीचे दो लोग कार से उतरते हैं. उनके हाथ में एके47 थी. ये दोनों धड़धड़ाते हुए होटल की सीढियां चढने लगते हैं. एक शख्स कमरे के दरवाजे पर लात मारता है और दरवाजा खुलते ही अंधाधुंध गोलियां चलाना शुरु कर देता है. कमरे में बैठे चार लोगों में से तीन बेड के नीचे छुप जाते हैं जबकि एक की मौत हो जाती है. जाते-जाते गोली मारने वाला शख्स बोलता है. जान बचानी है तो भाग ले. जो भी मेरे और टेंडर के बीच में आएगा, वो गया काम से. दरअसल, वो श्रीप्रकाश शुक्ला था, जिसने होटल में घुसकर गोरखपुर के 4 ठेकेदारों को गोली मार दी थी. जिसमें एक की मौत हो जाती है, तीन घायल हो जाते हैं. ये सब टेंडर के लिए होता था.

ये तो सिर्फ एक काण्ड था, ऐसे ना जाने कितने काण्ड थे श्री प्रकाश के नाम जो आज तक अपराध की दुनिया में सुनाये जाते है.. जैसे जैसे दिन बीतते गए श्री प्रकाश के हौसले और मजबूत होते गए.. फिर वक्त आया 1998 का और ये वो साल था जिसने श्री प्रकाश के नाम का खौफ उत्तर प्रदेश से बिहार तक पहुचा दिया था..

श्रीप्रकाश शुक्ला को खौफ की दुनिया में असली शौहरत बिहार के मंत्री हत्याकांड से मिली. श्रीप्रकाश शुक्ला ने 13 जून 1998 को पटना स्थित इंदिरा गांधी अस्पताल के बाहर बिहार सरकार के मंत्री बृज बिहारी प्रसाद को उनके सुरक्षाकर्मियों के सामने ही गोलियों से भून दिया था. श्रीप्रकाश अपने तीन साथियों के साथ लाल बत्ती कार में आया और एके-47 राइफल से हत्याकांड को अंजाम देकर फरार हो गया था.    

इस क़त्ल के बाद श्री प्रकाश सिर्फ़ उत्तर प्रदेश तक ही नहीं बल्कि पुरे देश में पहचाना जाने लगा था.. मंत्री बृज प्रसाद की हत्या के बाद साफ़ हो गया था की उत्तर प्रदेश से ले कर बिहार तक रेलवे के ठेके पर सिर्फ एक ही नाम चलेगा और वो था श्री प्रकाश शुक्ला..

एक तरफ पुलिस जहाँ हर रोज़ श्री प्रकाश के किस्से सुन सुन कर थक गई थी, वही ख़बर आती है की इस बार श्री प्रकाश ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की सुपारी ले ली है. और सुपारी की किम्मत थी 6 करोड़ रूपए. ये सुनते ही मनो पुलिस के पैरो तलें जमीन खिसक गई थी..

जिसके बाद लखनऊ सचिवालय में यूपी के मुख्‍यमंत्री, गृहमंत्री और डीजीपी की एक बैठक हुई. इसमें अपराधियों से निपटने के लिए स्‍पेशल फोर्स बनाने की योजना तैयार हुई. 4 मई 1998 को यूपी पुलिस के तत्‍कालीन एडीजी अजयराज शर्मा ने राज्य पुलिस के बेहतरीन 50 जवानों को छांट कर स्पेशल टास्क फोर्स (STF) बनाई. इस फोर्स का पहला टास्क था श्रीप्रकाश शुक्ला को जिंदा या मुर्दा.  

हैरान करने वाली बात तो ये थी कि जिस गैंगस्टर ने 90 के दशक में पुलिस की नाक में दम कर रखा था, प्रशासन को उसकी शक्ल-ओ-सूरत के बारे में ही कोई जानकारी नहीं थी। सवाल यह था कि उसे तलाशा जाए तो कैसे। कहा जाता है कि जो तस्वीर मीडिया में सर्कुलेट की गई, उसमें चेहरा तो श्रीप्रकाश शुक्ला का था और बाकी शरीर बॉलिवुड ऐक्टर सुनील शेट्टी का जोड़ा गया था।     

इसके बाद एसटीएफ हरकत में आई और उसने तय भी कर लिया कि अब किसी भी हालत में श्रीप्रकाश शुक्‍ला का पकड़ा जाना जरूरी है. एसटीएफ को पता चला कि श्रीप्रकाश दिल्‍ली में अपनी किसी गर्लफ्रेंड से मोबाइल पर बातें करता है. एसटीएफ ने उसके मोबाइल को सर्विलांस पर ले लिया. लेकिन श्रीप्रकाश को शक हो गया. उसने मोबाइल की जगह पीसीओ से बात करना शुरू कर दिया. लेकिन उसे यह नहीं पता था कि पुलिस ने उसकी गर्लफ्रेंड के नंबर को भी सर्विलांस पर रखा है. सर्विलांस से पता चला कि जिस पीसीओ से श्रीप्रकाश कॉल कर रहा है, वो गाजियाबाद के इंदिरापुरम इलाके में है. खबर मिलते ही यूपी एसटीएफ की टीम फौरन लोकेशन की तरफ रवाना हो जाती है.

23 सितंबर 1998 को एसटीएफ के प्रभारी अरुण कुमार को मिली कि श्रीप्रकाश शुक्‍ला दिल्‍ली से गाजियाबाद की तरफ आ रहा है. श्रीप्रकाश शुक्‍ला की कार जैसे ही वसुंधरा इन्क्लेव पार करती है, अरुण कुमार सहित एसटीएफ की टीम उसका पीछा शुरू कर देती है. उस वक्‍त श्रीप्रकाश शुक्ला को जरा भी शक नहीं हुआ कि STF उसका पीछा कर रही है. उसकी कार जैसे ही इंदिरापुरम के सुनसान इलाके में दाखिल हुई, एसटीएफ की टीम ने अचानक श्रीप्रकाश की कार को ओवरटेक कर उसका रास्ता रोक दिया. श्रीप्रकाश शुक्ला को सरेंडर करने को कहा लेकिन वो नहीं माना और फायरिंग शुरू कर दी. पुलिस की जवाबी फायरिंग में श्रीप्रकाश शुक्ला मारा गया.

चूँकि श्रीप्रकाश शुक्ला अपने पास हर वक्त एके47 राइफल रखता था.इसलिए पुलिस को भी उससे मुकाबला करने के लिए ऐसे ही आधुनिक हथियारों की जरूरत थी.  पुलिस रिकार्ड के मुताबिक श्रीप्रकाश के खात्मे के लिए पुलिस ने जो मिशन किया. उस पर लगभग एक करोड़ रुपये खर्च हुए थे. यह अपने आप में इस तरह का पहला मामला था, जब पुलिस ने किसी अपराधी को पकड़ने के लिए इतनी बड़ी रकम खर्च की थी. उस वक्त सर्विलांस का इस्तेमाल किया जाना भी काफी महंगा था. इसे अभी तक का सबसे खर्चीला पुलिस मिशन कहा जा सकता है.

तो थी उत्तर प्रदेश के उस गैंगस्टर की कहानी जिसने तमंचो का इस्माल कर बदमाश बने लोगो को ak-47 जैसी बन्दूक दिखा कर अपना नाम जुर्म की दुनिया में सबसे उपर कर लिया था..

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