REWA : रीवा की बेटी वर्षा ने कुश्ती की राष्ट्रीय प्रतियोगिता में कामयाबी का गाड़ दिया झंडा : जानिए कैसा रहा सफर

 

REWA : रीवा की बेटी वर्षा ने कुश्ती की राष्ट्रीय प्रतियोगिता में कामयाबी का गाड़ दिया झंडा : जानिए कैसा रहा सफर

रीवा। जिस गांव की महिलाओं को घूंघट से निकलने में सदियां लग गईं उसी गांव की बेटी ने कुश्ती की राष्ट्रीय प्रतियोगिता में कामयाबी का झंडा गाड़ दिया। जी हां 17 वर्ष की वर्षा पांडेय ने बेंगलुरू में चल रही खेलो इंडिया की राष्ट्रीय कुश्ती प्रतियोगिता में रजत पदक हांसिल किया है। वर्षा रीवा जिले के कनौजा गांव के एक साधारण परिवार की हैं और मध्यप्रदेश की स्पोट्र्स अकादमी में प्रशिक्षण ले रही हैं। बेंगलुरू में 30 अप्रेल को हुए फाइनल के मुकाबले में महिला कुश्ती की संभावनाओं पर सब की नजर लगी हुई थी। कड़े और रोमांचक मुकाबले में वर्षा को रजत पदक में संतोष करना पड़ा। जूनियर वर्ग की वर्षा को उसकी कामयाबी के ट्रैक रिकॉर्ड देखते हुए सीनियर वर्ग में उतारा गया था। अब 29 मई को रांची में रैंकिंग के लिए होने वाली कुश्ती प्रतियोगिता में यदि वर्षा कामयाब रहती है तो एशियाड और ओलिंपिक ट्रायल के लिए उसका रास्ता साफ हो जाएगा।

कुश्ती में वर्षा का ट्रैक रिकार्ड

वर्षा सरकार के उसी सिस्टम की खोज का परिणाम है जिस सिस्टम को प्राय: हम गाली देते नहीं थकते। स्पोट्र्स टैलेन्ट सर्च स्कीम के तहत खेल अधिकारियों ने वर्षा को उसके गांव कनौजा से खोज निकाला। वर्ष 2017 में उसे मध्यप्रदेश की स्पोट्र्स एकडमी में दाखिला मिला। मेधावी वर्षा ने 2018 से अब तक प्रदेश में कुश्ती की विभिन्न प्रतियोगिताओं में लगातार आठ बार मुख्यमंत्री कप के साथ स्वर्ण पदक जीते।

वर्ष 2019 में खेलो इंडिया की राष्ट्रीय कुश्ती प्रतियोगिता में सिल्वर व नेशनल स्कूल्स गेम्स में भी सिल्वर मेडल जीते। दो वर्ष कोरोना में व्यर्थ होने के बाद इस वर्ष 2022 में वह जूनियर होते हुए भी कुश्ती के सीनियर वर्ग के अखाड़े में उतरी, एक प्वाइंट के अंतर से वह रजत पदक तक ही रह गई।

साक्षी मलिक को मानती है आदर्श

ओलंपिक के अखाड़े में भारतीय कुश्ती के धमक की आकांक्षा रखने वाली वर्षा की आदर्श साक्षी मलिक है। वही साक्षी मलिक जिन्होंने वर्ष 2016 के रियो-डि-जेनेरियो में कांस्य पदक प्राप्त करने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बनीं। वर्षा तब छोटी थी और पहली बार साक्षी को टीवी में विक्ट्री पोडियम में देखा था। अब न वह सिर्फ साक्षी से कई बार मिल चुकी वरन लखनऊ और पटियाला में उनसे टिप्स भी लिए। कुश्ती की ओर रुझान कैसे हुआ? इस पर वर्षा बताती हैं कि उसने अपने दादा के मुंह से रीमा राज्य के गामा पहलवान की कुश्ती के बारे में सुन रखा था।

गांव में गामा के नाम से तंज

इस मुकाम तक पहुंचने के पीछे वर्षा अपनी मां को श्रेय देती है। मां ब्रजेश्वरी देवी एक शिक्षक हैं व पिता वीरेन्द्र पांडेय अधिवक्ता। स्पोट्र्स टैलेंट सर्च में मां ही वर्षा की अंगुली पकड़ कर ले गईं थी। कबड्डी, तैराकी, एथलेटिक्स के भी विकल्प थे लेकिन कुश्ती वर्षा का प्रेम था। मां ने भी इसी दिशा में प्रोत्साहित किया। वर्षा बताती है कि मेरे लिए मां को बहुत कुछ सुनना व सहना पड़ा है 'बड़ी चली है बिटिया को गामा बनानेÓ। मां ने कभी भी ऐसी उलाहना की परवाह नहीं की वे आज भी मेरी ऊर्जा की स्त्रोत हैं।

गामा से जुड़ी है रीवा की कुश्ती परंपरा

रीवा में राजाओं के जमाने से कुश्ती की उज्ज्वल परंपरा रही है। महाराज व्यंकटरमण ने गामा पहलवान को प्रश्रय दिया। गामा का उत्कर्ष रीवा में ही हुआ। वे अमहिया(रीवा का एक मोहल्ला) के सरदार अखाड़े में अभ्यास करते थे और नए प_ों को पहलवान बनाते। रीमा राज्य का प्रतिनिधित्व करते हुए वे राष्ट्रीय चैम्पियन बने। यहीं से इंग्लैंड गए जहां विश्व विजेता का खिताब मिला। गामा के प्रमुख शिष्यों में रीवा जिले के बड़ी हर्दी गांव के रामभाऊ पहलवान थे जो वर्षों तक रीवा राज्य के चैम्पियन रहे। उनके पुत्र कैप्टन बजरंगी प्रसाद तैराकी के ओलंपियन व प्रथम अर्जुन पुरस्कार विजेता बने। जिस वातावरण से निकल कर बजरंगी प्रसाद ओलिंपिक तक पहुंचे वैसी ही पृष्ठभूमि वर्षा पांडेय की भी है। जिद-जज्बा-जुनून ऐसे ही बना रहा तो आज नहीं कल एशियाड और ओलिंपिक की टिकट पक्की मानी जा रही है।

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