Taj Mahal के निर्माण की असली सच्चाई : देश-दुनिया तक एक बार फिर गरमाया ताजमहल का मामला : पढ़िए पूरी कहानी

 

Taj Mahal के निर्माण की असली सच्चाई : देश-दुनिया तक एक बार फिर गरमाया ताजमहल का मामला : पढ़िए पूरी कहानी

ऐतिहासिक विरासत ताजमहल को लेकर राजनीति के गलियारों से लेकर एलन-मस्क यानि देश-दुनिया तक एक बार फिर हलचल मच गई है। जयपुर के पूर्व राजघराने की सदस्य व राजसमंद सांसद दीयाकुमारी की ओर से ताजमहल को तेजो महालय बताकर अपनी सम्पत्ति का दावा करने के बाद सुर्खियां और अधिक बढ़ गई हैं। ताजमहल के निर्माण की सच्चाई क्या है। यह तो सरकार व पुरातत्व विभाग की उच्च स्तरीय जांच का मसला है, लेकिन ताजमहल का निर्माण कैसे व किन हालातों में हुआ, यह इतिहास के पन्नों में जरूर दर्ज है।

विश्व के सात अजूबों में शामिल आगरा के ताजमहल के निर्माण में सबसे बड़ा योगदान राजस्थान (राजपूताना) का ही रहा था। ताजमहल के निर्माण में राजस्थान के मजदूरों का पसीना बहा था। 1632 में मुगल बादशाह शाहजहां ने तारीफों के पुल बांधकर व दबाव बनाकर आमेर जागीर के मिर्जा राजा जयसिंह से मजदूर व छकड़े (बैलगाडिय़ां) मंगवाए थे। बादशाह के शाही फरमान की पालना में राजस्थान की खदानों से संगमरमर पत्थर भेजा गया था। यदि उस समय मिर्जा राजा जयसिंह पत्थर व मजदूर भेजने में मदद नहीं करते तो शायद हमें ताजमहल की अनुपम कृति देखने को नहीं मिलती।

मुगल बादशाह शाहजहां ने ताजमहल के निर्माण कार्य में संकट आने पर अपने अधीन आमेर (जयपुर) जागीर के मिर्जा राजा जयसिंह को फरमान लिखे थे। ऐसे फरमान राजस्थान राज्य अभिलेखागार निदेशालय बीकानेर व अजमेर में संरक्षित हैं। इन फरमानों के अनुसार शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल की याद में राजधानी आगरा में ताजमहल के निर्माण में राजस्थान के मकराना (नागौर), आमेर (जयपुर), राजनगर (राजसमंद) से बड़े स्तर पर संगमरमर पत्थर मंगवाए थे।

आमेर से बुलवाए थे मजदूर-

शाहजहां ने 21 जनवरी 1632, 21 जून 1637 तथा 9 सितम्बर 1632 को जारी फरमानों में से एक में मिर्जा राजा जयसिंह से कहा कि आमेर की नई खान से मुकलशाह को संगमरमर निकालने भेजा है। मुकलशाह जितने भी पत्थर काटने वाले मजदूर व किराए की गाडि़यां मांगे, उसे उपलब्ध कराएं। मजदूरी व गाडिय़ों के किराए की रकम बादशाह के कोषाधिकारी कोष पहुंचा देगा।

दूसरे फरमान में शाहजहां ने आगरा में संगमरमर लाने के लिए बहुत से छकड़ों व गाडि़यों की आवश्यकता बताई। फरमान में सैयद इलाहदाद को गाडिय़ां, मजदूर उपलब्ध कराने और सबका हिसाब करके भेजने का आदेश दिया था।

राजाओं की तारीफों के बांधते थे पुल

मुगल शासक राजपूताना के राजाओं पर दबाव की रणनीति अपनाने के साथ ही तारीफों के पुल भी बांधते थे। राजाओं को मुगल शासकों का फरमान मानना ही पड़ता था। शाहजहां की ओर से मिर्जा राजा जयसिंह के नाम जारी फरमान में उनकी तारीफों के पुल बांधे गए। फरमान में मिर्जा राजा जयसिंह को अपने समकक्ष सरदारों में श्रेष्ठ, स्वामिभक्त, निष्कपट, निस्वार्थ, एहसान व कृपा पाने योग्य जैसे शब्दों से सम्बोधित किया गया।

इनका कहना है

ऐतिहासिक विरासत ताजमहल के निर्माण में राजस्थान का बहुत बड़ा योगदान है। राजस्थान राज्य अभिलेखागार निदेशालय की संचय शाला में मुगलकालीन फारसी फरमानों के दस्तावेज संरक्षित हैं। जिसके अनुसार मुगल शासकों ने राजपूताना के राजाओं पर दबाव बनाकर ताजमहल निर्माण के लिए मजदूर व अन्य सामग्री मंगवाई थी।

बसंतसिंह सोलंकी, सहायक निदेशक, राजस्थान राज्य अभिलेखागार, उदयपुर

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