MP NEWS : सीएम ने अफसरों को दीं कई नसीहतें : बोले; ग्राउंड पर जाकर देखें हकीकत, रिपोर्ट में सब सच नहीं होता

 
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MP NEWS : कोरोना के संकट से राहत मिलने के बाद राजधानी में आईएएस सर्विस मीट की शुरुआत हुई। प्रशासन अकादमी में इस मीट का उद्घाटन सीएम शिवराज सिंह चौहान ने किया। इस मौके पर आईएएस मो. सुलेमान, विवेक पोरवाल सहित प्रदेश भर के कलेक्टर और तमाम विभागों के अफसर मौजूद रहे। इस कार्यक्रम में सीएम ने अफसरों को कई नसीहतें दीं। अच्छा काम करने वाले इनोवेशन करने वाले कलेक्टर्स की तारीफ भी की। सीएम ने कोरोना के संकट में अच्छा काम करने वाले अफसरों और पूरी टीम के अनुभवों के बारे में बताया।

ग्राउंड पर देखें हकीकत, रिपोर्ट में सब सच नहीं होता

सीएम ने आईएएस अफसरों से कहा- फील्ड के अफसर काम करते हैं, लेकिन मैं वल्लभ भवन में हमेशा कहता हूं कि फील्ड में दौरा होने चाहिए। इसके बिना वास्तविकता का अंदाजा नहीं लग सकता। अगर हम नीचे वाले से रिपोर्ट लेंगे, तो यही कहेगा कि बहुत बढ़िया।। शानदार परफॉरमेंस है सर। मैं भी जब रिपोर्ट लेता हूं तो कोई अन्यथा न ले, हम जब चर्चा करता हूं तो अच्छी-अच्छी बातें सामने आती हैं। लेकिन जब मैं सिंचाई की योजना देखने को चला गया तो पता चला कि वहां टेल तक पानी नहीं हैं। कई जगह नहरें कटी-फटी पड़ी हैं। मैं ACS की आलोचना नहीं कर रहा, वो सिंचाई के लिए अच्छा काम कर रहे हैं। ऑफिस और फील्ड में बैंलेंस बनाना पड़ेगा। ये तब होगा जब अहंकार मुक्त होकर काम करें।

कोरोना संकट के दिन याद करके रोंगटे खडे़ हो जाते हैं- सीएम

टीम के लिए चुनौती बड़ी थी, लॉकडाउन में जनता की नाराजगी थी। कई कठिनाइयों से जूझते हुए कोविड का बेहतर ढंग से मुकाबला किया। मुझे वो शुरुआती दिन याद आते हैं जब हम लोगों को लगा कहां से बिस्तर की व्यवस्था करेंगे। फिर प्रायवेट अस्पतालों से बात करके व्यवस्था की। शुरुआत में एकाध दवाई का नाम ही पता था। ज्यादा कुछ पता नहीं था, लेकिन रोज रिसर्च होती थी। मैं कलेक्टर्स समेत अफसरों को बधाई देना चाहता हूं। कोविड का मुकाबला जनता के साथ किया।

दिल में चुभ गई थी शरद पवार की बात

सीएम ने कहा- मैं शुरू में जब मुख्यमंत्री बना, उस समय गेहूं का कोटा केन्द्र से आवंटित कराना पड़ता था। शरद पवार उस समय फूड और एग्रीकल्चर मिनिस्टर थे। मैंने उनसे आग्रह किया कि मप्र में इतने पात्रों के लिए राशन कम पड़ रहा है, अलॉटमेंट बढ़ा दें। तो उन्होंने कहा कि मप्र में आप प्रोक्योरमेंट करते नहीं हो, और कोटा लेने आ जाते हो। ये बात मेरे दिल में चुभ गई।

मैंने संकल्प लिया कि एक दिन ऐसा आएगा कि भारत सरकार कहेगी कि हमारे पास गेहूं रखने के लिए जगह नहीं है। मैं गर्व के साथ कह सकता हूं कि कांग्रेस राजा, नवाब, अंग्रेज सब राज मिला लें तो 7500 हजार हेक्टेयर सिंचित थी। आज बढ़कर 45 लाख हेक्टेयर सिंचित जमीन कर दी। फिर शरद पवार और प्रणव मुखर्जी थे। 2012 में मप्र में गेहूं का ऐसा उत्पादन हुआ कि खेतों खलिहानों के ढेर चारों तरफ लगे थे।

मैं फिर गया शरद पवार जी के पास और कहा कि हमारे यहां अन्न के भंडार भरे पड़े हैं। मुझे बोरे दे दो। हमने उस समय बोरों के संकट के चलते ओपन में खुली खरीदी करा दी थी। बाद में हम साइलो में गए थे। बैगों में भर-भर कर खेतों में लाइन लगा दी थी। ये मेरे लिए गर्व करने का विषय है इसका श्रेय में आपको देता हूं। गेहूं की खरीदी में पंजाब को पीछे छोड़़ दिया।

कलेक्टरों की ऐसे की तारीफ
इंदौर - प्रवासी भारतीय सम्मेलन में इंदौर के लोगों ने अभूतपूर्व अतिथि परंपरा का परिचय दिया। प्रवासियों को ऐसा लग रहा था कि हम बारात में आए हों। कई बार तो ऑटो वालों ने प्रवासियों के पैसे लेने से इनकार कर दिया। सीएम ने उद्योग विभाग में पदस्थ आईएएस मनीष सिंह और सीएम के पीएस मनीष रस्तोगी की तारीफ की। कई बार विशेषताओं पर नहीं आलोचनाओं पर बात होती है। मैं भी कई बार कोई न कोई कमी निकालता रहता हूं।

उसके पीछे ये सोच होती है कि हम और बेहतर कैसे करें। कुछ कलेक्टर अच्छा काम कर रहे हैं। में इंदौर गया तो इलैयाराजा के सामने एक दिव्यांग महिला जनसुनवाई में आई, पहले भी वह कई लोगों के पास गई लेकिन किसी ने मदद नहीं की, लेकिन कलेक्टर इलैया ने उससे जनसुनवाई में न सिर्फ आवेदन नहीं लिया, बल्कि उसे बैटरी वाली गाड़ी दे दी, जिससे वो सब्जीवाला हाथ ठेला बांधकर आजीविका चला रही है।

मंडला - आमतौर पर लोग आवेदन ले लेते हैं दूसरा होता है कि जनसंवेदनाएं आपके भीतर होतीं हैं। जब तक समस्या हल नहीं हो जाती, आपको चैन नहीं आता। मंडला में अडॉप्ट इन आंगनवाड़ी में हर्षिका सिंह ने अच्छा काम किया है। मैं किसी के काम को कम नहीं आंक रहा, लेकिन जो अच्छा काम कर रहे हैं उनकी तारीफ भी करना पड़ेगी।

डिंडोरी- यहां विकास मिश्रा सुबह छह बजे से निकल पड़ते हैं। मुझे जनता ने फोन करके कहा- ये गजब के कलेक्टर हैं। सुबह से रात तक काम में लगे रहते हैं।

प्रवीण सिंह ने सीहोर में शिक्षा के लिए शिक्षकों के साथ मिलकर उनके आर्थिक सहयोग से 1500 टीवी खरीदकर स्मार्ट क्लास बना दी। मेरे क्षेत्र में जो मैं नहीं सोच पाया वो कलेक्टर ने कर दिया। बड़े शहर हों या छोटे जिले हमारे यंग अफसर इनोवेटिव आईडियाज के साथ काम कर रहे हैं। सीएम जनसेवा अभियान में कलेक्टरों और पूरी टीम ने 83 लाख लोगों को शिविर लगाकर लाभान्वित कराया। 5 फरवरी से उनको लाभ देना हम शुरू कर रहे हैं।

बड़वानी में कुष्ठ रोगियों के लिए कलेक्टर शिवराज वर्मा ने अच्छा काम किया है। कुष्ठ रोगी दडवे में रहते थे, लेकिन कलेक्टर उनके लिए घर बनवा रहे हैं। मैं उनके बीच गया तो वे लोग हाथ मिलाने में संकोच कर रहे थे, लेकिन मैंने उन्हें गले लगा लिया तो वे भावुक हो गए। मेरे सुरक्षाकर्मियों से झगड़ा इसलिए होता है, क्योंकि वे पीछे धकेलते हैं। में लोगों को आगे बुलाता हूं। वे हाथ छुड़ाते हैं, तो मैं कहता हूं कि हाथ उन्होंने मैंने पकड़ा है। मैं ये चाहता हूं कि जनता और हमारे बीच की दूरी मिट जाए।

मैंने बचपन की मस्ती नहीं देखी- सीएम

सीएम ने कहा- मैंने बचपन की मस्ती कभी देखी नहीं, क्योंकि 17 साल की उम्र में आपातकाल का विरोध करते हुए जेल चला गया था। उसके बाद मैं संगठन मंत्री बन गया, तो और भी गंभीर हो गया। मैंने किशोर और युवा वाली मस्ती नहीं देखी। दो तरह के लोग होते हैं। कुछ लोगों के पास काम लेकर जाओ, तो कहेंगे कुछ हो ही नहीं सकता, कहां चक्कर में पड़े हो। ऐसे लोग होते हैं कि जिंदा आदमी को भी मुर्दा कर दें। अफसरों में भी कुछ ऐसे होते हैं, जो हमें नर्वस और निराश कर देते हैं। कुछ ऐसे होते हैं, जो कहते हैं कि असंभव कुछ नहीं है। मुर्दे में भी प्राण फूंक दें।

परिवार का ध्यान रखें, नौकरी में बच्चे न छूटें
सीएम ने अफसरों से कहा- हम नौकरी के व्यस्त समय में से परिवार और बच्चों के लिए भी टाइम निकालें। कई बार काम के चक्कर में बच्चों पर ध्यान देना भूल जाते हैं। बच्चों की पढ़ाई का ध्यान रखें। उनके लिए टाइम निकालें। मैं हर साल के अंत में परिवार के साथ बाहर जाता हूं। इस साल भी गया था, तो दोनों बेटों को गीता के 18 अध्याय पढ़ाए। आप लोग भी परिवार और नौकरी में संतुलन बनाएं। कई बार नौकरी के चक्कर में परिवारों में तनाव देखता हूं।

हम अगर चाहते तो प्रायवेट सेक्टर में मोटी तनख्वाह पा सकते थे। सुविधाएं ले सकते थे लेकिन हमने अलग क्षेत्र चुना। कैरियर बनाना है सुविधाओं का लाभ उठाना है। ये केवल इसके लिए नहीं हैं। हम किसी कंपनी के लिए नहीं, बल्कि देश बनाने के लिए काम कर रहे हैं। ये देश बनाने की सेवा कर रहे हैं। कुछ साल पहले मैं टिप्पणियां सुनता था। ये इंडियन टाइम है, हम ही मजाक उडाते थे कि ये इंडिया तो सुधर ही नहीं सकता। आज भारत की स्थिति कितनी अलग है। पहली बार ऐसा हुआ कि आठ महीने में दो-दो स्वदेशी वैक्सीन बनी। दो करोड़ से ज्यादा डोज लगे।

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