MP में उलटा इंसाफ? ब्लैकमेलिंग का शिकार BSF परिवार, केस उन्हीं पर दर्ज!

ऋतुराज द्विवेदी। सांची (मध्य प्रदेश)। मध्यप्रदेश के सांची से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है, जहाँ बीएसएफ (BSF) जवान का परिवार पहले तो ब्लैकमेलिंग का शिकार बना और अब आरोपी की आत्महत्या के बाद उल्टा उसी परिवार पर केस दर्ज कर दिया गया है। यह मामला अब न केवल न्याय प्रक्रिया, बल्कि स्थानीय पुलिस की कार्रवाई पर भी सवाल खड़े कर रहा है।
घटना का पूरा घटनाक्रम
बताया जा रहा है कि बीएसएफ में तैनात एक जवान के परिजनों को एक स्थानीय युवक द्वारा निजी वीडियो और चैट्स के जरिए ब्लैकमेल किया जा रहा था। युवक द्वारा लगातार मानसिक दबाव और धमकी दी जा रही थी, जिससे पूरा परिवार तनाव में आ गया। इस बीच आरोपी युवक ने अचानक आत्महत्या कर ली। उसके पास से एक सुसाइड नोट भी बरामद हुआ, लेकिन इसमें पीड़ित परिवार को दोषी ठहराना स्पष्ट नहीं था। इसके बावजूद पुलिस ने एफआईआर दर्ज करते समय बीएसएफ जवान के परिजनों के खिलाफ धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत मामला दर्ज कर लिया।
न्याय प्रक्रिया पर उठे सवाल
इस घटना ने न्यायिक व्यवस्था को कटघरे में खड़ा कर दिया है। जिस परिवार को ब्लैकमेलिंग का शिकार बताया जा रहा था, अब वही आरोपितों की सूची में शामिल है। सवाल ये भी उठता है कि क्या ब्लैकमेलिंग का शिकार होने वाले को, यदि ब्लैकमेल करने वाला आत्महत्या कर ले, तो उस पर कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए?
पुलिस की भूमिका संदिग्ध
स्थानीय लोगों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि पुलिस ने मामले में जल्दबाज़ी में कार्रवाई की और सुसाइड नोट की गंभीरता या वैधता की गहनता से जांच नहीं की। बीएसएफ जवान के परिजन अब खुद कानूनी मदद लेने के लिए वकीलों से संपर्क कर रहे हैं।
परिवार की अपील
परिवार का कहना है कि उन्हें बदनाम करने और प्रताड़ित करने के लिए इस तरह का झूठा मुकदमा दर्ज किया गया है। उनका यह भी कहना है कि उन्होंने ब्लैकमेलिंग के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने का प्रयास किया था, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हुई।
न्याय व्यवस्था पर सवाल
निष्कर्ष
यह मामला न केवल एक परिवार के लिए न्याय की तलाश का विषय बन गया है, बल्कि समाज, प्रशासन और कानून तीनों के बीच समन्वय की वास्तविक परीक्षा भी है। जरूरत है निष्पक्ष जांच और न्यायसंगत फैसले की, ताकि वाकई पीड़ित को न्याय मिल सके।