MP Vidhan Sabha Election 2023 : मतदाताओं ने पुराना रिकार्ड तोडा,76.22% हुआ मतदान : PM योजना का भी बड़ा योगदान, परिणाम के संकेत भी साफ

 
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भोपाल। मध्य प्रदेश में लोकतंत्र का महापर्व यानी मतदान शुक्रवार को संपन्न हो गया। वर्ष 2008, 2013 और 2018 में हुए तीन विधानसभा चुनावों से ज्यादा मतदान कर उत्साहित मतदाताओं ने पुराना रिकार्ड तोड़ दिया। अधिक मतदान के मायने और संकेतों को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है। मतदाताओं के इस उत्साह के कारणों की चर्चा भी हो रही है।

मीडिया ने भी इसकी वजह तलाशने का प्रयास किया कि मतदान का रुझान हर चुनाव में क्यों बढ़ रहा है। निश्चित तौर पर मतदान के लिए जागरूकता तो बड़ा कारण है ही, एक बड़ी वजह ‘मोदी मैजिक’ भी है। हम बात आरंभ करते हैं वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव से, तब नरेन्द्र मोदी भाजपा का चेहरा नहीं थे। तब मध्य प्रदेश में 69.52 प्रतिशत मतदान हुआ था। इसमें भाजपा को 36.81 प्रतिशत वोट मिले और सरकार बन गई। वर्ष 2013 में मोदी भाजपा का चेहरा बन गए थे और इसी मोदी लहर में मध्य प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हुए। वर्ष 2013 में 72.69 प्रतिशत मतदान हुआ यानी तीन प्रतिशत से अधिक मतदान बढ़ा।

भाजपा का मत प्रतिशत भी बढ़कर 44.87 तक पहुंच गया। कहीं न कहीं इसके पीछे मोदी का चेहरा ही था। वर्ष 2018 के चुनाव में भी तीन प्रतिशत की वृद्धि के साथ मतदान का प्रतिशत 75.63 हो गया हालांकि भाजपा का मत प्रतिशत घटकर 41.02 पर आ गया। इस चुनाव को भाजपा ने स्थानीय चेहरों को सामने रखकर लड़ा था।

यही कारण रहा कि मतदान बढ़ने के बावजूद भाजपा की लोकप्रियता (मत प्रतिशत) कम हो गई। इसे हम दूसरे दृष्टिकोण से भी समझ सकते हैं कि विधानसभा चुनाव के बाद जब लोकसभा चुनाव वर्ष 2019 में हुए तो भाजपा का मत प्रतिशत बढ़कर 58 हो गया। इन्हें हम विधानसभा सीटों की संख्या के हिसाब से देखें तो दो सौ से ज्यादा सीटों पर भाजपा ने बढ़त बनाई थी। मत प्रतिशत में भी लगभग 17 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

चुनाव में मोदी के नाम का दिया नारा
वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव में ‘एमपी के मन में मोदी- मोदी के मन में एमपी’ के नारे के साथ भाजपा ने यहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का चेहरा सामने रखकर चुनाव लड़ा। जनता ने भी इसे स्वीकारा और मत प्रतिशत का नया रिकार्ड बनाया। स्वाभाविक तौर पर ‘मोदी मैजिक’ के कारण मतदाताओं में यह उत्साह दिखाई दिया है।

इसकी एक वजह यह भी है कि पीएम मोदी की सारी रैलियां छोटे और ग्रामीण क्षेत्रों में हुई, जहां शहरों की तुलना में मतदान ज्यादा हुआ है। मतदान बढ़ाने में लाड़ली बहना योजना और केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री आवास योजना और अन्य योजनाओं का भी बड़ा योगदान रहा है। भाजपा ने इसकी ब्रांडिंग और पैकेजिंग ऐसी की कि यह मतदाताओं को भा गई। इसके मुकाबले कांग्रेस कोई मुद्दा खड़ा नहीं कर पाई।

‘लाड़ली बहना’ जैसी योजना को पीएम मोदी की उज्ज्वला और आवास योजना से जोड़ने के कारण ही महिला मतदाताओं ने भी भारी उत्साह से मतदान किया। किसान भी खुश थे क्योंकि दो दिन पहले ही किसान सम्मान निधि खाते में आई थी। धान और गेहूं के समर्थन मूल्य पर बोनस देने की भाजपा की बात भी किसानों के गले उतर गई।

शहरी लोगों की घट रही रुचि
आदिवासी वर्ग की सीटों पर भाजपा के लिए खोने को कुछ नहीं था, सो वहां भी बढ़े हुए मतदान ने उत्साह जगाया है। मतदान बढ़ाने में भाजपा कार्यकर्ताओं ने भी अहम जिम्मेदारी निभाई। उन्होंने जमीन पर काम किया और बता दिया कि जब वे जुट जाते हैं तो कोई लक्ष्य बड़ा नहीं होता है। हां, इस चुनाव ने शहरों में हुए कम मतदान ने एक बड़ा सबक दिया है, इस पर चिंतन करना आवश्यक है। इसका कारण भी खोजना जरूरी है कि मतदान के लिए शहरी लोगों की रुचि क्यों घट रही है।

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