पुलिस की वर्दी पर 'प्रेस' का दाग: ब्लैकमेलिंग का धंधा कर रहे फर्जी पत्रकारों पर चुप्पी क्यों? प्रदेश की जनता मांग रही जवाब!

 
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प्रदेश में फर्जी पत्रकारों की बाढ़: क्या है इसके पीछे का सच? कॉपी-पेस्ट करने वाले फर्जी पत्रकारों का असली अधिमान्य पत्रकारों पर हमला और कानूनी कार्रवाई में हो रही देरी पर एक तीखा विश्लेषण।

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) आज के सोशल मीडिया और डिजिटल युग में जानकारी का प्रसार बहुत तेजी से हो रहा है। लेकिन इस तेजी के साथ ही, फर्जी पत्रकारों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। ये लोग खुद को 'पत्रकार' बताते हैं, अपनी गाड़ियों पर प्रेस के स्टीकर लगाते हैं, और बिना किसी जांच-पड़ताल के मनमाने ढंग से खबरें चलाते हैं। इनका मुख्य काम एक-दूसरे की खबरों को कॉपी-पेस्ट करना और गलत जानकारी फैलाना होता है। यह एक गंभीर समस्या है जो समाज में न केवल भ्रम पैदा करती है, बल्कि असली और अधिमान्य पत्रकारों की प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुंचाती है।

यह दस्तावेज़ सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 (IT Rules, 2021) के आधार पर इन सभी सवालों का जवाब देगा।

पत्रकारिता के पवित्र पेशे पर कलंक: असामाजिक तत्वों की आपराधिक गतिविधियां और पुलिस से साठ-गांठ का पर्दाफाश
आज के समाज में पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है, एक ऐसा पवित्र पेशा जिसका उद्देश्य सच्चाई और न्याय के लिए आवाज उठाना है। हालांकि, कुछ असामाजिक तत्व इस पेशे की आड़ में आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देकर इसकी गरिमा को लगातार ठेस पहुंचा रहे हैं। ये लोग 'प्रेस' के नाम का दुरुपयोग कर अपनी अवैध हरकतों को छिपाते हैं और पुलिस प्रशासन के साथ साठ-गांठ बनाकर कानून को धता बताते हैं।

'पवित्र पेशे' की आड़ में आपराधिक गतिविधियाँ
इन असामाजिक तत्वों का सबसे बड़ा हथियार 'प्रेस' का कार्ड और गाड़ी पर लगा 'प्रेस' का स्टीकर होता है। ये लोग इसका इस्तेमाल आम जनता और अधिकारियों को डराने-धमकाने, अवैध वसूली करने और आपराधिक मामलों में हस्तक्षेप करने के लिए करते हैं।

  • अवैध वसूली और ब्लैकमेलिंग: ऐसे फर्जी पत्रकार अक्सर छोटे-मोटे विवादों या निजी जानकारी को आधार बनाकर लोगों से पैसे ऐंठते हैं। वे धमकी देते हैं कि अगर उनकी मांग पूरी नहीं हुई तो वे उस खबर को वायरल कर देंगे।
  • फर्जी खबरें फैलाना: बिना किसी तथ्य की जाँच किए ये लोग सनसनीखेज खबरें बनाकर समाज में भ्रम और डर फैलाते हैं। इनका मकसद केवल अपनी 'पहुंच' और 'ताकत' का प्रदर्शन करना होता है।
  • पुलिस को सीधी चुनौती: ये लोग अक्सर उन पुलिस अधिकारियों को निशाना बनाते हैं जो ईमानदारी से काम करते हैं, ताकि उनकी मनमानी पर कोई रोक न लगा सके।

'प्रेस' माफिया और पुलिस की साठ-गांठ
यह एक गंभीर मुद्दा है कि ऐसे फर्जी पत्रकार बिना किसी डर के काम करते रहते हैं। इसका एक बड़ा कारण पुलिस से उनकी कथित साठ-गांठ है। कई मामलों में पुलिस भी इनके दबाव में आकर कार्रवाई करने से बचती है, या फिर जानबूझकर इन लोगों की अवैध गतिविधियों को अनदेखा कर देती है।

  • कार्रवाई में देरी: जब किसी फर्जी पत्रकार के खिलाफ शिकायत दर्ज होती है, तो पुलिस अक्सर उसे गंभीरता से नहीं लेती है। इस देरी का फायदा उठाकर आरोपी बच निकलते हैं और शिकायतकर्ता पर दबाव बनाते हैं।
  • अधिकार का दुरुपयोग: कुछ पुलिसकर्मी अपने निजी स्वार्थ के लिए भी इन फर्जी पत्रकारों का इस्तेमाल करते हैं। इस तरह की साठ-गांठ से कानून का पालन करने वाले ईमानदार अधिकारियों और पत्रकारों, दोनों का मनोबल गिरता है।

कैसे पहचानें फर्जी पत्रकारों को?
यह ज़रूरी है कि आम जनता और अधिकारी ऐसे तत्वों को पहचानें।

  • मांगें मान्यता: एक असली पत्रकार के पास सरकार द्वारा जारी अधिमान्य (Accredited) पास या आईडी कार्ड होता है।
  • तथ्य-आधारित रिपोर्टिंग: असली पत्रकार अपनी खबरों को तथ्यों और दोनों पक्षों की बात सुनने के बाद ही प्रकाशित करते हैं, जबकि फर्जी पत्रकार केवल एकतरफा और सनसनीखेज जानकारी देते हैं।
  • दबाव बनाने का प्रयास: यदि कोई पत्रकार आपको किसी खबर को दबाने या प्रकाशित करने के लिए धमकी देता है, तो वह फर्जी हो सकता है।

क्या YouTube न्यूज़ प्लेटफॉर्म के लिए अधिकृत है?

YouTube मूल रूप से एक मनोरंजन और वीडियो साझाकरण (entertainment and video-sharing) का मंच है। यह कोई समाचार संगठन या समाचार प्रसारण मंच नहीं है। YouTube खुद को एक मध्यवर्ती (intermediary) के रूप में परिभाषित करता है, जिसका मतलब है कि यह केवल उपयोगकर्ताओं को वीडियो अपलोड करने और देखने की सुविधा देता है। यह अपने मंच पर डाली गई सामग्री की प्रामाणिकता या सत्यता के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं है।

  • अनाधिकृत (Unauthorized) प्लेटफॉर्म: तकनीकी रूप से, YouTube किसी भी व्यक्ति को 'न्यूज़ पब्लिशर' के रूप में अधिकृत नहीं करता है। कोई भी व्यक्ति चैनल बना सकता है और उस पर सामग्री अपलोड कर सकता है, चाहे वह समाचार हो या मनोरंजन। यही कारण है कि यह एक ऐसा मंच बन गया है जहाँ कोई भी बिना किसी जवाबदेही के 'पत्रकार' बन सकता है।

YouTube चैनल और रजिस्टर्ड न्यूज़ पब्लिशर के बीच का अंतर

कानूनी तौर पर, एक साधारण YouTube चैनल और एक रजिस्टर्ड डिजिटल न्यूज़ पब्लिशर के बीच बहुत बड़ा अंतर होता है।

  • अनिवार्य पंजीकरण (Mandatory Registration): IT Rules, 2021 के तहत, जो भी डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म (YouTube चैनल, वेबसाइट, न्यूज़ पोर्टल) समाचार और समसामयिक विषयों पर सामग्री प्रकाशित करता है, उसे सूचना और प्रसारण मंत्रालय (MIB) को अपनी जानकारी देनी होती है।

  • स्व-नियामक निकाय (Self-Regulatory Body): ऐसे पब्लिशर्स को एक स्व-नियामक निकाय (SRB) का सदस्य भी बनना होता है, जिसकी जाँच MIB द्वारा की जाती है।

  • आचार संहिता का पालन: इन पब्लिशर्स को प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI) के पत्रकारिता आचरण के मानदंडों और केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995 के प्रोग्राम कोड का पालन करना अनिवार्य होता है।

इसके विपरीत, एक सामान्य YouTube चैनल जो MIB में पंजीकृत नहीं है, वह इन सभी नियमों से बंधा नहीं होता है। यही वजह है कि वे मनमानी ढंग से कुछ भी प्रसारित कर सकते हैं।

क्या YouTube चैनल अपने माइक या आईडी जारी कर सकते हैं?

YouTube चैनल किसी भी व्यक्ति को आधिकारिक माइक आईडी या प्रेस कार्ड जारी करने के लिए अधिकृत नहीं है।

  • फर्जी आईडी और पहचान: जो लोग "YouTube पत्रकार" के रूप में काम करते हैं, वे अक्सर अपनी खुद की आईडी या माइक का कवर बनाते हैं। यह एक तरह से खुद को एक वैध पत्रकार के रूप में गलत तरीके से प्रस्तुत करना है।

  • गाड़ी पर प्रेस स्टीकर: सरकारी नियमों के अनुसार, गाड़ी पर 'प्रेस' स्टीकर लगाने की अनुमति केवल मान्यता प्राप्त पत्रकारों को ही होती है, जिन्हें सरकार द्वारा जारी आधिकारिक पास या आईडी कार्ड मिला होता है। प्रदेश में कुकुरमुत्ता की तरह फैले इन फर्जी पत्रकारों का गाड़ियों पर प्रेस स्टीकर लगाना एक गंभीर अपराध है। यह पुलिस और प्रशासन पर रौब जमाने का एक तरीका है।

 न्यूज़ वैन के नियम: क्या यह एक रजिस्टर्ड माध्यम है?

शहरों में घूम रही न्यूज़ वैन के बारे में आपका सवाल बहुत महत्वपूर्ण है। न्यूज़ वैन खुद में कोई कानूनी इकाई नहीं होती, बल्कि यह एक वाहन (vehicle) होता है। इसे 'न्यूज़' के लिए रजिस्टर्ड नहीं किया जाता, बल्कि यह एक आम वाहन की तरह ही मोटर वाहन अधिनियम (Motor Vehicles Act) के तहत रजिस्टर्ड होता है।

न्यूज़ वैन का असली मकसद: असली न्यूज़ वैन एक समाचार संगठन (News Organization) की संपत्ति होती है, जिसे सूचना और प्रसारण मंत्रालय (MIB) द्वारा मान्यता प्राप्त होती है। इस वैन का उपयोग केवल रिपोर्टिंग के लिए किया जाता है।

पंजीयन की प्रक्रिया: न्यूज़ वैन को अलग से रजिस्टर्ड करने का कोई प्रावधान नहीं है। किसी भी वाहन की तरह, इसका पंजीकरण आरटीओ (RTO) में होता है। लेकिन, उस पर 'प्रेस' का लोगो या स्टीकर लगाने का अधिकार केवल उसी समाचार संगठन को होता है, जो सरकार से मान्यता प्राप्त है।

यूट्यूब चैनल और न्यूज़ वैन: यदि कोई व्यक्ति केवल एक YouTube चैनल के नाम पर न्यूज़ वैन चला रहा है, और वह चैनल MIB में रजिस्टर्ड नहीं है, तो यह पूरी तरह से गैर-कानूनी है। ऐसे में, वह व्यक्ति खुद को एक ऐसे संगठन का प्रतिनिधि बता रहा है, जो कानूनी रूप से मान्य नहीं है।

पुलिस द्वारा फर्जी पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई न करने के कई कारण हैं, 

  • शिकायत का इंतजार: पुलिस अक्सर इन मामलों में तभी कार्रवाई करती है जब कोई औपचारिक शिकायत या एफआईआर दर्ज कराई जाती है। जब तक कोई व्यक्ति शिकायत नहीं करता, तब तक पुलिस खुद से कार्रवाई करने में हिचकिचाती है।
  • जागरूकता की कमी: आम जनता को इन कानूनों और नियमों की जानकारी नहीं होती, इसलिए वे शिकायत दर्ज नहीं कराते हैं। फर्जी पत्रकारिता के खिलाफ क्या कार्रवाई हो सकती है, इस बारे में लोगों में जागरूकता की कमी है।
  • जांच में लगने वाला समय: किसी भी मामले में कार्रवाई करने से पहले पुलिस को पूरी जांच करनी होती है। इसमें समय लगता है और कई बार फर्जी पत्रकारों की पहचान करना मुश्किल होता है, क्योंकि वे अक्सर अपनी पहचान छिपाते हैं।
  • अभियान की आवश्यकता: इस समस्या से निपटने के लिए पुलिस को एक विशेष अभियान चलाने की ज़रूरत है, जिसमें वह स्वतः संज्ञान लेकर ऐसे लोगों की पहचान करे और उन पर शिकंजा कसे जो पत्रकारिता का दुरुपयोग कर रहे हैं।

प्रदेश में फर्जी पत्रकारों का 'तथाकथित' खेल: अधिमान्य पत्रकारों पर सवाल और पुलिस की चुप्पी

आपने बिल्कुल सही कहा कि फर्जी पत्रकार अक्सर पढ़े-लिखे और वरिष्ठ अधिमान्य पत्रकारों को "तथाकथित" बताते हैं। यह उनकी अपनी कमी और पत्रकारिता के मानदंडों की जानकारी न होने को दर्शाता है। एक ओर जहाँ मान्यता प्राप्त पत्रकार पूरी जाँच-पड़ताल और तथ्यों के साथ खबर देते हैं, वहीं फर्जी पत्रकार बिना सोचे-समझे, कॉपी-पेस्ट करके या सनसनीखेज हेडलाइन के लिए गलत जानकारी फैलाते हैं। इस तरह के 'तथाकथित' आरोप लगाकर वे समाज में भ्रम फैलाते हैं और असली पत्रकारिता की विश्वसनीयता को कमजोर करने की कोशिश करते हैं।

इस गंभीर स्थिति के बावजूद, अक्सर पुलिस की कार्रवाई में देरी देखने को मिलती है, जिस पर आपका सवाल जायज है। पुलिस को ऐसे मामलों में स्वतः संज्ञान लेकर एक विशेष अभियान चलाना चाहिए, ताकि पत्रकारिता की आड़ में होने वाली इस अवैध गतिविधि पर अंकुश लगाया जा सके।

बिना जाँच-पड़ताल के खबर छापना: निजता का हनन और कॉपी-पेस्ट का खेल

फर्जी पत्रकार अक्सर बिना जाँच-पड़ताल किए कुछ भी छाप देते हैं या वीडियो बना देते हैं। इससे कई तरह की समस्याएँ पैदा होती हैं:

  • निजता का हनन (Violation of Privacy): ये लोग अक्सर किसी व्यक्ति के बारे में बिना उसकी अनुमति के जानकारी प्रकाशित करते हैं, जिससे उसकी निजता का हनन होता है। IT Rules, 2021 के तहत, किसी भी व्यक्ति की निजता का सम्मान करना अनिवार्य है।

  • कॉपी-पेस्ट की संस्कृति: फर्जी पत्रकारों के पास न तो रिपोर्टिंग की ट्रेनिंग होती है और न ही संसाधन। इसलिए, वे अक्सर किसी और की मेहनत से बनाई गई खबर या वीडियो को उठाते हैं, थोड़ा बहुत एडिट करते हैं और अपने चैनल पर डाल देते हैं। यह कॉपीराइट का उल्लंघन भी है।

फर्जी पत्रकारों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई और पुलिस की भूमिका

फर्जी पत्रकारिता के खिलाफ कई कानून और प्रावधान मौजूद हैं:

  • भारतीय दंड संहिता (IPC): धारा 419 (छल) और धारा 468 (जालसाजी) के तहत, कोई भी व्यक्ति जो खुद को गलत तरीके से पत्रकार बताता है, उसके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। अगर कोई प्रेस स्टीकर का दुरुपयोग करता है, तो मोटर वाहन अधिनियम के तहत भी जुर्माना लगाया जा सकता है।

  • IT Rules, 2021 के प्रावधान: अगर कोई YouTube चैनल गलत जानकारी फैलाता है, तो उसके खिलाफ तीन-स्तरीय शिकायत निवारण तंत्र के तहत शिकायत दर्ज की जा सकती है।

    • लेवल 1: शिकायत सीधे उस चैनल के शिकायत अधिकारी को भेजें।

    • लेवल 2: यदि चैनल कार्रवाई नहीं करता, तो उस चैनल के स्व-नियामक निकाय (SRB) से संपर्क करें।

    • लेवल 3: यदि SRB भी संतुष्ट नहीं करता, तो सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा गठित अंतर-विभागीय समिति के पास जाएँ।

DAVP और DPR के नियम: मान्यता प्राप्त पत्रकारों का दर्जा

सूचना और प्रसारण मंत्रालय (Ministry of Information and Broadcasting) की एक शाखा डीपीआर (Directorate of Publications and Research) है, जो पत्रकारों को मान्यता देती है। भारत सरकार का डीएवीपी (Directorate of Advertising and Visual Publicity) सिर्फ उन्हीं समाचार पत्रों या डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म को विज्ञापन देता है, जिन्हें DPR द्वारा मान्यता मिली होती है।

  • वास्तविक पत्रकार कौन? असली और मान्यता प्राप्त पत्रकार वे होते हैं, जिन्हें DPR या राज्य सरकारों के सूचना विभाग द्वारा एक विशिष्ट पहचान कार्ड दिया जाता है। ऐसे पत्रकार ही अधिमान्य (accredited) कहलाते हैं।

  • तथाकथित पत्रकार: जब कोई पढ़ा-लिखा और वरिष्ठ अधिमान्य पत्रकार किसी मुद्दे को दिखाता है, तो फर्जी पत्रकार उसे ही "तथाकथित" बताते हैं। यह उनकी अपनी कमी और असुरक्षा को दर्शाता है।

पुलिस ऐसे लोगों के खिलाफ शिकंजा क्यों नहीं कसती है?

अक्सर, पुलिस ऐसे मामलों में तभी कार्रवाई करती है जब कोई औपचारिक शिकायत या एफआईआर दर्ज कराई जाती है।

  • जागरूकता की कमी: बहुत से लोगों को इन कानूनों के बारे में पता नहीं होता, इसलिए वे शिकायत दर्ज नहीं कराते।

  • जांच की आवश्यकता: पुलिस को किसी भी कार्रवाई से पहले मामले की पूरी जांच करनी होती है।

  • अभियान की आवश्यकता: आपने बिल्कुल सही कहा कि पुलिस को ऐसे फर्जी पत्रकारों के खिलाफ एक अभियान चलाना चाहिए। पुलिस कमिश्नर को ऐसे लोगों की पहचान करने के लिए एक विशेष टीम गठित करनी चाहिए जो बिना आधिकारिक पंजीकरण के 'प्रेस' का दुरुपयोग कर रहे हैं।

एक जागरूक समाज की आवश्यकता

  • इस समस्या का समाधान सिर्फ सरकार या पुलिस के पास नहीं है, बल्कि समाज को भी जागरूक होना होगा।
  • संदेह की आदत: दर्शकों को किसी भी खबर पर तुरंत विश्वास करने के बजाय संदेह करना सीखना होगा। हमेशा यह जांचें कि क्या खबर विश्वसनीय स्रोत से आ रही है।

  • शिकायत दर्ज करना: अगर आपको किसी फर्जी पत्रकार के बारे में पता चलता है, तो तुरंत उसकी शिकायत दर्ज कराएं।

निष्कर्ष

YouTube चैनल मनोरंजन के लिए तो एक बेहतरीन प्लेटफॉर्म है, लेकिन जब बात खबरों की आती है, तो इसकी अपनी सीमाएं हैं। एक असली पत्रकार बनने के लिए कड़ी मेहनत, नैतिकता और सरकारी मान्यता की जरूरत होती है। जो लोग इन नियमों का उल्लंघन करते हैं, उन्हें फर्जी पत्रकार माना जाता है और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई के प्रावधान भी मौजूद हैं। हमें मिलकर ऐसे लोगों को रोकना होगा ताकि पत्रकारिता की गरिमा बनी रहे।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)

प्रश्न: क्या किसी YouTube चैनल का माइक या आईडी वैध होता है? उत्तर: नहीं, कोई भी YouTube चैनल अपने आप में आधिकारिक माइक या आईडी जारी करने के लिए अधिकृत नहीं है। केवल सरकार से मान्यता प्राप्त न्यूज़ हाउस ही ऐसा कर सकते हैं।

प्रश्न: मैं किसी फर्जी पत्रकार के खिलाफ शिकायत कहाँ कर सकता हूँ? उत्तर: आप पुलिस में शिकायत दर्ज करा सकते हैं और IT Rules, 2021 के तहत सूचना और प्रसारण मंत्रालय के शिकायत निवारण तंत्र का उपयोग कर सकते हैं।

प्रश्न: IT Rules, 2021 क्या हैं? उत्तर: यह नियम डिजिटल मीडिया पब्लिशर्स (जैसे YouTube चैनल) और सोशल मीडिया के लिए बनाए गए हैं, जिनका उद्देश्य गलत जानकारी, निजता का हनन और अन्य गैर-कानूनी गतिविधियों को रोकना है।

प्रश्न: DAVP या DPR की क्या भूमिका है? उत्तर: DAVP सरकार को विज्ञापन देने में मदद करता है, और DPR पत्रकारों को आधिकारिक मान्यता देता है, जिससे वे वास्तविक और अधिमान्य पत्रकार माने जाते हैं।

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