STUDY : MP की महिलाएं​​​​​​​ स्ट्रेस नहीं लेतीं, इसलिए ज्यादा जीती हैं: यहाँ जानिए सबकुछ

 

STUDY : MP की महिलाएं​​​​​​​ स्ट्रेस नहीं लेतीं, इसलिए ज्यादा जीती हैं: यहाँ जानिए सबकुछ

मध्यप्रदेश में लोगों की औसत आयु 67 साल हो गई है। पिछले 10 साल में इसमें 5 साल का इजाफा हुआ। ये जानकारी सैम्‍पल रजिस्‍ट्रेशन सिस्‍टम (SRS) के 2015-2019 के डेटा में सामने आई। इसके मुताबिक मध्यप्रदेश को जन्‍म के समय जीवन प्रत्‍याशा (औसत आयु) में 5 साल जोड़ने में करीब 10 साल लग गए। 2005-09 में यह 61.9 साल थी, जो 2015-19 में 67 साल हो गई। खास बात यह है कि पिछले 25 साल से राज्य में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की औसत उम्र ज्यादा है, जबकि इससे पहले महिलाओं की अपेक्षा पुरुष ज्यादा जी रहे थे। इतना ही नहीं, गांवों के मुकाबले शहरी महिलाओं की उम्र लंबी है।

ग्रामीणों की औसत आयु शहरी आबादी के मुकाबले कम क्यों है? इस पर सीनियर पल्मनोलॉजिस्ट डॉ. लोकेंद्र दवे बताते हैं कि गांव के लोगों की औसत आयु कम होना उनके जन्म से ही शुरू हो जाता है। गांव के लोगों को सही मात्रा में पोषक तत्व नहीं मिल पाते। यहां ज्यादातर महिलाएं एनीमिया का शिकार होती हैं। सबसे बड़ी वजह न्यूट्रिशन की कमी है।

डॉ. दवे कहते हैं कि ग्रामीण इलाकों में अभी भी महिलाओं खासकर लड़कियों की बीमारी को परिवार गंभीरता से नहीं लेता। यदि बेटी को टीबी की बीमारी है, तो उसका इलाज शुरू करने में देरी की जाती है। शिक्षा का स्तर कम होना भी ग्रामीण महिलाओं की आयु कम होने के लिए जिम्मेदार है।

दिल्ली के लोग सबसे ज्यादा जीते हैं

1970-75 में मध्यप्रदेश की जन्‍म के समय प्रत्‍याशा दर 47.2 साल थी। अगले 45 साल के दौरान इसमें करीब 22 साल से ज्यादा का इजाफा हुआ। 2015-19 के आंकड़ों में राज्य की जीवन प्रत्‍याशा 67 वर्ष हो गई है। दिल्‍ली की जीवन प्रत्‍याशा 75.9 साल है, जो देश में सबसे ज्‍यादा है। इसके बाद केरल, जम्‍मू और कश्‍मीर का नंबर आता है। सबसे कम जीवन प्रत्‍याशा वाले राज्‍यों में मध्यप्रदेश का नंबर तीसरा है, जबकि उत्तर प्रदेश का नंबर दूसरा है। छत्‍तीसगढ़ की जीवन प्रत्‍याशा देश में सबसे कम है। बता दें कि भारत में औसत जीवन प्रत्याशा 69.7 साल है।

एक वजह यह भी
कम्प्युनिटी मेडिसिन एक्सपर्ट मानते हैं कि महिलाओं की जीवन प्रत्याशा पुरुषों से इसलिए ज्यादा होती है, क्योंकि प्रतिकूल परिस्थिति में नवजात बालकों की अपेक्षा नवजात बालिकाओं के जीवित रहने की संभावना ज्यादा होती है। महिलाओं को यह लाभ ज्यादातर जैविक तथ्यों के चलते मिलता है। हार्मोन खासकर एस्ट्रोजेन, जो संक्रामक बीमारियों के खिलाफ शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। इसके अलावा महिलाओं को पुरुषों की तुलना में दिल की बीमार भी कम होती है। इसकी एक वजह महिलाओं का स्ट्रेस नहीं लेना भी है।

जीवन प्रत्‍याशा का शिशु मृत्यु दर से कनेक्‍शन

डेटा के अनुसार जन्‍म के समय जीवन प्रत्‍याशा और एक या पांच साल की उम्र में जीवन प्रत्‍याशा में सबसे बड़ा अंतर उन राज्‍यों में है, जहां शिशु मृत्यु दर(IMR) ज्‍यादा है। मध्यप्रदेश में शिशु मृत्यु दर सबसे ज्यादा 43% है। यहां जन्‍म का एक साल पूरा होने पर जीवन प्रत्‍याशा 2.7 साल बढ़ जाती है। उत्तर प्रदेश में जहां देश की दूसरी सबसे ज्‍यादा IMR (38%) है, पहला साल पूरा होने के बाद जीवन प्रत्‍याशा में सबसे ज्‍यादा उछाल (3.4) देखने को मिलता है। जन्‍म के समय जीवन प्रत्‍याशा और एक साल के बाद जीवन प्रत्‍याशा में इतना ज्‍यादा अंतर राजस्‍थान, छत्‍तीसगढ़, गुजरात राज्य में भी है।

ग्रामीणों से 4.8 साल ज्यादा जी रहे शहरी

मध्यप्रदेश में शहरी और ग्रामीण इलाकों की जीवन प्रत्‍याशा में 4.8 साल का अंतर है। शहरियों की औसत आयु 70.7 साल और ग्रामीणों की 65.9 वर्ष है। यही अंतर पुरुष और महिलाओं के बीच भी है। ग्रामीण पुरुषों की तुलना में शहरी पुरुष 5.6 साल ज्यादा जी रहे हैं। इसी तरह शहरी महिलाओं की जीवन प्रत्याशा ग्रामीण महिलाओं की तुलना में 4.1 साल ज्यादा है।

25 साल से पुरुषों से आगे हैं महिलाएं

रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 1970 से लेकर 1994 तक मध्यप्रदेश में महिलाओं की तुलना में पुरुषों की औसत आयु ज्यादा थी, लेकिन 1995 के बाद आए बदलाव में पुरुषों की औसत आयु महिलाओं से कम हाेने लगी।

1970-75 तक पुरुष, इसके बाद से महिलाओं की औसत उम्र ज्यादा... आंकड़ों से समझिए

दशक पुरुष (औसत उम्र) महिला(औसत उम्र) कुल औसत
1970-74 47.6 46.3 47.2
1995-99 56.1 57.1 56.6
2005-09 60.8 63.1 61.9
2015-19 65.2 69.1 67.0

क्या है जीवन प्रत्याशा

जीवन प्रत्याशा का मतलब यह है कि हमने जो जिंदगी जी ली है, और अब जितनी जिंदगी बची है, उसका औसत जीवन प्रत्याशा कहलाता है। यह एक व्यक्ति के औसत जीवनकाल का अनुमान है।

ऐसे होती है गणना

इसकी गणना के लिए शिशु के जन्म के बाद के 5 साल ना गिनकर आगे के वर्षों को गिनते हैं, जिससे हमें शिशु की मृत्युदर का आकलन मिल जाता है। इस तरह जीवन प्रत्याशा जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इससे औसत स्वस्थ जीवन की अवधि का समय निकाल सकते हैं।

सोर्स दैनिक भास्कर 

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