History Of Rewa : जानिए आखिर कैसे सेंगर राजपूतों का मऊ स्टेट बना मऊगंज ? क्या है इसके पीछे का इतिहास ... पढ़िए

 

History Of Rewa : जानिए आखिर कैसे सेंगर राजपूतों का मऊ स्टेट बना मऊगंज ? क्या है इसके पीछे का इतिहास ... पढ़िए

                                                             नईगढ़ी हाथी दरवाज़ा

history of rewa : अब तक आपने रीवा स्टेट के बारे में पढा सुना है लेकिन रीवा स्टेट से लगी हुई सेंगर राजपूतों की ‘मऊ स्टेट’ भी थी जिसके बारे में कम लोगों को ही जानकारी है। यह स्टेट सेंगर राजाओं के अधिपत्य में थी और इस राज्य में कई जागीरे भी शामिल थी। मऊ स्टेट बघेलर स्टेट से पुरानी मानी जाती है।

बघेली स्टेट के 34 शासको ने राज्य किया जबकि सेंगर रियासत में 51 से अधिक वंशजों ने रियासत चलाई। सेंगर इकलौती रियासत थी जिसने बघेल स्टेट के महाराजा कि आधीनता स्वीकार नही की थी। इस स्टेट के सैनिक गोरिल्ला युद्ध में माहिर थे, रीवा रियासत के बघेल राजाओ को हमेशा इनसे हमेशा खतरा महसूस होता रहा है।

रीवा मुख्यालय से 65 किलोमीटर दूर सेंगर राजपूत राजाओं की स्टेट मौजूद थी इसकी राजधानी मऊ में थी। ‘मऊ’ के समीप ही ‘गंज’ नाम का बाजार स्थित था। मऊ के ग्रामीण इलाके और गंज के बाजार को शामिल कर मऊगंज बनाया गया। रीवा राज्य के गेजेटियर सहित ईस्ट इंडिया कंपनी के दस्तावेजो में मऊ राज्य का उल्लेख मिलता है जबकि वर्तमान में यह इलाका मऊगंज के नाम जाना जाता है

मऊ राज्य में 700 से अधिक गांव थे

यह राज्य दो भागों में बंटा था दनवार और वनवार अर्थात जंगली इलाका और बिना जंगल वाला इलाका। इसमें राज्य की कई प्रमुख जागीरें थी, इसमें 84 गांव वाली इटार, गंगेव- 84 गांव, मनिगवां मनगवां, पहाडी 84 गांव, नईगढी 84 गांव, जोधपुर 84 गांव, उमरी 12 गांव, हिनौती 12 गांव, ढेरा 12 गांव, सलईया 12 गांव, पतुरखी 12 गांव, शाहपुर 12 गांव, सेमरिया 12 गांव शामिल थे।

किंवदंती है कि सेंगर राज्य का पतन होने के बाद तीन सेंगर राजकुमार देवतालाब पहुचंे थे। अब जहां मंदिर हैं वहां पर सिद्ध ऋषि तपस्थ्या में लीन थे। तीनों राजकुमार भाव के साथ उनकी सेवा करने लगे। ऋषि अपनी दिव्य शक्ति से जान चुके थे कि यह तीनों युवक कोई आम नही बल्कि राजपूत है। तीनो का तेज, चेहरे की आभा इस बात का संकेत कर रही थी। एक दिन ऋषि नें भगवान शिव की पूजा के दौरान दो वरदान मांगे, पहला शिव मंदिर की स्थापना और दूसरा राजकुमारों के लिए राज्य। स्वंयभू ने ऋषि को आर्शिवाद प्रदान किया और देखते ही देखते शिव मंदिर और उसमें अलौकिंक शिवलिंग की स्थापना हो गई। दूसरा वरदान था कि तीनों राजकुमार एक रात में जहां तक पहुंचेगें वहां उनके राज्य स्थापित हो जायेगें। 

ऋषि की आज्ञा हुई कि तीनो राजकुमार तीन दिशा में जाये और सूर्योदय के पहले राज्य स्थापित करें। आदेश पाकर तीनों राजकुमार अलग-अलग तीन दिशाओं पर चले गये। ज्येष्ठ राजकुमार गगेंव की तरफ, मझले इटार और छोटे राजकुमार मऊ पहुंचकर विजय पताखा फहराया। तीनों राजकुमार में मऊ सबसे बडी स्टेट बनी और छोटे होने के बावजूद भी राजा बने। मऊ स्टेट चैहान रियासत, माडा और विजयपुर रियासत को छूती हुई बघेलों कि रीवा रियासत से जुडी थी।

आमतौर पर सभी रियासतों में भाई भाई के दुश्मन हुये है लेकिन सेंगर राजाओं ने बंधू राज्य की स्थापना की थी। तीनों भाईयों ने मिलकर राज्य स्थापित किये और इनकी सभी शाखाएं राज्य करती रही है। छोटे भाई के पास विशाल क्षेत्रफल था इसलिए महाराज के सिंघासन में बैठे और दोनो बडे भाईयों के साथ मिलकर राज्य को चलाया।

सेंगर राज्य के राजा वीर सुरजन सिंह उर्फ सिमरनजीत सिंह के कई किस्से कहे जाते है। वीर सिमरनजीत सिंह मऊ राज्य के सेनापति थे और महाराजा मऊ के काका साहब। वीर सिमरनजीत सिंह को 4000 एकड जमीन कलेवा में महाराजा मऊ के द्वारा दिया गया था। जो पचपहरा औसा, विजयपुर, खाढिए सुजवा, बेलौहा आदि बारह गांव पवाई में मिले थे। सुनने में मिलता है कि राजा वीर सुरजन सिंह 20 हांथ लंबाई और 20 हाथ ऊंचाई में कूद जाते थे। इनमें गजब की फुर्ती थी।

मऊ किला टूटने के बाद मऊ राजा को बिछरहटा गाँव मिला और बिछरहटा को राजा का दर्जा। छोटे बड़े मिला कर 84 गांव गुजारे में मिले थे। अलहवा हनुमना में सेंगर परिवार को छोटे-छोटे 12 गांव मिले थे। 1835 मे जब महाराजा मऊ प्रयागराज कल्पवास में चले गए थे उस दौरान अचानक धोखे से मऊ राज्य के तत्कालीन मंत्रियों द्वारा महाराजा रीवा से संधि करके हमला करा दिया गया। गोरिल्ला युद्ध में शर्त यह थी कि गोली और तोप नहीं चलाई जाएगी सिर्फ तलवार और तेगा से युद्ध किया जाएगा।

इस धर्म युद्ध में तलवार एवं तेगा से वीर सिमरनजीत सिंह ने 22 सैनिकों के गर्दन उड़ा दिए थे लेकिन रीवा राज्य के सेनापति केशव राय ने धोखे से वीर सिमरनजीत सिंह के पुट्ठे पर गोली चलवा दी और वीर सिमरनजीत सिंह वीरगति को प्राप्त होे।

मऊ राज्य के पतन के बाद कुंवर कमोद सिंह 25 वर्ष तक में किले में ही रहे। वीर सिमरनजीत सिंह उर्फ सुरजन सिंह से एवं उनके वंशज से महाराज रीवा इतना भयभीत ओर नाराज थे कि उन्होंने कमोद सिंह जी को मऊ के किले से निष्कासित कर दिया। उन्हें इस बात का भय था कि कहीं किले में रहने से पूरे सेंगरो और यहां की जनता जनार्दन को इकट्ठा करके फिर से कहीं युद्ध ना छेड दें।

कुछ दिनों बाद कुँवर कमोद सिंह की मौत हो गई उनके पुत्र कुँवर प्रताप सिंह जो ग्राम पकरा में अगस्त्या पांडे परिवार के साथ कुछ वर्ष बिताने के बाद सन 1885 मे ग्राम रकरी जागीर गांव चले गए। उनके बंसज आज भी मौजूद हैं और समाज में ये काफी प्रतिष्ठित है।

बघेल रियासत के साहित्य उपलब्ध है लेकिन एक साजिस के तहत सेंगर राजपूतों के महत्वपूर्ण साहित्य नष्ट कर दिए गए थे। जबकि सेंगर राजपूतो के शौर्य, वीरता और पराक्रम की अनगिनत आख्यान है। उसे संग्रहित करने की आवश्यकता है। मुश्किल से ये जानकारी मिली है हमारा प्रयास रहेगा कि सेंगर राजपूतों से जूड़ी जानकारी की सीरीज़ बनाई जाए ताकि विस्तृत रूप से संग्रहित की जा सके।

History Of Rewa: Know how Rewa changed from Mau to Mauganj? What is the history behind it... read

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