मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, हिमाचल प्रदेश और बिहार में दो दिन से भारी बारिश हो रही है। राजस्थान में 200 और मध्यप्रदेश में करीब 50 छोटे-बड़े डैम ओवरफ्लो हैं। UP में गंगा खतरे के निशान के ऊपर और बिहार में इसके करीब है। ये पानी बांधों में जमा हो रहा है, या बांधों से निकलकर बाढ़ ला रहा है। पूरा दबाव बांधों पर है, पर इनकी मॉनिटरिंग का सिस्टम बंद पड़ा है। इससे 18 राज्यों के 1500 डैम की निगरानी होती है।
सबसे संवेदनशील बांधों की देखरेख के लिए जल शक्ति मंत्रालय ने डैम रिहैबिलिटेशन एंड इंप्रूवमेंट प्रोजेक्ट (ड्रिप) शुरू किया था। सेंट्रल वॉटर कमीशन की निगरानी में चलने वाले इस प्रोजेक्ट का ऐप और वेबसाइट damsefty.in डेढ़ महीने से बंद है। दोनों 2016 में बने थे।
ऐप और वेबसाइट पर अपडेट होती है डैम की रिपोर्ट
डैम हेल्थ एंड रिहैबिलिटेशन मॉनिटरिंग एप्लीकेशन (DHARMA) पर साल में दो बार बांधों की सेहत की रिपोर्ट अपलोड होती है। राज्य प्री और पोस्ट मानसून रिपोर्ट अपडेट करते हैं। इसमें डैम के 17 पॉइंट शामिल हैं, जैसे बांध के किस हिस्से की तुरंत मरम्मत जरूरी है, किस पर नजर रखनी है, कौन सा गेट कब खोला या बंद किया जाना चाहिए। कितना पानी भरने पर आसपास के इलाके को अलर्ट कर देना चाहिए, ताकि गेट खोले जा सकें।
स्टेट वॉटर कमीशन इनकी जानकारी रिपोर्ट में भरता है। इसके बाद केंद्र सरकार जरूरत के हिसाब से सलाह देती है और मदद भेजती है।
डेटा अपडेट न होने से अलर्ट मिलना बंद
प्रोजेक्ट से जुड़े सूत्र ने बताया कि इस बार ऐप बंद होने से रिपोर्ट अपडेट नहीं हुई। विभाग के पास कई बार राज्यों से फोन आए, लेकिन जवाब मिला कि टेक्निकल वजह से ऐप बंद है। रिपोर्ट अपलोड होती तो राज्यों की टीमें मानसून से पहले अलर्ट रहतीं।
तीन घटनाएं, जो इस डेटा की अहमियत बताती हैं…
पिछले हफ्ते मध्य प्रदेश के धार में बने कारम डैम का एक हिस्सा लीकेज की वजह से ढह गया था। इससे 16 गांवों में बाढ़ का खतरा पैदा हो गया।
मध्यप्रदेश के ही मंदसौर जिले में चंबल नदी पर बने गांधी सागर डैम के गेट खुले तो पहले से भारी बारिश से परेशान राजस्थान के लोग संकट में पड़ गए।
ओडिशा में महानदी पर बने हीराकुड बांध में क्षमता से ज्यादा पानी भरने पर 40 गेट खोलने पड़े। इससे बाढ़ के हालात बन गए।
अब तक 2,567 करोड़ खर्च, फिर भी प्रोजेक्ट रुका
2012 में इस प्रोजेक्ट की शुरुआती लागत 2100 करोड़ थी। प्रोजेक्ट ठीक से 2014 से शुरू हुआ। 2018 में इंटरनेशनल डैम कॉन्फ्रेंस में फंड बढ़ाकर 3,466 करोड़ कर दिया गया। अब तक 2,567 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। भारत को यह रकम वर्ल्ड बैंक से कर्ज के तौर पर मिली है।
टेक्निकल सपोर्ट के लिए टेंडर नहीं हुआ
प्रोजेक्ट रुकने की वजह इसके दूसरे फेज की शुरुआत में देरी होना है। सूत्र के मुताबिक, सेंट्रल वॉटर कमीशन के पास अभी टेक्निकल सपोर्ट टीम नहीं है। टेक्निकल सपोर्ट के लिए सेंट्रल वॉटर कमीशन ही टेंडर जारी करता है। फिलहाल इसे जारी नहीं किया जा सका है। प्रोजेक्ट का पहला फेज पिछले साल दिसंबर में खत्म हो गया, लेकिन फेज-2 शुरू नहीं हो पाया।
अधिकारी ने माना- ऐप बंद, लेकिन टेक्निकल सपोर्ट टीम न होने से इनकार
इस मसले पर सेंट्रल वॉटर कमीशन (CWC) के अधिकारी और इस प्रोजेक्ट के डायरेक्टर पीएन सिंह से बात नहीं हो पाई। विभाग के चीफ इंजीनियर गुलशन राज ने माना कि पिछले डेढ़ महीने से DHARMA ऐप और वेबसाइट बंद है। हालांकि, उन्होंने इससे इनकार किया कि प्रोजेक्ट के लिए टेक्निकल सपोर्ट टीम नहीं है।
1500 बांधों का डेटा होता है अपडेट
प्रोजेक्ट के पहले फेज में देश के सबसे क्रिटिकल बांध लिए गए। पहले चरण में 8 राज्यों के सिर्फ 223 बांधों की निगरानी और उन्हें केंद्र से मदद मिलना तय हुआ था। प्रोजेक्ट का रिस्पॉन्स पॉजिटिव रहा कि 2018 में फंड बढ़ा दिया गया। फंड बढ़ा तो राज्यों की संख्या 8 से बढ़कर 18 हो गई। बांधों की संख्या 223 से बढ़कर 1500 कर दी गई। इन सभी का डेटा अपडेट होता है।
रिपोर्ट अपलोड होती, तो अलर्ट रहतीं मदद करने वाली टीमें
प्रोजेक्ट में मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, झारखंड, गुजरात, महाराष्ट्र, यूपी, पंजाब, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, मणिपुर, हिमाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर शामिल हैं। इस लिस्ट में हीराकुड बांध, मध्यप्रदेश के तवा, कोलार, बारना, बरगी बांध भी शामिल हैं।
सेंट्रल वॉटर कमीशन फिर मैनुअल रिपोर्ट के भरोसे
चीफ इंजीनियर गुलशन राज कहते हैं- ऐसा नहीं है कि हम अलर्ट नहीं हैं। कुछ टेक्निकल प्रॉब्लम हैं, उन्हें ठीक किया जा रहा है। हम मैनुअल रिपोर्ट लेकर एनालाइज कर रहे हैं। अगर मैनुअल रिपोर्ट एनालाइज करने का सिस्टम इतना कारगर था, तो अरबों रुपए खर्च करने की क्या जरूरत थी? इस पर वे कहते हैं कि नहीं, इतनी सारी मैनुअल रिपोर्ट एक साथ एनालाइज करने में वक्त लगता है। लिहाजा एक साथ तय वेरिएबल के साथ रिपोर्ट अपलोड होती है, तो हम आसानी से एनालाइज कर लेते हैं।
मानसून के वक्त बांधों का सेंसिटिव डेटा न मिलना चिंता की बात
डैम एक्सपर्ट हिमांशु ठक्कर कहते हैं कि मानसून के वक्त बांधों का इतना सेंसिटिव डेटा न मिलना सेंट्रल वॉटर कमीशन के काम करने के तरीके को दिखाता है। लंबी लड़ाई के बाद तो बांधों को लेकर सोचा गया। हालांकि, इसमें ऑपरेशनल मैनेजमेंट का हिस्सा बहुत छोटा और स्ट्रक्चरल मैनेजमेंट का ज्यादा है, लेकिन कुछ डेटा है तो इसे मानसून में इस्तेमाल कर हम त्रासदी रोकने में रोल निभा सकते हैं। अब वह डेटा भी गायब है।
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