क्या है बजरंग दल, जिसका नाम कांग्रेस के संकल्प-पत्र में आने के बाद मचा है हंगामा?

 
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MP के जबलपुर में कांग्रेस कार्यालय में तोड़फोड़ की गई, छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में कांग्रेस विरोधी नारे लगे और नेताओं का पुतला दहन किया गया. इसके अलावा तेलंगाना, उत्तराखंड और कुछ दूसरे राज्यों से भी विरोध-प्रदर्शन की ख़बरें हैं.

कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में कहा था- "कांग्रेस पार्टी किसी भी ऐसे व्यक्ति या संगठन के विरुद्ध ठोस और निर्णायक क़दम उठाने को प्रतिबद्ध है जो समुदायों के भीतर जाति या धर्म के आधार पर नफ़रत फैलाते हैं. ये हमारा यक़ीन है कि संविधान और क़ानून सर्वोपरि है और कोई भी व्यक्ति या संस्था जैसे बजरंग दल, पॉपुलर फ़्रंट ऑफ़ इंडिया (पीएफ़आई) या अन्य बहुसंख्यकों या अल्पसंख्यकों के बीच दुश्मनी या नफ़रत फैलाने के लिए इसका उल्लंघन नहीं कर सकते हैं. हम क़ानून के अनुसार ऐसे मामलों में सख़्त क़दम उठाएंगे, जिसमें उस तरह के संगठनों पर प्रतिबंध लागू करना भी शामिल है." पार्टी ने ये बात क़ानून और न्याय व्यवस्था को लेकर किए गए चुनाव संकल्प के भीतर कही है, जिसमें कहा गया है कि 'क़ानून के समक्ष सभी बराबर हैं.'

बीजेपी और हिंदुत्व विचारधारा वाले संगठनों का आरोप है कि प्रतिबंधित 'आतंकवादी' संगठन पीएफ़आई के साथ-साथ बजरंग दल जैसे 'राष्ट्रवादी' संगठन का नाम लेकर 'कांग्रेस ने अपने मानसिक दिवालियापन का सबूत दिया है'.

बजरंग दल के पूर्व अध्यक्ष और विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय संयुक्त महासचिव सुरेंद्र जैन ने इसे 'तुष्टीकरण से आगे बढ़कर मुसलमानों को भड़काने' का कांग्रेस का क़दम बताया.
कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता और पूर्व सांसद राजीव गौड़ा, बीजेपी-वीएचपी-बजरंग दल के आरोपों को 'रचनात्मक व्याख्या' से अधिक कुछ नहीं मानते हैं और कहते हैं कि इन संगठनों से पूछा जाना चाहिए कि 'क्या वो जातीय या सांप्रदायिक दंगों के पक्ष में हैं या इस पर रोक चाहते हैं?'

राजीव गौड़ा कहते हैं, "प्रधानमंत्री बजरंग दल वाली बात को तोड़-मरोड़ कर बजरंगबली से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. हमने अपने संकल्प पत्र में क़ानून-व्यवस्था में गड़बड़ी फैलाने वालों और शांति भंग करने वालों के ख़िलाफ़ कड़े क़दम उठाने की प्रतिबद्धता जताई है."

बजरंग दल क्या है?

बीजेपी समेत हिंदुत्व विचारधारा से जुड़े संगठनों के विरोध और कांग्रेस की ओर से आ रहे बयानों के बीच आम लोगों के मध्य उन सभी मामलों- ईसाई मिशनरी ग्राहम स्टेन्स और उनके दो बच्चों की जलाकर की गई हत्या से लेकर गोरक्षा के नाम पर हुई कई हत्याओं और पिछले महीने बिहार शरीफ़ में हुए दंगों- पर चर्चा फिर से गर्म हो उठी है, जिनमें कथित तौर पर बजरंग दल से जुड़े लोगों के शामिल होने के आरोप लगते रहे हैं. ग्राहम स्टेन्स और उनके पुत्रों की हत्या के मामले में हालांकि डीपी वाधवा कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में बजरंग दल संगठन के सीधे तौर पर शामिल होने की बात से इनकार किया था.

बजरंग दल की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार संगठन की स्थापना 8 अक्टूबर, 1984 को अयोध्या में हुई थी. उनका कहना है कि उत्तर प्रदेश की तत्कालीन सरकार ने उस समय श्रीराम जानकी रथ यात्रा को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया था जिसके बाद संतों के आह्वान पर विश्व हिंदू परिषद ने वहां उपस्थित युवाओं को यात्रा की सुरक्षा का दायित्व सौंपा.

वीएचपी की आयोजित यात्रा के समय उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के नारायण दत्त तिवारी की सरकार थी. राजनीतिक विश्लेषक नीलांजन मुखोपाध्याय कहते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने हिंदुत्व विचारधारा के विस्तार के काम में 1980 के दशक में फिर से तेज़ी लाई थी.

उनके अनुसार 1964 में बने वीएचपी को 80 के दशक में एक तरह से पुनर्जीवित किया गया था. वीएचपी ने 1983 में एकात्मता यात्रा और फिर 1984 में राम जानकी रथ यात्रा का आयोजन किया था. इस दौरान राम मंदिर आंदोलन को गति मिली और इसी क्रम में बजरंग दल की स्थापना आधिकारिक तौर पर 1984 में हुई. संगठन की वेबसाइट पर राम मंदिर आंदोलन में इसकी भूमिका का विस्तार से ज़िक्र किया गया है.

वेबसाइट के अनुसार 'बजरंग दल को उत्तर प्रदेश के युवाओं में जागृति लाने और रामजन्म भूमि मूवमेंट में उनकी सहभागिता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया था.' साथ ही रामशिला पूजन, कारसेवा, शिलान्यास वग़ैरह में उसके शामिल होने का उल्लेख है.

नीलांजन मुखोपाध्याय कहते हैं, "1960 के दशक के गो-हत्या विरोध आंदोलन और इमरजेंसी के विरुद्ध मुहिम में सहभागिता के बाद अपने विचारधारा के फैलाव की ये आरएसएस की सबसे बड़ी कोशिश थी."

बजरंग सेना या बजरंग दल: क्या हो नाम?
आरएसएस: आइकन्स ऑफ़ द राईट, नरेंद्र मोदी: द मैन द टाइम्स समेत कई पुस्तकों के लेखक नीलांजन मुखोपाध्याय कहते हैं कि उन्होंने एक युवा रिपोर्टर के तौर पर इनमें से कई आयोजनों को कवर किया था, जिसमें अप्रैल 1984 में दिल्ली के विज्ञान भवन में वीएचपी की धर्म संसद भी शामिल थी. वो कहते हैं कि इन सब में इंदिरा गांधी की मौन सहमति थी.
आरएसएस के पूर्व प्रचारक विनय कटियार को बजरंग दल का पहला राष्ट्रीय संयोजक चुना गया था. विनय कटियार ने लखनऊ से फ़ोन पर कहा कि संगठन की स्थापना प्रारंभ में केवल अयोध्या आंदोलन के मद्देनज़र की गई थी और संगठन की स्थापना के संदर्भ में वीएचपी की एक बैठक इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में आयोजित हुई थी. उस बैठक में वीएचपी के तत्कालीन प्रमुख अशोक सिंघल, गिरिराज किशोर, ठाकुर गुंजन सिंह, महेश नारायण सिंह और आरएसएस और वीएचपी के ज़िला स्तर के अधिकारी शामिल हुए थे.

वीएचपी के फ़ैज़ाबाद (अब अयोध्या) के ज़िला संयोजक युगल किशोर शरण शास्त्री भी बजरंग दल की स्थापना को लेकर इलाहाबाद में हुई बैठक में शामिल थे.राजनीतिक विश्लेषक और लेखक  धीरेंद्र झा ने अपनी किताब 'शैडो आर्मीज़' में युगल किशोर शरण शास्त्री के हवाले से लिखा है, "कटियार के नाम पर मुहर लगने से पहले नई संस्था के नाम को लेकर चर्चा हुई. सिंघल ने बजरंग सेना बुलाए जाने का सुझाव दिया."

"महेश नारायण सिंह, जो वीएचपी की उत्तर प्रदेश इकाई के संगठन सचिव थे, वो इस पर सहमत नहीं थे, उनका तर्क था कि सेना शब्द से सरकार में नकारात्मक संदेश जाएगा. उन्होंने प्रस्ताव रखा कि नए संगठन को बजरंग दल बुलाया जाए, इस नाम को सर्वसम्मति से मान लिया गया."

उद्देश्य और गतिविधियां
प्रारंभ में अयोध्या आंदोलन तक सीमित 'बजरंग दल का साल 1993 में अखिल भारतीय संगठनात्मक स्वरूप तय हुआ' जिसके बाद इसका विस्तार हुआ और 1994 तक ये दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक तक अपनी पहुंच बना चुका था. उनके अनुसार प्रमोद मुथालिक को अशोक सिंघल ने ख़ुद फ़ोन कर राज्य में बजरंग दल की इकाई तैयार करने का काम सौंपा और उन्हें कर्नाटक का संयोजक बनाया था.
भारतीय जनता पार्टी 1989 के पालनपुर में राममंदिर निर्माण को अपना मुख्य मुद्दा बनाने का प्रस्ताव पारित कर चुकी थी.

नीलांजन मुखोपाध्याय कहते हैं, "आरएसएस एक बड़े परिवार के मुखिया की तरह है, और परिवार के भीतर अलग-अलग लोगों की जिस तरह ज़िम्मेदारियां होती हैं उसी तरह से यहां भी संगठनों को अलग-अलग काम दिए जाते हैं." साल 1990 में जब एलके आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या के लिए दस हज़ार किलोमीटर लंबी रथ यात्रा निकाली थी तो उसमें जिन दो लोगों ने बड़ी ज़िम्मेदारियां निभाईं थीं, वो थे नरेंद्र मोदी जो अब देश के प्रधानमंत्री हैं, और प्रवीण तोगड़िया जो लंबे समय तक वीएचपी के प्रमुख हुआ करते थे.

नीलांजन मुखोपाध्याय कहते हैं कि बजरंग दल-वीएचपी और बीजेपी के बीच एक तरह की तरलता (fluidity) है. विनय कटियार अयोध्या से कई बार बीजेपी सांसद रहे हैं. उत्तर प्रदेश के मौजूदा उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी वीएचपी-बजरंग दल से जुड़े रहे हैं. बजरंग दल का कहना है कि उनका संगठन किसी के विरोध में नहीं बल्कि हिंदुओं को चुनौती देने वाले असामाजिक तत्वों से रक्षा के लिए बना है.

लेकिन यह भी सच्चाई है कि स्थापना के बाद से ही यह संगठन शासन-प्रशासन से अक्सर टकराव की स्थिति में रहा है या अनेक बार उससे जुड़े हुए लोगों की गतिविधियों के कारण उसका नाम कई आपराधिक गतिविधियों में आता रहा है.

धीरेंद्र झा कहते हैं कि राम मंदिर आंदोलन की सफलता के बीच बजरंग दल ने सांस्कृतिक पहरेदारी पर फ़ोकस किया, जैसे- एमएफ़ हुसैन की पेंटिंग को लेकर हंगामा किया, जिसके कारण उन्हें देश छोड़ना पड़ा, पब (शराब घरों) पर हमले, वैलेंटाइन डे का विरोध वग़ैरह. इस वजह से उसकी बदनामी भी हुई लेकिन कुछ हलकों में उसे समर्थन भी हासिल होता गया.

धीरेंद्र झा कहते हैं कि 'शैडो आर्मीज़' नाम की अपनी पुस्तक के लिए फ़ील्ड-वर्क करते समय उन्हें इस बात का आभास हुआ था कि बहुत सारे लोग जो बीजेपी को वोट देते हैं, वो भी बजरंग दल की गतिविधियों को बहुत पसंद नहीं करते. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चंद सालों पहले ख़ुद अपने एक भाषण के दौरान 'काऊ-विजिलेंटिज़्म' के कुछ पहलुओं को लेकर कड़ी टिप्पणी की थी.

ग्राहम स्टेन्स और उनके पुत्रों की हत्या और दारा सिंह

23 जनवरी, 1999 की सुबह बेहद दर्दनाक ख़बर के साथ शुरू हुई थी, जब सालों से कुष्ठ रोगियों के साथ भारत में काम कर रहे ऑस्ट्रेलियन मिशनरी ग्राहम स्टेन्स और उनके 10 और 6 साल के दो बेटों की जलाकर हत्या कर दी गई थी.

स्टेन्स अपने दो बच्चों के साथ जीप में सो रहे थे जब रबींद्र कुमार पाल उर्फ़ दारा सिंह नाम के एक व्यक्ति ने गाड़ी पर पेट्रोल डालकर उसमें आग लगा दी थी. ग्राहम स्टेन्स और उनके दोनों बेटों को गाड़ी में ही ज़िंदा जलाकर मार दिया गया था.

ओडिशा के कोएनझार ज़िले के मनोहरपुर में हुई इस घटना के लिए राज्य के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक बीबी पांडा ने बजरंग दल को ज़िम्मेदार बताया था. अदालत ने दारा सिंह को मौत की सज़ा सुनाई थी हालांकि बाद में इसे आजीवन कारावास में बदल दिया गया.

इस घटना की जांच के लिए बनाई गई डीपी वाधवा कमीशन ने हालांकि अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि दारा सिंह व्यक्तिगत तौर पर अपराध में शामिल थे, यानी, बजरंग दल का संगठन के रूप में इस अपराध से किसी तरह का लेना-देना नहीं था.

डीपी वाधवा द्वारा बजरंग दल को क्लीन-चिट देने के निर्णय पर कमीशन के वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने लिखित तौर पर कहा था कि साक्ष्यों की रोशनी में लगता है कि 'किसी संस्था को सम्मिलित होने की बात को नकारने से पहले सही होगा कि सीबीआई द्वारा मामले की गहन जांच करवा ली जाए.'

मानवाधिकार कार्यकर्ता रवि नायर ने इस मामले पर एक लेख में कहा था कि जांच कमीशन ने सीधे तौर पर उन अपराधों को नज़र-अंदाज़ कर दिया जो देश भर में अलग-अलग जगहों पर इसाई धर्मालंबियों या उससे जुड़ी संस्थाओं पर साल भर के दौरान हुए थे. उनके अनुसार ग्राहम स्टेन्स और उनके बेटों की हत्या इसी पैटर्न का हिस्सा थी.

तत्कालीन गृह मंत्री एलके आडवाणी ने संसद में दिए एक बयान में कहा था कि साल 1998 में ईसाइयों पर हमलों की 116 घटनाएं हुईं थीं. रवि नायर के अनुसार ये आंकड़े आज़ादी के बाद से ईसाइयों पर हुए कुल हमलों से भी अधिक थे.

हाल के दिनों में भी हरियाणा-राजस्थान में दो मुस्लिम युवाओं की हत्या के मामले में मोनू मानेसर नाम के एक व्यक्ति का नाम सामने आया है. मोनू मानेसर ने बीबीसी संवाददाता अभिनव गोयल को दिए गए एक वीडियो इंटरव्यू में ख़ुद को बजरंग दल से जुड़ा हुआ बताया है.

सीआईए ने बताया उग्र धार्मिक संगठन
बिहार राज्य के शहर बिहार शरीफ़ में पिछले माह हुए दंगों में भी पुलिस ने बजरंग दल का नाम लिया है और इस संबंध में कई गिरफ़्तारियां भी हुईं हैं.गुजरात में साल 2002 में हुए दंगों के मामले में  हाल ही में जिन 11 लोगों को राज्य सरकार ने रिहा किया है वो मामला फ़िलहाल सुप्रीम कोर्ट में है.

वीएचपी का क्या कहना है?
वीएचपी के केंद्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति ख़ुद को हमारे संगठन से जुड़ा हुआ बता सकता है लेकिन अगर वो कोई कृत्य करता है तो उसके लिए हम किस तरह दोषी हैं?

बजरंग दल और दुर्गा वाहिनी वीएचपी की युवा विंग हैं.

बीबीसी ने आलोक कुमार से पूछा कि अगर बजरंग दल इस तरह की गतिविधियों में शामिल नहीं है तो क्यों उसका नाम बार-बार धर्मांतरण (हिंदू धर्म में घर वापसी), गो हत्या के नाम पर लिंचिंग, युवक-युवतियों को धर्म के आधार पर अलग-अलग करने के मामलों में सामने आता रहता है? आलोक कुमार कहते हैं कि बजरंग दल को बुरा-भला कहना कुछ लोगों की आदत सी बन गई है.

उन्होंने दावा किया कि सुप्रीम कोर्ट में हेट-स्पीच को लेकर जो दो याचिकाएं डाली गईं हैं, उनमें जिन भाषणों का ज़िक्र किया गया है उनमें से एक भी वीएचपी से नहीं जुड़ा है. अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए ने साल 2018 की अपनी एक संक्षिप्त रिपोर्ट (वर्ल्ड फ़ैक्टबुक) में बजरंग दल और वीएचपी को उग्रवादी धार्मिक संगठन बताया था. आरएसएस को सीआईए की रिपोर्ट में राष्ट्रवादी संगठन बताया गया था.

बजरंग दल के पूर्व अध्यक्ष सुरेंद्र जैन का कहना है कि वो सीआईए की रिपोर्ट को महत्व नहीं देते. वो कहते हैं, "सीआईए को अमेरिका में अश्वेतों (कालों) के साथ जो होता रहता है उसपर भी कहना चाहिए." समाजशास्त्री बद्री नारायण बजरंग दल को आरएसएस विचारधारा से जुड़ा ज़मीनी संगठन मानते हैं.

क्या राज्य सरकार लगा सकती है प्रतिबंध
कांग्रेस का मेनिफ़ेस्टो जारी होने के बाद बीजेपी और कई दूसरे संगठनों की तरफ़ ये सवाल भी उठाया जा रहा है कि क्या कोई राज्य सरकार बजरंग दल जैसे किसी संगठन पर प्रतिबंध लगा सकती है?

कांग्रेस नेता राजीव गौड़ा इस सवाल का जवाब देते हुए कहते हैं कि बीजेपी से पूछा जाना चाहिए कि उनकी अपनी सरकार ने गोवा में किस तरह श्री राम सेना पर प्रतिबंध लगा दिया था, अगर राज्य सरकारों के पास इस तरह का कोई अधिकार नहीं है तो?

गोवा के पूर्व मुख्यमंभी मनोहर परिक्कर ने, जो बाद में मोदी सरकार के भीतर रक्षा मंत्री रहे थे, विधानसभा में बयान देकर कहा था कि उन्होंने सूबे में श्री राम सेना की मौजूदगी पर प्रतिबंध लगा दिया है. मध्य प्रदेश की दिग्विजय सिंह सरकार ने भी अपने कार्यकाल के दौरान मुस्लिम संगठन सिमी पर बैन लगा दिया था.

पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ शमा मोहम्मद कहती हैं कि बीजेपी पीएफ़आई के साथ नाम लिए जाने को मुद्दा बना रही है लेकिन उनसे पूछा जाना चाहिए कि संगठन पर प्रतिबंध लगाते समय उन्होंने पीएफ़आई से जुड़े एसडीपीआई को क्यों बैन नहीं किया, क्या इसलिए कि वो कर्नाटक और केरल जैसे सूबों में ध्रुवीकरण करके वोटों का लाभ ले सकें?

1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद कांग्रेस की नरसिम्हा राव सरकार ने बजरंग दल पर प्रतिबंध लगा दिया था लेकिन बाद में ट्रिब्यूनल ने इसे रद्द कर दिया. आलोक कुमार कहते हैं, "हमारी पहले भी जांच हो चुकी है, तब कांग्रेस की सरकार थी, हम आज भी किसी पब्लिक स्क्रूटनी के लिए तैयार हैं."

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