रीवा में जिंदा इंसान को घोषित कर दिया गया मृत! क्रियाकर्म की राशि भी निकल गई, खुद सामने आकर कहा – "साहब, मैं जिंदा हूं..."

 
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ऋतुराज द्विवेदी,रीवा। रीवा ज़िले में प्रशासनिक लापरवाही की एक बेहद चौंकाने वाली और शर्मनाक तस्वीर सामने आई है। एक ज़िंदा इंसान को कागजों में मृत घोषित कर दिया गया, उसका डेथ सर्टिफिकेट बना दिया गया, और मजे की बात ये कि तेरहवीं और क्रियाकर्म के नाम पर सरकारी खजाने से राशि भी जारी कर दी गई।

इस पूरे मामले का खुलासा तब हुआ जब स्वयं वह ‘मृत व्यक्ति’—जी हां, जो सरकारी रिकॉर्ड में मर चुका था—कलेक्टरेट परिसर में जिंदा चलकर पहुंच गया और बोला:
“साहब, मैं मरा नहीं हूं, देखिए… मैं जिंदा हूं।”

कैसे हुआ यह पूरा फर्जीवाड़ा?

बताया जा रहा है कि ग्राम पंचायत स्तर पर गलत दस्तावेज तैयार किए गए और शायद मिलीभगत से उसका मृत्यु प्रमाण पत्र (Death Certificate) जारी किया गया। इसके आधार पर उस व्यक्ति के नाम पर सरकारी सहायता की राशि तेरहवीं संस्कार के नाम पर निकाल ली गई।

अब सवाल ये है –

  • क्या पंचायत सचिव को इसकी जानकारी नहीं थी?

  • क्या तहसील या ब्लॉक स्तर पर कोई वेरिफिकेशन नहीं हुआ?

  • अगर नहीं हुआ, तो फिर किसके आदेश पर पैसा जारी हुआ?

जनसुनवाई में पहुंचा मामला, अधिकारी रह गए दंग

इस जिंदा-लाश के चक्कर में जैसे ही व्यक्ति कलेक्ट्रेट परिसर में जनसुनवाई के दौरान पहुंचा और अपनी पूरी आपबीती सुनाई, वहां बैठे अधिकारी और अन्य फरियादी सन्न रह गए। कुछ तो हैरानी से उसे घूरते रह गए कि क्या वाकई ये वही आदमी है जो सरकारी फाइलों में ‘क्रियाक्रम’ हो चुका है।

क्या बोले पीड़ित?

पीड़ित व्यक्ति ने कहा:
“मेरे पीछे किसी ने साजिश की है। मुझे मृत दिखाकर कोई और सरकारी लाभ उठा रहा है। मैं गरीब हूं, लेकिन जिंदा हूं। कृपया मुझे दोबारा जिंदा की श्रेणी में लाया जाए।”

प्रशासन की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए

यह कोई पहली घटना नहीं है जब किसी को कागजों में मारकर योजनाओं का लाभ उठाया गया हो। यह सीधे तौर पर भ्रष्टाचार, कदाचार और सिस्टम की नाकामी को दर्शाता है। यदि जांच नहीं होती है और दोषियों पर कार्रवाई नहीं होती, तो ऐसे मामले दोहराए जाते रहेंगे।

हमारा सवाल प्रशासन से:

  1. इस व्यक्ति को मृत घोषित करने के लिए जिम्मेदार अधिकारी/कर्मी कौन हैं?

  2. किस खाते में सरकारी राशि गई?

  3. क्या संबंधित व्यक्ति को मुआवजा मिलेगा?

  4. क्या लापरवाह कर्मचारियों पर आपराधिक प्रकरण दर्ज किया जाएगा?

निष्कर्ष:

रीवा की इस घटना ने न सिर्फ एक व्यक्ति की गरिमा को ठेस पहुंचाई है, बल्कि सिस्टम पर बड़ा सवाल भी खड़ा किया है। यदि अब भी प्रशासन नहीं चेता, तो आने वाले समय में कई और "जिंदा लोग" अपने मृत्यु प्रमाणपत्र लेकर जनसुनवाई में खड़े नज़र आएंगे।

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