सीएम के 'सख्त आदेश' की रीवा में धज्जियां! स्कूलों-कॉलेजों के बाहर खुलेआम बिक रहा गुटखा-पान, नगर निगम आयुक्त की नाक के नीचे 'पैसा लेकर' चल रही दुकानें! क्या ऐसे चलेगा 'मोहन का राज'?

 
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रीवा शहर में नगर निगम अतिक्रमण हटाने का दावा करता है, लेकिन हकीकत यह है कि यह महज एक 'फर्जीवाड़ा' बनकर रह गया है। सड़कों और चौराहों पर, खासकर स्कूलों और कॉलेजों के बाहर, अतिक्रमणकारी बेखौफ होकर दोबारा अपनी दुकानें जमा रहे हैं, और यह सब कुछ नगर निगम आयुक्त की पूरी जानकारी में चल रहा है!  सड़कों और चौराहों पर अतिक्रमणकारी बेखौफ होकर दोबारा अपनी दुकानें जमा रहे हैं, लेकिन इससे भी शर्मनाक बात यह है कि मुख्यमंत्री मोहन यादव के सख्त निर्देशों के बावजूद, स्कूलों और कॉलेजों के आस-पास गुटखा और पान की दुकानें धड़ल्ले से संचालित हो रही हैं। और यह सब कुछ नगर निगम आयुक्त की पूरी जानकारी में, उनकी नाक के नीचे, 'पैसों के दम' पर चल रहा है!

शहर में चर्चा आम है कि 100 रुपये में चाय की दुकान, 50 रुपये में पान की गुमटी और 200 रुपये में पिज्जा-बर्गर की गाड़ियाँ फिर से अपनी जगह कैसे ले लेती हैं? क्या यह सब बिना किसी 'मिलीभगत' के संभव है? नगर निगम आयुक्त के अधीन काम करने वाला 'सिस्टम' इतना लचर कैसे हो गया है कि हटाए गए अतिक्रमण तुरंत वापस आ जाते हैं? यह दर्शाता है कि अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई सिर्फ 'नाम मात्र' की होती है, ताकि कागजों पर तो काम दिखे, लेकिन जमीन पर 'कमाई' का धंधा चलता रहे।

क्या नगर निगम आयुक्त महोदय को ये 'रेट्स' नहीं पता? क्या उन्हें नहीं दिखता कि उनके आदेशों का पालन नहीं हो रहा है? शहर की सड़कों पर जाम, गंदगी, और व्यवस्था का खुला उल्लंघन उनकी नाक के नीचे हो रहा है, और फिर भी कोई ठोस, स्थायी कार्रवाई नहीं हो रही। यह सीधा-सीधा नगर निगम के सर्वोच्च अधिकारी की प्रशासनिक विफलता और जिम्मेदारी से भागने का मामला है।

जब शहर के आला अधिकारी ही आंखें मूंद लेंगे, तो ऐसे ही 'सिस्टम' चलता रहेगा और आम जनता परेशान होती रहेगी। रीवा के नगर निगम आयुक्त को जनता को जवाब देना होगा कि इस भ्रष्टाचार और अक्षमता पर आखिर लगाम कब लगेगी? सिर्फ दिखावे की कार्रवाई से शहर का भला नहीं होगा, अब सख्त एक्शन और 'अंदरूनी सेटिंग' तोड़ने की जरूरत है, वरना शहर कभी अतिक्रमण मुक्त नहीं हो पाएगा।

क्या नगर निगम आयुक्त को ये 'सेटिंग' नहीं दिखती?
शहर के शैक्षणिक संस्थानों के ठीक बाहर, बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ करते हुए, गुटखा-पान की दुकानें फिर से कैसे लग जाती हैं? क्या यह सब बिना किसी 'पैसा लेकर' वाली सेटिंग के संभव है? नगर निगम आयुक्त के अधीन काम करने वाला 'सिस्टम' इतना लचर कैसे हो गया कि मुख्यमंत्री के आदेश भी हवा में उड़ जाते हैं? यह सीधा-सीधा नगर निगम के सर्वोच्च अधिकारी की प्रशासनिक विफलता और जिम्मेदारी से भागने का मामला है।

जब मुख्यमंत्री के सख्त निर्देशों का भी पालन नहीं हो रहा, तो ऐसे 'सिस्टम' को कौन चला रहा है? क्या नगर निगम आयुक्त यह मान बैठे हैं कि उन्हें कोई जवाब नहीं देना है? शहर की सड़कों पर जाम, गंदगी, और सबसे बढ़कर बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ हो रहा है, और फिर भी कोई ठोस, स्थायी कार्रवाई नहीं हो रही।

रीवा के नगर निगम आयुक्त को जनता को जवाब देना होगा कि इस भ्रष्टाचार और अक्षमता पर आखिर लगाम कब लगेगी? सिर्फ दिखावे की कार्रवाई से शहर का भला नहीं होगा। अब सख्त एक्शन और उन 'अंदरूनी सेटिंग्स' को तोड़ने की जरूरत है जो मुख्यमंत्री के निर्देशों को भी बौना साबित कर रही हैं। क्या यही है 'मोहन का राज'? जनता जवाब मांगती है!

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