रीवा में जलप्रलय: एक बारिश ने खोली नगर निगम से लेकर प्रशासन तक के 'सोते' अधिकारियों की पोल! भ्रष्टाचार के ड्रेनेज में डूबा शहर!

 
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ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा में बुधवार रात से जारी मूसलाधार बारिश ने पूरे शहर को जलमग्न कर दिया है, जिससे एक बार फिर शहरी विकास और निर्माण कार्यों की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं। एक दिन की बारिश में ही रीवा की सड़कों पर बाढ़ जैसे हालात बन गए, घरों में पानी घुस गया और प्रमुख मार्ग अवरुद्ध हो गए। यह स्थिति नगर निगम और ठेकेदारों के गठजोड़ पर कई बड़े सवाल उठाती है कि आखिर क्यों हर साल रीवा वासियों को इस त्रासदी का सामना करना पड़ता है?

नाले-नालियां जाम: भ्रष्टाचार की खुली पोल

शहर के निराला नगर, चुन्हाई कुआं पांडे टोला, दुर्गा नगर वार्ड 5 जैसे कई इलाकों में घरों और सड़कों पर पानी भरने की मुख्य वजह नाले और नालियों में अतिक्रमण और उनकी खराब सफाई व्यवस्था है। निराला नगर में पटेल हॉस्टल में 45 छात्रों के फंसने की घटना ने स्पष्ट कर दिया कि नाले पर अवैध निर्माण किस कदर जानलेवा साबित हो सकते हैं। नगर निगम अध्यक्ष खुद मानते हैं कि वर्षों से नालों पर अवैध कब्जे हो रहे हैं, लेकिन चेतावनी के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

सवाल यह उठता है:

  • नाले-नालियां क्यों जाम हैं? क्या इनकी नियमित सफाई होती है? यदि होती है तो कागजों पर, या धरातल पर?

  • अवैध अतिक्रमण पर कार्रवाई क्यों नहीं होती? क्या नगर निगम को इन कब्जों की जानकारी नहीं है? या जानबूझकर इन पर कार्रवाई से बचा जाता है?

निर्माण कार्यों की घटिया गुणवत्ता और ठेकेदारों की जवाबदेही

रीवा से जेपी मार्ग का पानी में डूब जाना, और आरटीओ ऑफिस के सामने कांग्रेस नेता संजय तिवारी के घर में पानी भरना यह साबित करता है कि शहर में चल रहे निर्माण कार्य कितने घटिया स्तर के हैं। सड़कों और जल निकासी प्रणालियों का निर्माण ऐसे किया जाता है कि वे सामान्य बारिश को भी झेल नहीं पातीं।

यह सोचने पर मजबूर करता है:

  • ठेकेदारों का चयन कैसे होता है? क्या केवल सबसे कम बोली लगाने वाले को काम दिया जाता है, भले ही उसकी गुणवत्ता पर सवालिया निशान हो?

  • टेंडर प्रक्रिया में पारदर्शिता क्यों नहीं? क्या ठेकेदारों को काम देने में राजनीतिक दबाव या भ्रष्टाचार की भूमिका होती है?

  • निर्माण कार्यों की निगरानी कौन करता है? क्या नगर निगम के इंजीनियर और अधिकारी गुणवत्ता जांचते हैं, या सिर्फ कागजों पर रिपोर्ट बनती है?

  • घटिया काम करने वाले ठेकेदारों पर कार्रवाई क्यों नहीं होती? क्या उन्हें ब्लैकलिस्ट किया जाता है या उन्हें बार-बार नए ठेके मिलते रहते हैं?

प्रशासनिक निष्क्रियता और जनता का दर्द

दुर्गा नगर वार्ड 5 में लोगों का आरोप है कि नगर निगम कंट्रोल रूम को सूचना देने के बावजूद राहत टीम नहीं पहुंची। यह दिखाता है कि आपदा प्रबंधन के नाम पर प्रशासन कितना लापरवाह है। जब जनता मुसीबत में होती है, तो उसे त्वरित सहायता नहीं मिल पाती।

यह स्थिति बताती है:

  • प्रशासन क्यों निष्क्रिय है? क्या आपदा से निपटने के लिए कोई ठोस कार्ययोजना नहीं है?

  • जनता की समस्याओं को क्यों नजरअंदाज किया जाता है? क्या अधिकारी सिर्फ एसी कमरों में बैठकर आदेश जारी करते हैं, जमीनी हकीकत से उनका कोई वास्ता नहीं?

  • जवाबदेही किसकी? हर साल आने वाली इस समस्या के लिए कौन जिम्मेदार है, और उन पर कार्रवाई क्यों नहीं होती?

कार्रवाई का आश्वासन और स्थायी समाधान की उम्मीद

हालांकि, उपमुख्यमंत्री ने नालों पर कब्जे हटाने और सुधार के निर्देश दिए हैं, लेकिन देखना यह होगा कि यह केवल बयानबाजी है या वास्तव में कोई ठोस कार्रवाई होगी। रीवा को इस वार्षिक आपदा से मुक्ति दिलाने के लिए केवल दिखावटी कदम नहीं, बल्कि स्थायी समाधान की आवश्यकता है।

आवश्यक कदम:

  • अवैध अतिक्रमण पर सख्त कार्रवाई: बिना किसी पक्षपात के नालों और सार्वजनिक भूमि से कब्जे हटाए जाएं।

  • गुणवत्तापूर्ण निर्माण कार्य: ठेकेदारों के चयन में पारदर्शिता और काम की गुणवत्ता की कड़ी निगरानी हो। घटिया काम करने वालों पर तत्काल कार्रवाई हो।

  • जल निकासी प्रणाली का आधुनिकीकरण: शहर की पुरानी और जर्जर जल निकासी प्रणाली का पुनर्निर्माण और विस्तार किया जाए।

  • आपदा प्रबंधन को मजबूत करना: आपातकालीन स्थितियों में जनता को त्वरित सहायता उपलब्ध कराने के लिए प्रभावी तंत्र विकसित किया जाए।

  • जवाबदेही तय करना: जो अधिकारी और ठेकेदार अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल रहे हैं, उन पर कानूनी कार्रवाई की जाए।

रीवा की जनता हर साल इस परेशानी से जूझती है। अब समय आ गया है कि प्रशासन और सरकार इन समस्याओं को गंभीरता से लें और भ्रष्टाचार पर लगाम कसते हुए रीवा को एक सुरक्षित और विकसित शहर बनाएं।

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