नशे का डोज ऑन-डिमांड: रिपोर्टर ने 5 जगहों से नशीला सिरप खरीदकर पुलिस को दिया, कैमरे में कैद हुए 10 चेहरे, अब एक्शन कब?

 
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रीवा में ड्रग्स का खतरनाक खेल: 400 रुपए में बिकता 'माहौल' कोडवर्ड वाला नशीला सिरप, पुलिस की नाक के नीचे चल रहा है ये गोरखधंधा।

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) मध्य प्रदेश के रीवा शहर में नशीले पदार्थों का एक बड़ा और संगठित कारोबार फल-फूल रहा है। उत्तर प्रदेश की सीमा से सटा होने के कारण रीवा ड्रग्स की सप्लाई का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया है। मीडिया की एक हालिया खोजी रिपोर्ट ने इस खतरनाक नेटवर्क का पर्दाफाश किया है, जिसमें दिखाया गया है कि कैसे पुलिस और प्रशासन की नाक के नीचे खुलेआम नशीली दवाएं बेची जा रही हैं। यह सिर्फ एक शहर की कहानी नहीं, बल्कि पूरे राज्य में फैलते नशे के जाल की एक डरावनी तस्वीर पेश करती है, जिसका शिकार सबसे ज्यादा युवा और बच्चे हो रहे हैं।

यह धंधा इतना संगठित है कि आम कफ सिरप और पेट दर्द की दवाओं को 'माहौल' और 'नीली गोली' जैसे कोडवर्ड्स में बेचा जाता है। ये प्रतिबंधित दवाएं, जिनमें कोडीन फॉस्फेट और ट्रामाडॉल जैसे ड्रग्स होते हैं, मेडिकल स्टोर्स पर डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन के बिना नहीं बेची जा सकतीं। फिर भी, रीवा के गली-मोहल्लों में सब्जी के ठेलों और घरों से ये आसानी से उपलब्ध हैं।

रीवा में कैसे चल रहा है नशे का कारोबार?
मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, रीवा में नशे के कारोबार का संचालन एक सुनियोजित तरीके से किया जा रहा है। इसका नेटवर्क इतना मजबूत है कि इसे पुलिस का भी डर नहीं है।

कोडवर्ड में होती है खरीद-बिक्री
इस अवैध कारोबार में कोडवर्ड का इस्तेमाल किया जाता है ताकि कोई बाहरी व्यक्ति आसानी से समझ न सके। कोडीन फॉस्फेट युक्त कफ सिरप को 'माहौल' कहकर मांगा जाता है, जबकि नशे की टैबलेट्स, जैसे स्पास्मो-प्रॉक्सीवॉन प्लस, को 'नीला पत्ता' या 'नीली गोली' के नाम से बेचा जाता है। ये कोडवर्ड्स न केवल ग्राहकों और विक्रेताओं के बीच एक पहचान बनाते हैं, बल्कि पुलिस की नजर से भी बचने में मदद करते हैं।

महिलाओं और बच्चों का इस्तेमाल
इस धंधे में महिलाओं और बच्चों का उपयोग बड़े पैमाने पर किया जाता है। रिपोर्ट में कई ऐसे मामले सामने आए हैं जहां महिलाएं सब्जी के ठेले लगाकर या अपने घरों के बाहर बैठकर ये नशीले पदार्थ बेचती हैं। इसके पीछे की वजह यह है कि पुलिस के लिए महिलाओं पर कार्रवाई करना अक्सर मुश्किल होता है, जिससे तस्करों को सुरक्षा मिलती है। कई बार ये महिलाएं पकड़े जाने पर हंगामा करती हैं और छेड़छाड़ का आरोप लगा देती हैं, जिससे लोग शिकायत करने से कतराते हैं।

बाजार की तरह बदलते हैं रेट
नशीले सिरप और टैबलेट्स के दाम किसी शेयर बाजार की तरह रोज ऊपर-नीचे होते रहते हैं। तस्करों के अनुसार, ये दरें बाजार में स्टॉक की उपलब्धता पर निर्भर करती हैं। जब स्टॉक कम होता है, तो कीमत बढ़ जाती है, और जब सप्लाई ज्यादा होती है, तो कीमत थोड़ी कम हो जाती है। एक शीशी की कीमत 400 रुपये तक हो सकती है।

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अब सिलसिलेवार जानिए, कैसे बिक रहा बैन कफ सिरप

सप्लाई का तरीका और समय
रीवा में इन नशीले पदार्थों की सप्लाई सुबह के समय होती है। सुबह 5 बजे से 8 बजे के बीच जब पुलिस की गश्त का समय बदलता है, तब टू-व्हीलर पर सवार लोग इन ठिकानों पर डिलीवरी देते हैं। यह तरीका पुलिस से बचने और माल को आसानी से पहुंचाने के लिए अपनाया जाता है।

नशे का धंधा: जगह और तरीके
रिपोर्ट में रीवा के कुछ खास हॉटस्पॉट की पहचान की गई है जहां यह कारोबार बेखौफ चल रहा है।

सब्जी के ठेले की आड़ में नशीले सिरप
रीवा के कबाड़ी मोहल्ला में एक महिला सब्जी का ठेला लगाकर बैठी रहती है, लेकिन उसका असली काम कफ सिरप बेचना है। रिपोर्टर ने एक युवक के साथ मिलकर इस जगह का दौरा किया, जहां 500 रुपये देने पर महिला ने 100 रुपये वापस करते हुए एक शीशी दी। इसी तरह, यह महिला 'नीली गोली' भी बेचती है, जो पेट दर्द की दवा के नाम पर नशे के लिए इस्तेमाल होती है।

घर के अंदर से चलती है नशे की दुकान
कबाड़ी मोहल्ले में ही कुछ परिवार ऐसे हैं, जिन्होंने अपने घर को ही नशे की दुकान बना रखा है। इन घरों में परिवार के सभी सदस्य, पुरुष और महिलाएं, मिलकर इस धंधे को चलाते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक परिवार ने इसी अवैध कमाई से अपना पुराना मकान तोड़कर दो मंजिला नया मकान बना लिया है। ये लोग दिनभर ग्राहकों को सिरप बेचते रहते हैं।

बीएड कॉलेज के पास का धंधा
धोबिया टंकी इलाके में, जो एक बीएड कॉलेज के ठीक सामने है, एक महिला अपने घर से यह कारोबार चलाती है। वह इतनी चालाक है कि उसने अपने घर के बाहर सीसीटीवी कैमरे लगा रखे हैं ताकि आने-जाने वालों पर नजर रख सके। अगर उसे जरा भी शक होता है, तो वह तुरंत माल छुपा देती है। इस जगह पर कॉलेज के छात्र और बच्चे भी नशे के लिए पहुंचते हैं, जो एक गंभीर समस्या है।

कबाड़ी मोहल्ले में महिला ठेला लगाकर सब्जी बेचने की आड़ में नशे की गोलियां बेचती है।

कबाड़ी मोहल्ले में महिला ठेला लगाकर सब्जी बेचने की आड़ में नशे की गोलियां बेचती है।

तीन महिलाओं का सिंडिकेट
यातायात पुलिस थाने के पास एक खुले मैदान में तीन बुजुर्ग महिलाएं ठेला लगाकर बैठती हैं। इनका काम बंटा हुआ है—एक पैसे लेती है, दूसरी सिरप देती है, और तीसरी नजर रखती है। यह सिंडिकेट नशीले पदार्थों का कारोबार सिर्फ कैश में करता है, ऑनलाइन पेमेंट नहीं लेता, ताकि कोई डिजिटल रिकॉर्ड न बचे।

पुलिस और सिस्टम पर सवाल
मीडिया की यह रिपोर्ट पुलिस और प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करती है।

पुलिस का अभियान और जमीनी हकीकत
पुलिस ने 15 से 31 जुलाई तक नशे के खिलाफ एक अभियान चलाया था, लेकिन उसी दौरान रिपोर्टर ने रीवा में 20 से ज्यादा ठिकानों की पहचान की जहां नशा खुलेआम बिक रहा था। यह दिखाता है कि पुलिस के अभियान सिर्फ कागजी कार्रवाई तक सीमित हैं और जमीनी स्तर पर कोई खास असर नहीं डालते।

एसपी का बयान और संसाधनों की कमी
जब रिपोर्टर ने एसपी विवेक सिंह से इस बारे में बात की, तो उन्होंने स्वीकार किया कि पुलिस को कबाड़ी मोहल्ले जैसे इलाकों में कार्रवाई करने में मुश्किल होती है। उन्होंने इसका कारण संसाधनों की कमी और महिलाओं पर कार्रवाई करने की जटिलता को बताया। यह एक गंभीर समस्या है क्योंकि इसका फायदा उठाकर तस्कर बेखौफ होकर अपना धंधा चला रहे हैं।

हाईकोर्ट की दखलंदाजी
जबलपुर हाईकोर्ट ने भी इस मामले में संज्ञान लिया है। एक वकील की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने सरकार और नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। याचिका में यह आरोप लगाया गया है कि सरकारी अधिकारी अपनी जिम्मेदारी सही ढंग से नहीं निभा रहे हैं, जिसके कारण प्रतिबंधित कफ सिरप का उत्पादन और बिक्री जारी है।

नशे की लत का खतरनाक असर
इस तरह के नशे का समाज पर गहरा और विनाशकारी प्रभाव पड़ता है।

कबाड़ी मोहल्ले में महिलाओं का पूरा गैंग कफ सिरप बेचने का काम करता है।

कबाड़ी मोहल्ले में महिलाओं का पूरा गैंग कफ सिरप बेचने का काम करता है।

परिवार शिफ्ट में काम करता है इन्वेस्टिगेशन में सामने आया कि घर की महिला और पुरुष सभी कफ सिरप बेचने का ही कारोबार करते हैं। कुछ साल पहले तक इनका ये मकान बड़ा नहीं था लेकिन जब से पूरा परिवार इस धंधे में जुटा है, मकान दो मंजिला बना लिया है। इनके चेहरों पर पुलिस को डर नहीं दिखा। सोर्स रिपोर्टर को कबाड़ी मोहल्ले में ही अलग-अलग 20 स्पॉट पर ले गया, जहां कफ सिरप बेचा जा रहा था।

जीवन बर्बाद करने वाले दो केस
रीवा की एक महिला ने बताया कि उसके बेटे को कॉलेज में कफ सिरप की लत लग गई। जब परिवार ने पैसे देना बंद किया, तो बेटे ने घर में दो बार आग लगा दी। एक अन्य मामले में, एक बिजनेसमैन ने बताया कि उनके पिताजी को खांसी की दवा की लत लग गई, जिसे छुड़ाने में 6 महीने लग गए।

बढ़ती मानसिक बीमारियों का ग्राफ
रीवा मेडिकल कॉलेज के मानसिक रोग विभाग के आंकड़ों के अनुसार, नशे की वजह से मानसिक रोगी बनने वाले मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 2021 में यह आंकड़ा 10 हजार था, जो 2023 में 20 हजार के पार हो गया। इसमें सबसे ज्यादा 14 से 30 साल के युवा शामिल हैं। डॉक्टरों का कहना है कि कोडीन युक्त कफ सिरप का ज्यादा सेवन शरीर पर बुरा असर डालता है।

घर-घर में कफ सिरप की दुकान खुली हुई है जबकि ये मेडिकल दुकानों पर बिकना चाहिए।

घर-घर में कफ सिरप की दुकान खुली हुई है जबकि ये मेडिकल दुकानों पर बिकना चाहिए।

15 मिनट में 5 लड़कों ने कफ सिरप खरीदा भास्कर रिपोर्टर कुछ देर यहां रुका और युवक की गतिविधियों पर नजर रखी। युवक अपनी जगह से उठा भी नहीं। वह मोबाइल देखता रहा। कुछ देर बाद वहां दो लड़के आए। दोनों लड़कों ने पैसे दिए और युवक ने बिना कुछ कहे दोनों के हाथ में कफ सिरप की शीशी थमा दी। भास्कर रिपोर्टर ने 15 मिनट तक यहां रुककर देखा तो इतनी देर में 5 लड़कों ने कफ सिरप खरीदा।

महिला सीसीटीवी कैमरे के जरिए हर आने-जाने वाले पर नजर रखती है।

महिला सीसीटीवी कैमरे के जरिए हर आने-जाने वाले पर नजर रखती है।

मुश्किल में फंसती हैं तो कपड़े फाड़ लेती हैं यहां पता चला कि महिला के साथ उसके परिवार के सदस्य भी मौजूद रहते हैं। इनका नेटवर्क इतना मजबूत है कि यदि इन्हें लगता है कि किसी ने कफ सिरप बेचते हुए इनका वीडियो बनाया है तो महिलाएं हंगामा मचा देती हैं। जिसने वीडियो बनाया, उसके सामने अपने कपड़े फाड़ लेती हैं और छेड़छाड़ का आरोप लगा देती हैं। मोहल्ले के बाकी लोग भी इकट्ठे हो जाते हैं इसलिए कोई इनकी शिकायत नहीं करता।

भास्कर रिपोर्टर महिला से कफ सिरप खरीदते हुए।

रिपोर्टर महिला से कफ सिरप खरीदते हुए।

फल बेचने वाले ने कहा- दिनभर में 300 रुपए मुश्किल से कमा पाता हूं। कफ सिरप बेचने वाले दो हजार तक कमा लेते हैं।

फल बेचने वाले ने कहा- दिनभर में 300 रुपए मुश्किल से कमा पाता हूं। कफ सिरप बेचने वाले दो हजार तक कमा लेते हैं।

निष्कर्ष: एक गंभीर चुनौती
रीवा में नशीले कफ सिरप का यह खुला कारोबार मध्य प्रदेश में नशे की समस्या की गंभीरता को दर्शाता है। पुलिस, प्रशासन, और स्वास्थ्य विभाग के संयुक्त प्रयासों के बिना इस समस्या का समाधान करना असंभव है। सख्त कानूनी कार्रवाई, पुलिस-ड्रग्स माफिया की मिलीभगत पर रोक, और युवाओं में जागरूकता पैदा करना इस चुनौती से निपटने के लिए बेहद जरूरी है।

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