सरकारी डॉक्टरों की 'डबल ड्यूटी' और निजी अस्पतालों की मनमानी: रीवा में स्वास्थ्य माफिया का खेल, आयुष्मान योजना को लग रहा करोड़ों का चूना; सरकार आखिर कब करेगी कार्रवाई?

रीवा शहर में स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर एक बड़ा और डरावना खेल चल रहा है। शहर के गली-मोहल्लों से लेकर मुख्य मार्गों तक, बड़ी संख्या में ऐसे अस्पताल और क्लीनिक धड़ल्ले से संचालित हो रहे हैं, जो मूलभूत नियमों और सुरक्षा मानकों का सरेआम उल्लंघन कर रहे हैं। इन अस्पतालों में न तो मरीजों और तीमारदारों के लिए पर्याप्त पार्किंग की सुविधा है, न ही आग लगने जैसी आपातकालीन स्थितियों से निपटने के लिए उचित फायर सेफ्टी सिस्टम। सबसे गंभीर बात यह है कि ये अस्पताल कथित तौर पर आयुष्मान भारत योजना जैसे सरकारी उपक्रम को भी चूना लगा रहे हैं, जिससे मरीजों और सरकार दोनों को भारी नुकसान हो रहा है। लेकिन सवाल यह है कि आखिर रीवा में कब तक प्राइवेट अस्पतालों की ये मनमानी चलती रहेगी? सरकार इन पर कब कार्रवाई करेगी?
नियमों की अनदेखी, जनता की जान जोखिम में: हर दिन मौत से खिलवाड़!
स्वास्थ्य सेवा एक संवेदनशील क्षेत्र है, जहाँ मरीजों की जान से खिलवाड़ सीधे तौर पर आपराधिक श्रेणी में आता है। लेकिन रीवा में कई निजी अस्पताल खुलेआम नियमों को धता बता रहे हैं, जिससे मरीजों की सुरक्षा और जीवन पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। रोजाना कई मरीजों की जान सिर्फ इसलिए चली जाती है क्योंकि उन्हें सही और अनुभवी डॉक्टर उपलब्ध नहीं हो पाते हैं! यह दर्शाता है कि स्वास्थ्य सेवा किस कदर बेकाबू और बदहाल हो चुकी है।
नियम विरुद्ध संचालन के प्रमुख बिंदु:
-
पार्किंग सुविधा का अभाव: रीवा के अधिकांश निजी अस्पतालों में मरीजों के वाहनों या एम्बुलेंस के लिए पर्याप्त पार्किंग की सुविधा नहीं है। मुख्य सड़कों पर स्थित ये अस्पताल अक्सर ट्रैफिक जाम का कारण बनते हैं और आपात स्थिति में एम्बुलेंस को भी अंदर आने में मुश्किल होती है। मरीजों के तीमारदारों को अपने वाहन सड़कों पर या आसपास की गलियों में पार्क करने पड़ते हैं, जिससे अव्यवस्था फैलती है।
-
फायर सेफ्टी मानकों की धज्जियां: अग्नि सुरक्षा किसी भी अस्पताल के लिए सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। रीवा के कई अस्पतालों में न तो पर्याप्त अग्निशमन यंत्र हैं, न ही आपातकालीन निकास मार्ग (Emergency Exits) स्पष्ट रूप से चिह्नित हैं। आग लगने की स्थिति में मरीजों, विशेषकर आईसीयू या ऑपरेशन थिएटर में भर्ती मरीजों को बाहर निकालना बेहद मुश्किल होगा, जिससे बड़ी त्रासदी हो सकती है। फायर ऑडिट रिपोर्टों का शायद ही कभी पालन किया जाता है।
-
न्यूनतम बुनियादी ढांचे का अभाव: नियमों के अनुसार, अस्पतालों के पास पर्याप्त संख्या में बेड, ऑपरेशन थिएटर, आईसीयू, पैथोलॉजी लैब और अन्य आवश्यक चिकित्सा उपकरण होने चाहिए। लेकिन कई अस्पताल केवल नाम के लिए पंजीकृत हैं और उनके पास ये सुविधाएं नहीं हैं, फिर भी वे मरीजों को भर्ती कर रहे हैं और इलाज का दावा कर रहे हैं।
-
बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट का उल्लंघन: अस्पतालों से निकलने वाले बायोमेडिकल कचरे (जैसे इस्तेमाल की हुई सुइयां, पट्टियां, मानव अंग) का उचित निस्तारण न होना एक गंभीर पर्यावरणीय और स्वास्थ्य खतरा है। कई अस्पताल इन नियमों का पालन नहीं करते और कचरे को खुले में फेंक देते हैं या सामान्य कूड़ेदानों में मिला देते हैं, जिससे संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है।
-
अयोग्य/गैर-अनुभवी स्टाफ और इमरजेंसी डॉक्टर की कमी: कई अस्पतालों में नियमों के अनुसार आवश्यक संख्या में योग्य डॉक्टर, नर्स और पैरामेडिकल स्टाफ मौजूद नहीं होता है। खासकर, इमरजेंसी वार्ड में 24 घंटे योग्य या अनुभवी डॉक्टर का न होना एक बेहद गंभीर लापरवाही है। ऐसे में गंभीर स्थिति में आए मरीजों को तत्काल सही इलाज नहीं मिल पाता, जिससे उनकी जान जाने का खतरा बढ़ जाता है। अनुभवी डॉक्टरों की कमी के कारण हर रोज मरीजों की जान जा रही है, यह स्वास्थ्य सेवा के बेहाल होने का जीता जागता सबूत है।
-
संक्रमण नियंत्रण प्रोटोकॉल की अनदेखी: अस्पतालों में संक्रमण को नियंत्रित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। साफ-सफाई, उपकरणों का स्टेरिलाइजेशन और स्टाफ द्वारा उचित प्रोटोकॉल का पालन न होने से मरीजों में अस्पताल-जनित संक्रमण (Hospital-Acquired Infections) का खतरा बढ़ जाता है।
-
अस्पताल के अंदर सूचना बोर्डों का अभाव: कई अस्पतालों के अंदर मरीजों और उनके परिजनों के लिए आवश्यक जानकारी वाले बोर्ड (जैसे इमरजेंसी निकास, डॉक्टरों के नाम और उनकी उपलब्धता, शिकायत पेटी, या सुविधाओं की सूची) नहीं लगे होते हैं। जहाँ लगे भी हैं, वहाँ जानकारी अधूरी या गलत होती है। यह पारदर्शिता की कमी को दर्शाता है।
सरकारी डॉक्टरों की 'डबल ड्यूटी' और सरकार को चूना: बेलगाम होता सरकारी अस्पताल!
रीवा में एक और चौंकाने वाला पहलू सामने आ रहा है: कई ऐसे डॉक्टर हैं जो सरकारी अस्पतालों में असिस्टेंट प्रोफेसर जैसे महत्वपूर्ण पदों पर तैनात हैं और सरकारी खजाने से वेतन ले रहे हैं। लेकिन हैरानी की बात यह है कि वे अपना अधिकतम समय अपने निजी नर्सिंग होम या प्राइवेट क्लीनिक में बिताते हैं।
-
सरकारी पैसों की बर्बादी और जनता का दर्द: ये सरकारी डॉक्टर अपनी सरकारी ड्यूटी को दरकिनार कर पैसे छापने में लगे हैं, जिससे सरकारी अस्पताल में मरीजों को गुणवत्तापूर्ण इलाज नहीं मिल पाता। मरीजों को घंटों लाइन में लगकर भी डॉक्टर नहीं मिलते, या फिर उन्हें इन्हीं डॉक्टरों के प्राइवेट क्लीनिक जाने की सलाह दे दी जाती है। सरकारी अस्पताल पूरी तरह बेलगाम हो चुका है, जहाँ हर घंटे मरीज परेशान होते हैं, जबकि सुविधाओं के नाम पर सारे दावे खोखले साबित हो रहे हैं।
-
निजी अस्पतालों की मनमानी को बढ़ावा: इन सरकारी डॉक्टरों की निजी प्रैक्टिस और निजी अस्पतालों में अत्यधिक भागीदारी, निजी नर्सिंग होम को मनमानी करने का लाइसेंस देती है। मरीजों को अक्सर सरकारी अस्पताल में इलाज न मिलने पर इन्हीं डॉक्टरों के निजी क्लीनिक या नर्सिंग होम जाने के लिए मजबूर किया जाता है, जहाँ उन्हें मोटी फीस चुकानी पड़ती है।
आयुष्मान कार्ड पर 'चूना' लगाने का खेल, अनगिनत स्कैम और भ्रूण लिंग परीक्षण!
नियमों की अनदेखी और सरकारी डॉक्टरों की मिलीभगत के साथ-साथ, रीवा के कुछ निजी अस्पतालों पर आयुष्मान भारत योजना के तहत सरकारी धन के दुरुपयोग का भी गंभीर आरोप लग रहा है। यह एक ऐसा संगठित खेल है, जहाँ पारदर्शिता की कमी का फायदा उठाया जा रहा है:
-
ओवर-बिलिंग का गोरखधंधा: बताया जा रहा है कि यदि किसी आयुष्मान मरीज के इलाज का वास्तविक खर्च ₹5,000 होता है, तो अस्पताल उसे बढ़ाकर ₹25,000 या उससे भी अधिक का बिल बनाकर सरकार को भेजते हैं। इस तरह वे बिना किसी अतिरिक्त सेवा के सरकारी खजाने को लाखों-करोड़ों का चूना लगा रहे हैं।
-
अनावश्यक इलाज और जाँचें: कई मामलों में मरीजों को ऐसे उपचार पैकेज या जाँचें दी जाती हैं जिनकी उन्हें आवश्यकता नहीं होती, सिर्फ इसलिए ताकि आयुष्मान योजना के तहत अधिक बिल बनाया जा सके।
-
भ्रूण लिंग परीक्षण और अन्य अवैध स्कैम: ऐसी भी शिकायतें हैं कि कुछ निजी अस्पताल अवैध रूप से भ्रूण लिंग परीक्षण (Sex Determination) जैसे जघन्य अपराधों में भी लिप्त हैं। ये कानून के खिलाफ हैं और सामाजिक कुरीतियों को बढ़ावा देते हैं। कितने ही ऐसे स्कैम हो रहे हैं, कितने अवैध भ्रूण लिंग परीक्षण किए जाते हैं, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती! सरकार को सीधा-सीधा चूना लगाया जा रहा है।
-
फर्जी या दोहरा क्लेम: हालांकि आयुष्मान पोर्टल पर कड़ी निगरानी होती है, लेकिन कुछ अस्पताल विभिन्न तरीकों से फर्जी मरीजों या एक ही मरीज के लिए बार-बार क्लेम करके योजना का दुरुपयोग करने का प्रयास करते हैं।
इस पूरी प्रक्रिया में, सरकार का पैसा गलत हाथों में जा रहा है और योजना का लाभ उन ज़रूरतमंदों तक पूरी तरह नहीं पहुंच पा रहा है जिनके लिए इसे बनाया गया है।
सवालों के घेरे में सरकार: आखिर कब रुकेगी ये मनमानी? पूरा सिस्टम ढीला!
रीवा शहर में खुलेआम चल रही इन अनियमितताओं पर स्वास्थ्य विभाग और स्थानीय प्रशासन की चुप्पी और निष्क्रियता कई गंभीर सवाल खड़े करती है। यह जाहिर करता है कि स्वास्थ्य सेवाएँ किस कदर बेकार और बेकाबू चल रही हैं। सरकारी डॉक्टर पैसा छापने में लगे हैं, और पूरा सिस्टम ढीला करके रख दिया गया है!
-
क्या सरकार को इस संगठित भ्रष्टाचार की जानकारी नहीं है?
-
क्या सरकारी डॉक्टरों की 'डबल ड्यूटी' पर कोई लगाम नहीं है?
-
कब तक निजी अस्पतालों की यह मनमानी चलती रहेगी, जो जनता की जान और सरकार के पैसों दोनों से खेल रहे हैं?
-
कितने और घोटालों (स्कैम) का इंतजार किया जाएगा, कितने अवैध भ्रूण लिंग परीक्षण होते रहेंगे, और कितने मरीजों की जान जाने के बाद सरकार जागेगी?
सरकार को यह समझना होगा कि यह केवल नियमों का उल्लंघन नहीं, बल्कि सीधा-सीधा सरकारी खजाने को चूना लगाना और जनता के जीवन के साथ खिलवाड़ है। यह समय है कि प्रशासन कड़ा रुख अपनाए, इन अवैध गतिविधियों पर लगाम लगाए, और कठोरतम कार्रवाई करे। जनता की उम्मीदें सरकार से हैं कि वह इस स्वास्थ्य माफिया पर तुरंत अंकुश लगाएगी।
अस्पतालों की लापरवाही से मौतें, फिर भी कार्रवाई नहीं!
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इन अनियमितताओं के कारण कई अस्पतालों में मरीजों की जान चली जाती है, लेकिन इन पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जाती है। लापरवाही के मामलों में भी जवाबदेही