रीवा के शिक्षा विभाग में भूचाल! 'अनुकंपा नियुक्ति घोटाला' दबाने की साजिश, जांच रिपोर्ट दो महीने से गायब... कमिश्नर का भी 'मौन व्रत' क्यों?

 
ccc

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा जिले के शिक्षा विभाग में हुए कथित फर्जी अनुकंपा नियुक्तियों के मामले ने अब एक नया मोड़ ले लिया है। इस मामले की जाँच के लिए संभागायुक्त द्वारा गठित समिति को 15 दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट देनी थी, लेकिन दो महीने बीत जाने के बाद भी यह रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की गई है। इस देरी ने न केवल मामले की गंभीरता को बढ़ा दिया है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि क्या फर्जी नियुक्तियों में शामिल अधिकारियों को बचाने की कोशिश की जा रही है? यह पूरा मामला तब सामने आया जब कई अनियमितताओं की शिकायतें मिलीं। अनुकंपा नियुक्तियां, जो कि एक दिवंगत सरकारी कर्मचारी के परिवार को सहायता देने के लिए होती हैं, उनका इस तरह दुरुपयोग होना एक गंभीर अपराध है।

समिति का गठन और जांच में देरी का कारण: क्यों नहीं मिली जानकारी?
संभागायुक्त ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए 13 जून, 2025 को एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था। इस समिति में संभागायुक्त के साथ-साथ जिला कोषालय अधिकारी रीवा और प्राचार्य उत्कृष्ट उमावि माण्ड क्रमांक-1 जयप्रकाश जायसवाल को शामिल किया गया था। समिति को स्पष्ट निर्देश दिए गए थे कि वह पिछले तीन वर्षों में हुई चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की अनुकंपा नियुक्तियों की जाँच कर 15 दिनों के अंदर रिपोर्ट प्रस्तुत करे। लेकिन, दो महीने का समय बीत चुका है और समिति की ओर से कोई भी जाँच प्रतिवेदन प्रस्तुत नहीं किया गया है। संभागायुक्त ने इस देरी पर नाराजगी व्यक्त की है और समिति से जवाब मांगा है। इस देरी के पीछे क्या कारण हैं, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है। क्या यह जानबूझकर की गई देरी है या फिर जांच में कोई बड़ी बाधा आ रही है, यह अभी पता लगाना बाकी है।

अनियमितताओं का इतिहास: पिछले तीन वर्षों में क्या हुआ?
संभागायुक्त द्वारा जारी आदेश में यह उल्लेख किया गया है कि विगत एक वर्ष में विभाग में की गई अनुकंपा नियुक्तियों के प्रकरणों की जाँच करने पर यह पाया गया था कि 6 प्रकरणों में कई अनियमितताएं थीं। यह भी संदेह है कि इन नियुक्तियों में कूटरचित (फर्जी) दस्तावेजों का इस्तेमाल किया गया था। ये अनियमितताएं सिर्फ पिछले एक साल तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि यह संदेह है कि पिछले तीन वर्षों में भी कई फर्जी अनुकंपा नियुक्तियां की गई हैं। इन नियुक्तियों में नियमों का उल्लंघन किया गया था, और उन लोगों को नौकरी दी गई थी जो इसके पात्र नहीं थे। यह एक बड़ा घोटाला हो सकता है, जिसमें कई अधिकारियों की मिलीभगत होने की संभावना है।

दस्तावेजों में हेरफेर: क्या यह जानबूझकर की गई साजिश है?
जांच में सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इन नियुक्तियों में फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल किया गया था। यह सिर्फ एक गलती नहीं हो सकती, बल्कि यह एक सोची-समझी साजिश का हिस्सा लगता है। फर्जी दस्तावेज़ बनाना और उन्हें सरकारी प्रक्रिया में शामिल करना एक गंभीर आपराधिक कृत्य है। यह इंगित करता है कि कुछ लोग जानबूझकर इस तरह की धोखाधड़ी में शामिल थे। इस तरह के फर्जीवाड़े को छिपाने के लिए भी कई तरह के प्रयास किए गए होंगे। अब जब जांच शुरू हो गई है, तो यह देखना होगा कि कौन-कौन लोग इस साजिश में शामिल थे।

संभागायुक्त का सख्त रुख और अगले कदम: क्या होगा?
जांच में देरी को देखते हुए संभागायुक्त ने अब सख्त रुख अपना लिया है। उन्होंने समिति से कहा है कि वह तुरंत जांच प्रतिवेदन प्रस्तुत करे और इसके आधार पर कार्रवाई करे। संभागायुक्त ने यह भी स्पष्ट किया है कि फर्जी नियुक्तियां करने वालों और उन्हें छिपाने की कोशिश करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया है कि जांच में किसी भी तरह की ढिलाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि संभागायुक्त इस मामले में क्या कदम उठाते हैं।

क्या अधिकारियों को बचाया जा रहा है?
दो महीने की देरी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या जांच में शामिल अधिकारी उन लोगों को बचा रहे हैं जो इस फर्जीवाड़े में शामिल हैं? क्या कोई बड़ा राजनीतिक या प्रशासनिक दबाव है जो इस जांच को प्रभावित कर रहा है? इन सभी सवालों का जवाब तभी मिलेगा जब जांच पूरी होगी और रिपोर्ट सामने आएगी। लेकिन, फिलहाल यह कहना गलत नहीं होगा कि इस देरी ने पूरे मामले पर संदेह के बादल ला दिए हैं। जनता और पीड़ित परिवार न्याय की उम्मीद कर रहे हैं, और उन्हें जल्द से जल्द न्याय मिलना चाहिए।

FAQ
Q1: फर्जी अनुकंपा नियुक्तियों की जांच का मामला क्या है?
A: यह मामला रीवा शिक्षा विभाग में पिछले कुछ वर्षों में हुई फर्जी अनुकंपा नियुक्तियों से संबंधित है, जिसमें कूटरचित दस्तावेजों का इस्तेमाल किया गया था।

Q2: जांच के लिए समिति का गठन किसने किया था?
A: संभागायुक्त ने 13 जून, 2025 को एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था।

Q3: समिति को रिपोर्ट देने के लिए कितना समय दिया गया था?
A: समिति को 15 दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया था।

Q4: अभी तक जांच की स्थिति क्या है?
A: दो महीने बीत जाने के बाद भी समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की है, जिससे जांच अधर में लटकी हुई है।

Q5: संभागायुक्त ने इस पर क्या प्रतिक्रिया दी है?
A: संभागायुक्त ने इस देरी पर नाराजगी व्यक्त की है और समिति से तुरंत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

Related Topics

Latest News