रीवा में शिक्षा व्यवस्था ध्वस्त: अज्ञानता और अहंकार के हाथ में डीडीओ का प्रभार, शिक्षकों को 'चूतिया' कहने वाली बीईओ पर मेहरबानी क्यों? 'सिस्टम' की मिलीभगत बेनकाब!

 
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ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा जिले की शिक्षा व्यवस्था एक बार फिर सवालों के घेरे में है, और इस बार आरोपों के केंद्र में विकासखंड शिक्षा अधिकारी (बीईओ) सुश्री आकांक्षा सोनी हैं। शिक्षकों और कर्मचारियों द्वारा उन पर लगातार गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं, जिनमें बदसलूकी, काम में लापरवाही और वित्तीय अनियमितताएं शामिल हैं। सेवानिवृत्त सहायक शिक्षक मनोज पांडेय के साथ हुए कथित अपमानजनक व्यवहार का मामला सामने आने के बाद यह मुद्दा और गर्मा गया है।

सेवानिवृत्त शिक्षक के साथ बदसलूकी का आरोप
हाल ही में, सेवानिवृत्त सहायक शिक्षक मनोज पांडेय ने सुश्री सोनी पर अपनी पत्नी के इलाज के लिए एनओसी (अनापत्ति प्रमाण पत्र) मांगने पर "चूतिया" और "कुत्ता" जैसे शब्दों से अपमानित करने का आरोप लगाया है। पांडेय का कहना है कि वे आठ दिनों से एनओसी के लिए दफ्तर के चक्कर काट रहे थे, ताकि उनकी पत्नी का इलाज उनके बेटे की कंपनी के अस्पताल में हो सके। यह घटना शिक्षा विभाग में अधिकारियों के असंवेदनशील रवैये को उजागर करती है।

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कार्यशैली पर गंभीर प्रश्नचिह्न
शिक्षकों का आरोप है कि बीईओ आकांक्षा सोनी को अपने पद और कर्तव्यों की उचित जानकारी नहीं है। उन्हें अक्सर मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है, फिर भी उन्हें डीडीओ (आहरण एवं संवितरण अधिकारी) का प्रभार दिया गया है। शिक्षकों का दावा है कि जब से उन्होंने यह प्रभार संभाला है, वेतन वितरण में भारी देरी हो रही है, और शिक्षकों को अपना वेतन 10 से 12 तारीख के बीच मिल रहा है। इसके चलते कई शिक्षकों के चेक बाउंस हो रहे हैं, जिससे उन्हें आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।

शिक्षकों का यह भी आरोप है कि जब वे अपनी समस्याओं को लेकर बीईओ कार्यालय जाते हैं, तो सुश्री सोनी उनकी बात सुनने के बजाय उनके खिलाफ कलेक्टर से झूठी शिकायत कर देती हैं। उन पर चपरासियों तक के साथ अभद्र शब्दों का प्रयोग करने का आरोप है। यह स्थिति कार्यस्थल के माहौल को दूषित कर रही है और कर्मचारियों के मनोबल को गिरा रही है।

पूर्व में भी शिकायत और बदले की कार्रवाई
यह पहली बार नहीं है जब सुश्री सोनी विवादों में घिरी हैं। जानकारी के अनुसार, पूर्व में बीईओ कार्यालय के ही लिपिक, गोविंद साकेत, ने उनके खिलाफ आजाक थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। हैरत की बात यह है कि इस शिकायत के बाद गोविंद साकेत का पद का रुतबा दिखाते हुए अन्यत्र स्थानांतरण कर दिया गया। यह घटना स्पष्ट रूप से यह दर्शाती है कि शिकायत करने वालों को किस तरह से निशाना बनाया जाता है, जिससे बाकी कर्मचारियों में डर का माहौल व्याप्त है।

शिक्षा व्यवस्था का मज़ाक या सिस्टम की खामी?
शिक्षकों और कर्मचारियों द्वारा लगाए गए ये आरोप दर्शाते हैं कि रीवा की शिक्षा व्यवस्था मज़ाक बनकर रह गई है। जहां एक ओर शिक्षकों को समय पर वेतन नहीं मिल रहा, उनके चेक बाउंस हो रहे हैं और उन्हें अपने वाजिब काम के लिए भी अपमानित होना पड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर जिम्मेदार अधिकारियों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो रही। यह स्थिति न केवल शिक्षकों को परेशान कर रही है, बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल रही है।

इस पूरे प्रकरण में सिस्टम पर भी सवाल उठते हैं। यदि एक अधिकारी के खिलाफ लगातार शिकायतें आ रही हैं, और उन पर गंभीर आरोप लग रहे हैं, तो उन्हें इतने महत्वपूर्ण पदों पर क्यों रखा जा रहा है? क्या जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) और संयुक्त संचालक (जेडी) इस स्थिति से अनभिज्ञ हैं, या उनके संरक्षण में यह सब चल रहा है? आरोप यह भी हैं कि सुश्री सोनी शासन के नियमों से नहीं, बल्कि डीईओ और जेडी के कहने पर काम करती हैं, जो अधिकारियों के बीच मिलीभगत की ओर इशारा करता है।

शिक्षक समुदाय और आम जनता मांग कर रही है कि सुश्री आकांक्षा सोनी से तत्काल डीडीओ प्रभार वापस लिया जाए और उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों की निष्पक्ष जांच कर कड़ी कार्रवाई की जाए। यदि ऐसी कार्यशैली जारी रहती है, तो रीवा की शिक्षा व्यवस्था का भविष्य अंधकारमय होगा।

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