रीवा में 'नशे से दूरी' अभियान पर विस्फोटक सवाल: क्या SP-IG को हर महीने आता है 'हफ्ता'? रैलियां सिर्फ 'नौटंकी' और आंखों में धूल झोंकने का खेल!

 
ffd

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) मुख्यमंत्री मोहन यादव के निर्देश पर प्रदेश भर में 'नशे से दूरी है जरूरी' अभियान जोर-शोर से चलाया जा रहा है। रीवा पुलिस भी 15 से 30 जुलाई तक रैलियों और आयोजनों के माध्यम से 'जागरूकता' का ढोंग रच रही है, जिसका वीडियो भी सामने आया है। लेकिन इस दिखावटी कवायद के बीच रीवा जिले के अंदरूनी हालात भयावह तस्वीर पेश कर रहे हैं, जहां दशकों से नशे का गढ़ बन चुका 'कबाड़ी मोहल्ला' (उर्फ गंगानगर) पुलिस और प्रशासन की कार्यशैली पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगा रहा है।  वहीं दूसरी ओर रीवा का कुख्यात 'कबाड़ी मोहल्ला' (नाम बदला-गंगानगर) आज भी खुलेआम नशे का गढ़ बना हुआ है। जनता और मीडिया के बीच दबी ज़ुबान में यह सवाल तैर रहा है कि रीवा के एसपी और आईजी जैसे शीर्ष अधिकारियों की नाक के नीचे चल रहे इस करोड़ों के कारोबार को आखिर कौन संरक्षण दे रहा है? क्या बिना 'ऊपर' से हरी झंडी के यह संभव है?

fggh

'कोरेक्स सिटी' का दाग: नाम बदला, नीयत कब बदलेगी?

रीवा, जिसे कभी 'कोरेक्स सिटी' का बदनामी भरा तमगा मिला था, उसकी छवि सुधारने के लिए उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल ने कबाड़ी मोहल्ले का नाम बदलकर 'गंगानगर' रख दिया। मकसद था रीवा की पहचान को इस काले धब्बे से मुक्त करना। लेकिन हकीकत यह है कि आज भी रीवा का नाम लेते ही, चाहे भोपाल हो, इंदौर हो या बेंगलुरु, लोग उसे कोरेक्स के लिए ही जानते हैं। नाम बदलने से क्या हुआ, जब नशे का कारोबार आज भी बेखौफ फल-फूल रहा है?

थाने से चंद कदमों पर मौत का सौदा: किसकी शह पर?

यह बेहद शर्मनाक है कि रीवा शहर का कुख्यात 'गंगानगर' (कबाड़ी मोहल्ला) आज भी नशे का सबसे बड़ा केंद्र बना हुआ है। यह इलाका संबंधित थानों से चंद कदमों की दूरी पर है, और 2-3 पुलिस थाने इसके एक किलोमीटर के दायरे में आते हैं। बावजूद इसके, कोरेक्स, गांजा, अफीम, इंजेक्शन और यहां तक कि ब्राउन शुगर व ड्रग्स जैसे घातक नशे का कारोबार यहां दिन-रात, सुबह-शाम खुलेआम संचालित हो रहा है।

fgh

सवाल यह नहीं कि पुलिस को जानकारी नहीं है। सवाल यह है कि आखिर क्यों इतने वर्षों से, इतने पुलिस अधीक्षकों (SP), महानिरीक्षकों (IG) और अन्य आला अधिकारियों के आने-जाने के बावजूद, इस ज़हर के धंधे पर लगाम क्यों नहीं लग पाई? क्या रीवा के शीर्ष पुलिस अधिकारी – एसपी, आईजी, डीआईजी, डीएसपी, सीएसटी – इस पूरे गोरखधंधे से अनभिज्ञ हैं? या फिर जानबूझकर आंखें मूंदी जा रही हैं?

क्या 'नशा मुक्ति' अभियान सिर्फ एक 'नौटंकी' है? गंभीर आरोप!

शिक्षकों और आम जनता के बीच यह सवाल ज़ोर पकड़ रहा है कि जब पुलिस को नशे के हर अड्डे की पुख्ता जानकारी है, और सीमावर्ती क्षेत्रों जैसे हनुमाना, चाकघाट पास या चोरहटा में लाखों की खेप पकड़ी जाती है, तो आखिर क्यों 'गंगानगर' में ठोस कार्रवाई नहीं होती? पुलिस की यह 'जागरूकता रैली' और आयोजनों को महज 'नौटंकी' क्यों न समझा जाए, जब उनकी नाक के नीचे नशे का कारोबार बेखौफ चल रहा है?

सीधा सवाल: क्या पुलिस विभाग में 'सेटिंग' से चलता है कारोबार?

पुलिस विभाग की इस निष्क्रियता और संदिग्ध चुप्पी पर सबसे बड़ा और चुभता सवाल यह उठता है कि क्या रीवा के आईजी और एसपी को कबाड़ी मोहल्ले से हर महीने 'हफ्ता' जाता है? क्या हर थाने को इस बड़े नशे के कारोबार से मोटी रकम पहुंचाई जाती है? यह आरोप आमजन और कुछ पुलिसकर्मियों द्वारा दबी ज़ुबान में लगाए जा रहे हैं, जो इस पूरी व्यवस्था पर कालिख पोतते हैं। यदि ऐसा नहीं है, तो पुलिस अधिकारी अपनी चुप्पी तोड़ें और जवाब दें कि क्यों खुलेआम रीवा की युवा पीढ़ी को यह ज़हर परोसा जा रहा है?

सत्ता के वादे भी झूठे: किसकी मिलीभगत?

पूर्व में डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल और सांसद जनार्दन मिश्रा ने भरे मंच से रीवा को नशामुक्त बनाने का संकल्प लिया था, लेकिन उनके ये वादे भी आज खोखले साबित हो रहे हैं। विधायक से लेकर मंत्री तक की मौजूदगी और पर्याप्त पुलिस बल के बावजूद, यदि नशे का कारोबार फलता-फूलता रहे, तो यह किसकी मिलीभगत की ओर इशारा करता है? क्या इस धंधे में नेता और पुलिस दोनों की संलिप्तता है? सिर्फ नाम मात्र की कार्रवाई और आंकड़ों का खेल दिखाकर जनता को कब तक गुमराह किया जाएगा?

fgh

अब वक्त है जवाबदेही का!

रीवा के स्कूल-कॉलेज के बच्चों को रैली में शामिल करके और तस्वीरें खिंचवाकर नशे को रोका नहीं जा सकता। पुलिस को पता है कि असल जड़ कहां है और कारोबार कौन चला रहा है। रीवा की जनता अब दिखावा नहीं, बल्कि ठोस कार्रवाई चाहती है।

हम रीवा न्यूज़ मीडिया के माध्यम से युवा पीढ़ी से एक बार फिर अनुरोध करते हैं कि नशे से दूर रहें, यह आपके जीवन और परिवार को तबाह कर देगा। लेकिन साथ ही, यह मांग करते हैं कि रीवा पुलिस और प्रशासन अपनी आंखें खोलें, इस 'सिस्टम' में घुस चुकी सड़ांध को खत्म करें, और ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी निभाएं। जनता को हफ्ताखोरी और मिलीभगत पर नहीं, बल्कि वास्तविक नशामुक्त रीवा पर विश्वास चाहिए।

Related Topics

Latest News