पर्दाफाश: रीवा में 'जिंदा मुर्दे' का खेल! अनुकंपा नियुक्ति गैंग सक्रिय, करोड़ों का 'स्कैम' सामने आया!

 
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ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा जिले में अनुकंपा नियुक्ति पाने के लिए एक चौंकाने वाला फर्जीवाड़ा सामने आया है, जहाँ बेटे ने अपनी जिंदा मां को कागजों में मरा दिखाकर सरकारी नौकरी हथिया ली. यह सिर्फ एक मामला नहीं है, बल्कि गंगेव ब्लॉक में ऐसे 6 और मामले सामने आए हैं, जिनमें लोगों ने अपने माता-पिता को मृत बताकर अनुकंपा नियुक्ति हासिल की.

इस बड़े खुलासे के बाद विभागीय क्लर्क समेत 7 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की गई है, जो सभी फिलहाल फरार हैं. वहीं, रीवा के जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) सुदामा गुप्ता को सस्पेंड कर दिया गया है. पड़ताल में सामने आया है कि इलाके में फर्जी अनुकंपा नियुक्तियां कराने वाला एक गैंग सक्रिय है, जो अभी तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर है.

इस केस से समझिए, कैसे हुआ फर्जीवाड़ा: जिंदा बेलाकली को 'मृत' बताया
परसिया में रहने वाली बेलाकली (जो कागजों में दो साल पहले ही 'मर चुकी' हैं) ने बताया, "मैं तो जिंदा हूं, आपके सामने बैठी हूं. नौकरी के लिए मुझे मरा बता दिया. हम पढ़े-लिखे भी नहीं हैं, हमारे फर्जी दस्तखत कर दिए." बेलाकली के बेटे बृजेश कोल पर आरोप है कि उसने अपनी जीवित मां को मरा दिखाकर स्कूल में बतौर चपरासी (प्यून) फर्जी अनुकंपा नियुक्ति ले ली.

स्कूल शिक्षा विभाग की शिकायत के अनुसार, बृजेश कोल ने 1 अप्रैल 2025 को आवेदन किया था कि उसकी मां बेलाकली कोल शासकीय माध्यमिक शाला ढेरा में सहायक शिक्षक थीं और उनकी 16 अप्रैल 2023 को मृत्यु हो गई. उसने आवेदन के साथ मां का मृत्यु प्रमाण पत्र सहित कई फर्जी दस्तावेज लगाए. इन्हीं दस्तावेजों के आधार पर 17 अप्रैल को बृजेश की शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय जोड़ौरी में चपरासी के पद पर नियुक्ति हो गई थी. निलंबित डीईओ सुदामा गुप्ता के अनुसार, यह नियुक्ति अस्थायी थी.

एक कैंप ने खोला फर्जीवाड़े का राज
इस पूरे फर्जीवाड़े का खुलासा 21 मई 2025 को रीवा के गंगेव ब्लॉक में लगे स्कूल शिक्षा विभाग के एक कैंप में हुआ. यह कैंप कर्मचारियों के वेतन भुगतान संबंधी शिकायतों को दूर करने के लिए लगाया गया था. इसी दौरान पता चला कि चपरासी बृजेश कोल को नियुक्ति तो मिल गई है, लेकिन वह 15 दिन से ऑफिस नहीं आया और उसने कोई दस्तावेज भी जमा नहीं किए, जिससे उसका वेतन अटका था.

तत्कालीन जिला शिक्षा अधिकारी सुदामा गुप्ता ने पड़ताल कराई, तो 22 मई को प्यून के दस्तावेजों की जांच में पता चला कि सभी दस्तावेज फर्जी थे.

बृजेश के अलावा 5 और मामले फर्जी निकले, क्लर्क बर्खास्त
मामले की जानकारी जिला कलेक्टर प्रतिभा पाल को दी गई, जिनके निर्देश पर बृजेश के खिलाफ FIR दर्ज की गई. इसके साथ ही नियुक्ति प्रक्रिया से जुड़े संबंधित क्लर्क को तत्काल प्रभाव से बर्खास्त कर दिया गया.

निलंबित डीईओ सुदामा गुप्ता के अनुसार, पिछले एक साल में 39 लोगों को अनुकंपा नियुक्ति दी गई थी. इनकी जांच के लिए एक टीम बनाई गई. डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन के लिए बुलाए गए लोगों में से केवल 34 ही आए, जबकि पांच लोग अनुपस्थित रहे. इन पांचों के दस्तावेजों की जांच करने पर वे सभी फर्जी पाए गए. इन पांचों और संबंधित बाबू के खिलाफ भी FIR दर्ज की गई है.

परिवार का दावा: बृजेश को फंसाया गया, गैंग सक्रिय
फर्जीवाड़े के खुलासे के बाद सभी आरोपी फरार हैं. बृजेश कोल के गांव परासिया पहुँचने पर उसके पिता शिवचरण कोल ने बताया कि उन्हें बृजेश के बारे में कोई जानकारी नहीं है. उन्होंने बताया कि बृजेश ने नौकरी के लिए उनसे ₹10 लाख मांगे थे, जिसके लिए उसने अपनी पत्नी के जेवर और मौसी की जमीन तक बेच दी थी.

शिवचरण कोल का दावा है कि उनके बेटे को उनके ही रिश्तेदार श्रीराम कोल ने फंसाया है, जो बृजेश के मामा का बेटा है. शिवचरण के अनुसार, श्रीराम ने ही सारे फर्जी दस्तावेज तैयार किए, उनकी पत्नी और गांव के सरपंच के भी नकली हस्ताक्षर किए. श्रीराम के पिता शिक्षक रह चुके हैं, जिससे वह शिक्षा विभाग से जुड़ा था. श्रीराम का साथी राकेश रावत है, जिसकी पत्नी ऊषा देवी भी उन छह लोगों में शामिल हैं, जिन्हें फर्जी अनुकंपा नियुक्ति मिली है.

निलंबित डीईओ सुदामा गुप्ता ने भी माना है कि कोई गिरोह काम कर रहा है जिसने इतनी सफाई से दस्तावेज तैयार किए. उन्होंने बताया कि बृजेश के पिता ने नोटिस के जवाब में लिखा है कि श्रीराम ने ₹10 लाख लिए थे, जिसकी जानकारी पुलिस को दे दी गई है और मामला अभी विवेचना में है.

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