रीवा में 'मौत का कचरा' बेखौफ! संजय गांधी अस्पताल के पीछे खुला फेंका जा रहा जहरीला बायोमेडिकल वेस्ट, क्या DGM भी 'आंखें मूंदे' बैठे हैं?

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा के सबसे बड़े अस्पताल, संजय गांधी अस्पताल, में न सिर्फ मरीजों की जान से खिलवाड़ हो रहा है, बल्कि अब यह अस्पताल महामारी का केंद्र बनने की कगार पर खड़ा है। अस्पताल के पीछे खुले में फेंका जा रहा जहरीला बायोमेडिकल वेस्ट – जिसमें खून से सनी पट्टियां, इस्तेमाल किए गए इंजेक्शन, सीरिंज और ब्लड बैग्स शामिल हैं – साफ तौर पर नियमानुसार 'मानव वध' की साजिश लग रहा है, क्योंकि यह सीधे तौर पर आम लोगों, सफाई कर्मचारियों, बच्चों और जानवरों के जीवन को खतरे में डाल रहा है।
यह कोई सामान्य 'लापरवाही' नहीं, बल्कि कानूनों का खुला उल्लंघन और अस्पताल प्रबंधन की घोर आपराधिक उदासीनता है।
एनजीटी के कड़े नियम ताक पर, स्वास्थ्य विभाग पर आपराधिक लापरवाही का आरोप!
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने चिकित्सा अपशिष्ट के निस्तारण के लिए सख्त नियम बनाए हैं, जिसके तहत क्लोरीनेटेड प्लास्टिक बैग, दस्ताने, और ब्लड बैंक से निकलने वाले निडिल जैसे अपशिष्टों का अलग तरीके से निस्तारण अनिवार्य है। भारत सरकार के बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स, 2016 भी ऐसे वेस्ट के संग्रहण, सेग्रीगेशन, डिस्पोजल और ट्रीटमेंट के लिए सख्त नियम निर्धारित करते हैं। इन नियमों का पालन न करने पर 5 साल की कैद और 1 लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान है, और संबंधित अस्पताल का लाइसेंस भी रद्द किया जा सकता है।
लेकिन, संजय गांधी अस्पताल का प्रबंधन, खासकर डीन डॉ. सुनील अग्रवाल, न तो एनजीटी से डरता है और न ही सरकार के बनाए गए कानूनों से। खुले में फेंका जा रहा यह जहरीला कचरा एचआईवी, हेपाटाइटिस बी-सी, टायफाइड और टीबी जैसी जानलेवा बीमारियों को फैलाने का सीधा जरिया बन रहा है। यह पर्यावरण को भी गंभीर रूप से प्रदूषित कर रहा है, जिससे वायु प्रदूषण का खतरा भी मंडरा रहा है।
जिम्मेदार बोले – 'मुझे जानकारी नहीं'! क्या यह आपराधिक मिलीभगत है?
जब इस गंभीर मामले में अस्पताल के डीन डॉ. सुनील अग्रवाल से संपर्क किया गया, तो उन्होंने इस विषय पर अपनी 'अनभिज्ञता' जताई। उनका यह कहना कि उन्हें इस तरह के कचरे के खुले में फेंके जाने की कोई जानकारी नहीं है, यह दर्शाता है कि या तो वे अपने कर्तव्यों में घोर लापरवाही कर रहे हैं, या यह सीधे तौर पर आपराधिक साजिश का हिस्सा है। एक अस्पताल के डीन की जिम्मेदारी सिर्फ शैक्षणिक नहीं होती, बल्कि प्रबंधन, निगरानी और सुरक्षा व्यवस्था की भी होती है।
यह और भी चौंकाने वाली बात है कि संजय गांधी अस्पताल में ऐसी लापरवाही पहली बार नहीं हो रही है। विगत वर्ष भी ऐसे ही हालात की तस्वीरें सामने आई थीं, तब भी प्रबंधन को इसकी जानकारी दी गई थी, लेकिन अफसोस, एक साल बाद भी तस्वीर नहीं बदली। यह साबित करता है कि अस्पताल प्रबंधन और जिम्मेदार अधिकारी जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने के लिए स्वतंत्र हैं, और उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती।
न्याय प्रणाली और कानून का मजाक: ऐसे अधिकारियों पर क्या कार्रवाई होगी?
सवाल यह है कि जब कानून साफ हैं, नियम कड़े हैं, और जानलेवा कचरा खुलेआम फेंका जा रहा है, तो जिम्मेदार अधिकारियों पर अभी तक कोई एक्शन क्यों नहीं हुआ? इस मामले में भारतीय न्याय संहिता (BNS) और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।
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BNS की संभावित धाराएं:
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BNS धारा 106 (लापरवाही से मृत्यु): यदि इस जहरीले कचरे के कारण किसी की मृत्यु होती है।
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BNS धारा 117 (घोर उपहति पहुंचाना जिससे जीवन को खतरा हो): यदि किसी को गंभीर संक्रमण या बीमारी होती है।
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BNS धारा 319 (धोखाधड़ी और बेईमानी): यदि अस्पताल प्रबंधन जानबूझकर नियमों का उल्लंघन कर रहा है और बिल वसूल रहा है, लेकिन सुरक्षा नहीं दे रहा।
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पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986: इस अधिनियम के तहत पर्यावरण को प्रदूषित करने के लिए कड़ी सजा का प्रावधान है। बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स का उल्लंघन इस अधिनियम के तहत आता है।
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कार्रवाई न करने वाले अधिकारियों पर BNS और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम:
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BNS धारा 173 (लोक सेवक द्वारा विधि के अधीन निदेश की अवज्ञा): डीन जैसे लोक सेवक यदि अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करते, तो उन पर यह धारा लागू हो सकती है।
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भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988: यदि यह साबित होता है कि अधिकारियों ने किसी लाभ के लिए इस गंभीर उल्लंघन पर आंखें मूंद रखी हैं।
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सेवा नियमों के तहत अनुशासनात्मक कार्रवाई: कर्तव्य में घोर लापरवाही के लिए निलंबन, वेतन वृद्धि रोकना या बर्खास्तगी तक की कार्रवाई हो सकती है।
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रीवा की जनता अब कलेक्टर और उच्च प्रशासन से यह जानना चाहती है कि क्या संजय गांधी अस्पताल जैसे जिम्मेदार संस्थान को कानून तोड़ने और जनता की जान जोखिम में डालने की खुली छूट मिली हुई है? या फिर इस बार कानून अपना काम करेगा और दोषियों को सख्त से सख्त सजा मिलेगी? क्या रीवा का स्वास्थ्य विभाग अपनी नींद से जागेगा, या महामारी का इंतजार करेगा?