रीवा में 'गैस घोटाला': शिकायतें अनसुनी, अमरीश दुबे पर निष्क्रियता के गंभीर आरोप, तत्काल निलंबन की मांग!

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) शहर में अवैध गैस सिलेंडरों के खुलेआम इस्तेमाल और खाद्य विभाग की चौंकाने वाली निष्क्रियता ने एक बड़े सवालिया निशान खड़ा कर दिया है: क्या रीवा का पूरा प्रशासन 'पैसे खाने' में व्यस्त है और जनता की सुरक्षा से खिलवाड़ कर रहा है? स्थानीय निवासियों का गुस्सा सातवें आसमान पर है, क्योंकि उनकी बार-बार की शिकायतों के बावजूद खाद्य अधिकारी अमरीश दुबे और उनका अमला कोई ठोस कार्रवाई करने को तैयार नहीं है।
शहर में खाने-पीने की चीज़ों में भारी मिलावट का खेल धड़ल्ले से चल रहा है, लेकिन खाद्य विभाग की निष्क्रियता अब सीधे तौर पर सवालों के घेरे में है. जनता का आरोप है कि दूध में पानी मिलाया जा रहा है, स्थानीय और अवैध रूप से बने पनीर को शुद्ध बताकर बेचा जा रहा है, और मिठाइयों से लेकर अन्य खाद्य पदार्थों तक में गुणवत्ता से खिलवाड़ हो रहा है. सवाल उठता है कि क्या रीवा का 'सिस्टम' पूरी तरह से सोया हुआ है, या फिर यह मिलावटखोरों के साथ मिला हुआ है?
निष्क्रियता का 'सिस्टम' और 'सेटिंग' के आरोप
शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि खाद्य अधिकारी अमरीश दुबे को अवैध गैस सिलेंडरों के बारे में कई बार जानकारी दी गई है। शहर के छोटे-बड़े भोजनालयों, ठेलों और चाय की दुकानों पर सुरक्षा मानकों को ताक पर रखकर धड़ल्ले से इन सिलेंडरों का इस्तेमाल हो रहा है, जो कभी भी बड़े हादसे का कारण बन सकता है। लेकिन, आरोप है कि विभाग के अधिकारी सिर्फ उन जगहों पर 'दौरा' करते हैं जहाँ उन्हें 'मोटा पैसा' मिलने की संभावना होती है। आम आदमी की सुरक्षा से जुड़े छोटे मामलों या जहाँ 'कमाई' नहीं होती, वहाँ पर पूरी तरह से आँखें मूँद ली जाती हैं।
लोगों का सीधा सवाल है कि क्या प्रशासन और खाद्य विभाग के अधिकारी जानबूझकर इन अनियमितताओं को नजरअंदाज कर रहे हैं? क्या यह निष्क्रियता किसी 'सेट सिस्टम' का हिस्सा है, जहाँ शिकायतें सिर्फ कागजों पर दर्ज होकर दम तोड़ देती हैं?
जन आक्रोश और तत्काल कार्रवाई की मांग
शहर के लोग हैरान हैं कि जब वे जिम्मेदार अधिकारियों को सीधे तौर पर शिकायत कर रहे हैं, तो भी कोई सुनवाई क्यों नहीं हो रही। यह स्थिति सरकारी तंत्र की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करती है। जनता पूछ रही है कि अगर अधिकारी अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं और जान जोखिम में डालने वाले इन अवैध कामों पर लगाम नहीं लगा रहे, तो वे किस बात का वेतन ले रहे हैं?
अब रीवा की जनता की मांग है कि ऐसे निष्क्रिय और गैर-जिम्मेदार अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाए और इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय निष्पक्ष जाँच कराई जाए। यह सिर्फ एक विभाग का मामला नहीं, बल्कि पूरे प्रशासन की विश्वसनीयता का सवाल है। क्या रीवा का प्रशासन गहरी नींद में है, या फिर जानबूझकर इन गंभीर अनियमितताओं को अनदेखा कर रहा है? यह देखना बाकी है कि इस जन आक्रोश के बाद क्या कोई ठोस कदम उठाया जाता है।
हर कोने में मिलावट, विभाग बेखबर!
शहर के हर छोटे-बड़े बाज़ार से लेकर दुकानों तक, मिलावट की खबरें आम हो चुकी हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि:
दूध में पानी: सुबह-शाम घरों में आने वाले दूध से लेकर डेयरी उत्पादों तक में पानी की मिलावट खुलेआम चल रही है. इससे न सिर्फ उपभोक्ताओं को आर्थिक नुकसान हो रहा है, बल्कि उनके स्वास्थ्य के साथ भी खिलवाड़ किया जा रहा है.
नकली या घटिया पनीर: स्थानीय स्तर पर बन रहे या बाहर से आ रहे घटिया गुणवत्ता वाले पनीर को धड़ल्ले से बेचा जा रहा है. इसकी शुद्धता और स्वास्थ्य मानकों पर कोई जाँच नहीं हो रही है.
मिठाइयों और अन्य खाद्य पदार्थों में भी कमी: त्यौहारों पर बनने वाली मिठाइयों से लेकर रोज़मर्रा के खाने-पीने की चीज़ों में भी गुणवत्ता नियंत्रण नहीं दिख रहा है.
खाद्य विभाग पर उठते गंभीर सवाल
यह स्थिति खाद्य विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करती है. आखिर विभाग कर क्या रहा है? क्या अधिकारियों को इन शिकायतों की जानकारी नहीं है, या जानबूझकर आँखें मूँदी जा रही हैं? जनता के मन में यह आशंका घर कर गई है कि कहीं विभाग के लोग मिलावटखोरों से साठगाँठ करके तो नहीं बैठे हैं. स्थानीय निवासियों का कहना है कि खाद्य सुरक्षा मानकों की नियमित जाँच क्यों नहीं की जाती? मिलावटखोरों पर कड़ी कार्रवाई क्यों नहीं होती? क्या विभाग सिर्फ बड़े मामलों में ही सक्रिय होता है, या फिर छोटे मामलों में उसे 'लाभ' नहीं दिखता?
तत्काल कार्रवाई और उच्च स्तरीय जाँच की मांग
रीवा की जनता अब इस पूरे मामले में तत्काल और कठोर कार्रवाई की मांग कर रही है. यह सिर्फ खाद्य सुरक्षा का मामला नहीं, बल्कि सीधे तौर पर लोगों के स्वास्थ्य और जीवन से जुड़ा मुद्दा है. प्रशासन को चाहिए कि वह खाद्य विभाग को सक्रिय करे, अनियमितताओं की उच्च स्तरीय जाँच कराए, और दोषी अधिकारियों व मिलावटखोरों के खिलाफ सख्त से सख्त कानूनी कार्रवाई करे.
क्या प्रशासन इस गंभीर मुद्दे पर जागेगा और जनता को शुद्ध व सुरक्षित भोजन उपलब्ध कराएगा?