सरकारी गोदाम खाली, बाज़ार में 'ब्लैक' खाद! रीवा के किसान संकट पर AAP का हल्ला बोल, क्या जागेगा प्रशासन?

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा जिले में खेती-किसानी से जुड़े संकट लगातार गहराते जा रहे हैं, जिससे अन्नदाता हताश और परेशान हैं। किसानों को कई मोर्चों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें खाद की भारी कमी, इसकी कालाबाजारी और आवारा पशुओं का बढ़ता आतंक प्रमुख हैं। इन गंभीर मुद्दों ने किसानों की मुश्किलें कई गुना बढ़ा दी हैं, जिससे उनकी आजीविका पर सीधा खतरा मंडरा रहा है। यह स्थिति न केवल किसानों के लिए चिंताजनक है, बल्कि यह खाद्यान्न सुरक्षा के लिए भी एक बड़ी चुनौती पेश करती है। इन समस्याओं को लेकर अब राजनीतिक स्तर पर भी पहल शुरू हो गई है, ताकि किसानों को राहत मिल सके।
आम आदमी पार्टी की पहल: कलेक्टर को ज्ञापन
किसानों की इन गंभीर समस्याओं को उजागर करने और प्रशासन का ध्यान खींचने के लिए, आम आदमी पार्टी (AAP) की रीवा जिला इकाई ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। 3 अगस्त 2025 को, पार्टी के जिला अध्यक्ष राजीव सिंह शेरा और किसान मोर्चा अध्यक्ष राणा सिंह तिवारी के नेतृत्व में एक विस्तृत ज्ञापन जिला कलेक्टर को सौंपा गया। इस ज्ञापन में किसानों की प्रमुख समस्याओं को विस्तार से उजागर किया गया और प्रशासन से इन मुद्दों पर त्वरित और ठोस समाधान की मांग की गई। यह ज्ञापन किसानों की आवाज को प्रशासन तक पहुंचाने का एक प्रयास था, ताकि उनकी पीड़ा को समझा जा सके और उस पर कार्रवाई की जा सके।
खाद की कमी और कालाबाजारी: किसानों की सबसे बड़ी पीड़ा
ज्ञापन के अनुसार, रीवा जिले में किसानों की सबसे बड़ी पीड़ा खाद की भारी कमी और उसकी बेरोकटोक कालाबाजारी है। सरकारी गोदामों में डीएपी और यूरिया खाद पूरी तरह से गायब हो चुकी है, जिसके कारण किसान अपनी जरूरत की खाद के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हैं। इस संकट का फायदा निजी व्यापारी उठा रहे हैं, जिन्होंने खाद की कीमतें मनमाने ढंग से बढ़ा दी हैं। डीएपी खाद, जिसका सरकारी निर्धारित मूल्य ₹1350 प्रति बोरी है, उसे खुलेआम बाज़ार में ₹1700 से ₹1800 तक की ऊंची कीमत पर ब्लैक में बेचा जा रहा है।
यह सिर्फ कीमतों का खेल नहीं है, बल्कि किसानों को और भी लूटा जा रहा है। जहाँ कहीं थोड़ी-बहुत खाद उपलब्ध भी है, वहाँ किसानों को ₹500 से ₹1000 तक का जिंक जबरन खरीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जबकि उन्हें इसकी तत्काल आवश्यकता नहीं होती। यह एक तरह की बंधुआ खरीद है, जो किसानों के पहले से ही कमजोर आर्थिक स्थिति पर और बोझ डाल रही है। खाद माफियाओं का यह संगठित जाल किसानों के हितों के खिलाफ काम कर रहा है और प्रशासन की नाक के नीचे यह गोरखधंधा फल-फूल रहा है। यह स्थिति किसानों को अपनी फसल बोने से रोक रही है, जिससे आने वाले समय में खाद्यान्न उत्पादन पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है।
आवारा पशुओं का आतंक: फसलों का विनाश
खाद की समस्या के साथ-साथ, रीवा जिले के किसान आवारा पशुओं के आतंक से भी बुरी तरह परेशान हैं। सड़कों पर घूमने वाली आवारा गाय और बैल अब खेतों में घुसकर किसानों की खड़ी फसलों को बड़े पैमाने पर बर्बाद कर रहे हैं। ये पशु झुंड में आते हैं और रातों-रात किसानों की महीनों की मेहनत पर पानी फेर देते हैं। इस समस्या के कारण किसान अपनी फसलों को बचाने के लिए रात भर खेतों में जागने को मजबूर हैं, जिससे उनकी नींद और स्वास्थ्य दोनों प्रभावित हो रहे हैं। दिन में खेती का काम और रात में फसलों की रखवाली, यह किसानों के लिए एक दोहरा बोझ बन गया है। इन परेशानियों के बावजूद, किसान अपनी समस्याओं को प्रभावी ढंग से प्रशासन तक नहीं पहुंचा पा रहे हैं, और उन्हें कोई ठोस समाधान नहीं मिल रहा है। आवारा पशुओं से फसल सुरक्षा अब रीवा के किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है, जो उनकी आर्थिक स्थिति को और कमजोर कर रही है।
आम आदमी पार्टी की प्रमुख मांगें और चेतावनी
किसानों की इन गंभीर समस्याओं को देखते हुए, आम आदमी पार्टी (AAP) ने जिला कलेक्टर को सौंपे गए ज्ञापन में कई प्रमुख मांगें रखी हैं:
- खाद की तत्काल उपलब्धता: AAP ने कलेक्टर से जल्द से जल्द डीएपी और यूरिया खाद की सरकारी गोदामों में पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने की मांग की है, ताकि किसानों को भटकना न पड़े।
- कालाबाजारी पर सख्त कार्रवाई: पार्टी ने ब्लैक में खाद बेचने वाले निजी व्यापारियों के लाइसेंस रद्द करने और उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई करने की मांग की है, ताकि खाद माफियाओं पर लगाम लगाई जा सके।
- जांच समिति का गठन: ज्ञापन में सरकारी गोदामों के खाली होने की गहन जांच के लिए एक उच्च-स्तरीय टीम गठित करने की भी मांग की गई है। साथ ही, खाद खरीदने वालों की वैधता की जांच करने की भी बात कही गई है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि खाद सही किसानों तक पहुंचे।
आवारा पशुओं का समाधान: आवारा पशुओं की समस्या के स्थायी समाधान के लिए भी कदम उठाने की मांग की गई है, ताकि किसानों की फसलें सुरक्षित रह सकें।
आम आदमी पार्टी ने प्रशासन को स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि इन मांगों पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता है, तो पार्टी किसानों के साथ मिलकर रीवा में बड़ा धरना प्रदर्शन और आंदोलन करेगी। यह चेतावनी दर्शाती है कि AAP इस मुद्दे को लेकर गंभीर है और किसानों के हक के लिए संघर्ष करने को तैयार है।
रीवा में कृषि संकट के व्यापक निहितार्थ
रीवा जिले में चल रहा यह कृषि संकट केवल किसानों की व्यक्तिगत समस्या नहीं है, बल्कि इसके व्यापक सामाजिक और आर्थिक निहितार्थ हैं। खाद की कमी और फसल नुकसान से किसानों की आय में भारी गिरावट आएगी, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ेगा। यह स्थिति किसानों को कर्ज के जाल में धकेल सकती है, जिससे आत्महत्या जैसे गंभीर कदम उठाने का जोखिम बढ़ जाता है। इसके अलावा, खाद्यान्न उत्पादन में कमी आने से खाद्यान्न सुरक्षा पर भी खतरा मंडरा सकता है, जो अंततः उपभोक्ताओं को भी प्रभावित करेगा। यह संकट दर्शाता है कि कृषि क्षेत्र में तत्काल हस्तक्षेप और दीर्घकालिक नीतियों की आवश्यकता है ताकि किसानों को सशक्त बनाया जा सके और खाद्यान्न उत्पादन को सुनिश्चित किया जा सके।
प्रशासन की भूमिका: क्या होगा समाधान?
इस गंभीर स्थिति में प्रशासन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। जिला कलेक्टर को सौंपे गए ज्ञापन और आम आदमी पार्टी की चेतावनी के बाद, प्रशासन पर इन समस्याओं का समाधान करने का दबाव बढ़ गया है। प्रशासन को न केवल खाद की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी, बल्कि कालाबाजारी करने वालों पर भी सख्त कार्रवाई करनी होगी। आवारा पशुओं की समस्या के लिए भी गौशालाओं का निर्माण या अन्य प्रभावी उपाय करने होंगे। यह देखना होगा कि प्रशासन इन मांगों पर कितनी गंभीरता से विचार करता है और क्या वह किसानों को राहत देने के लिए ठोस और त्वरित कदम उठाता है। किसानों की इस वर्तमान स्थिति पर ध्यान देना न केवल उनके हित के लिए, बल्कि खाद्यान्न सुरक्षा के लिए भी आवश्यक है।
किसानों की हताशा: क्या सरकार सुनेगी?
रीवा के किसानों की हताशा अब चरम पर है। उन्हें लग रहा है कि उनकी आवाज सुनी नहीं जा रही है और उनकी समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। खाद के लिए लंबी लाइनें, कालाबाजारी का शिकार होना, और रात भर खेतों में जागकर फसलों को आवारा पशुओं से बचाना - ये सब उनकी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन गया है। ऐसे में, आम आदमी पार्टी का यह कदम किसानों के लिए एक उम्मीद की किरण बन सकता है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन किसानों की इस गंभीर पीड़ा को सुनेंगे और उनके लिए कोई स्थायी समाधान निकालेंगे? किसानों की अनदेखी करना न केवल उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ है, बल्कि यह देश की खाद्य सुरक्षा को भी खतरे में डालता है।
खाद्यान्न सुरक्षा पर खतरा: एक राष्ट्रीय चिंता
रीवा जैसे कृषि प्रधान जिले में किसानों का संकट केवल स्थानीय मुद्दा नहीं है, बल्कि यह खाद्यान्न सुरक्षा पर भी सीधा खतरा है। यदि किसान समय पर खाद नहीं प्राप्त कर पाते हैं और उनकी फसलें आवारा पशुओं द्वारा बर्बाद होती रहती हैं, तो इससे कृषि उत्पादन में भारी गिरावट आएगी। यह सीधे तौर पर देश की खाद्य आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित करेगा और अंततः उपभोक्ताओं को भी महंगी कीमतों या कमी का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए, रीवा के किसानों की समस्याओं का समाधान करना न केवल उनके हित में है, बल्कि यह राष्ट्रीय खाद्यान्न सुरक्षा के लिए भी अत्यंत आवश्यक है। सरकार को इस मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि किसानों को उनकी उपज के लिए सही संसाधन और सुरक्षा मिले।
आगे की राह: क्या आंदोलन ही एकमात्र विकल्प है?
आम आदमी पार्टी ने प्रशासन को चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगें नहीं मानी जाती हैं, तो वे किसानों के साथ मिलकर बड़ा आंदोलन करेंगे। यह दर्शाता है कि किसानों के पास अब विरोध प्रदर्शन का ही विकल्प बचा है। हालांकि, आंदोलन अक्सर किसानों के लिए अतिरिक्त वित्तीय और शारीरिक बोझ लेकर आते हैं। ऐसे में, यह प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वह आंदोलन की नौबत आने से पहले ही किसानों की समस्याओं का समाधान करे। क्या आंदोलन ही एकमात्र विकल्प है या प्रशासन बातचीत और ठोस कार्रवाई के माध्यम से इस संकट को टाल सकता है, यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा। किसानों को न्याय मिले और उन्हें अपनी मेहनत का फल मिले, यही सबकी उम्मीद है।