"खाकी की गुंडागर्दी पर हाईकोर्ट का हथौड़ा: रीवा के थानेदार ने जबरन बंद कराई थी CM हेल्पलाइन, अब DGP से मांगा जवाब!"

 
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जबलपुर हाईकोर्ट ने रीवा के सगरा थाना प्रभारी द्वारा पद के दुरुपयोग और पीड़ित परिवार को प्रताड़ित करने पर सख्त रुख अपनाते हुए सीसीटीवी फुटेज तलब किए हैं।

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) मध्य प्रदेश के रीवा जिले में पुलिस की कार्यप्रणाली एक बार फिर सवालों के घेरे में है। जबलपुर हाईकोर्ट ने रीवा के सगरा थाना प्रभारी के खिलाफ दायर एक याचिका पर कड़ा संज्ञान लेते हुए प्रदेश के शीर्ष पुलिस अधिकारियों को नोटिस जारी किया है। यह मामला न केवल पुलिस की संवेदनहीनता को दर्शाता है, बल्कि इस बात का भी खुलासा करता है कि कैसे सरकारी तंत्र (सीएम हेल्पलाइन) का दुरुपयोग कर आम जनता की आवाज को दबाने की कोशिश की जाती है।

जमीन विवाद और पुलिस की संदिग्ध भूमिका
मामले की शुरुआत सिरमौर तहसील के ग्राम मझियारी से हुई। पीड़ित राजेश शुक्ला का अपने सगे चाचा के साथ पैतृक जमीन को लेकर विवाद चल रहा था। मामला राजस्व न्यायालय (कमिश्नर कोर्ट) में विचाराधीन था, जहाँ कोर्ट ने स्पष्ट आदेश दिया था कि विवादित भूमि पर 'यथास्थिति' (Status Quo) बनाए रखी जाए।

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राजेश का आरोप है कि उन्होंने उस खेत में धान की बुवाई की थी। लेकिन कोर्ट के स्टे आर्डर की धज्जियां उड़ाते हुए सगरा पुलिस ने उनके चाचा का पक्ष लिया। पुलिस की मौजूदगी में राजेश की फसल काट ली गई। जब पीड़ित ने विरोध किया, तो पुलिस ने न्याय करने के बजाय राजेश के खिलाफ ही एकतरफा कार्रवाई शुरू कर दी।

सीएम हेल्पलाइन की शिकायत और पुलिस का खौफ
पुलिस की इस मनमानी से तंग आकर राजेश शुक्ला ने मुख्यमंत्री हेल्पलाइन (181) पर शिकायत दर्ज कराई। नियम के अनुसार, पुलिस को इस शिकायत का संतुष्टिपूर्ण निराकरण करना था। लेकिन आरोप है कि सगरा थाना प्रभारी ने राजेश पर शिकायत वापस लेने का मानसिक दबाव बनाया।

जब पीड़ित परिवार पुलिस के दबाव में नहीं झुका, तो खाकी का खौफनाक चेहरा सामने आया। आरोप है कि पुलिस राजेश, उनकी पत्नी और उनके बेटे को जबरन घर से उठाकर थाने ले आई। थाने के भीतर उनसे उनके मोबाइल फोन छीन लिए गए और पुलिसकर्मियों ने खुद ही ओटीपी का उपयोग कर सीएम हेल्पलाइन की शिकायत को 'संतुष्ट' दिखाकर बंद कर दिया।

हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी और सीसीटीवी फुटेज की मांग
पीड़ित परिवार ने इस अन्याय के खिलाफ जबलपुर हाईकोर्ट की शरण ली। अधिवक्ता के माध्यम से दायर याचिका में मांग की गई कि दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाए और उन्हें तत्काल निलंबित किया जाए।

  • माननीय उच्च न्यायालय ने इस मामले को अत्यंत गंभीर माना। कोर्ट ने कहा कि अगर थाने के भीतर नागरिक सुरक्षित नहीं हैं और पुलिस खुद शिकायतें बंद कर रही है, तो यह लोकतंत्र के लिए खतरा है। कोर्ट ने निम्नलिखित आदेश जारी किए:
  • डीजीपी (DGP), आईजी (IG) रीवा और एसपी (SP) को जवाब पेश करने का आदेश।
  • सगरा थाने के सीसीटीवी फुटेज: कोर्ट ने 24 से 26 अक्टूबर 2025 और 13 से 15 नवंबर 2025 की पूरी रिकॉर्डिंग तलब की है।

पुलिस महकमे में हड़कंप और भविष्य की कार्रवाई (Impact on MP Police)
हाईकोर्ट के इस कदम से रीवा पुलिस विभाग में खलबली मची हुई है। सीसीटीवी फुटेज से यह साफ हो जाएगा कि क्या वास्तव में पीड़ित परिवार को थाने में अवैध रूप से रखा गया था और क्या उनके मोबाइल का दुरुपयोग किया गया था। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सीसीटीवी फुटेज गायब मिलते हैं या उनमें छेड़छाड़ पाई जाती है, तो संबंधित अधिकारियों पर जेल जाने तक की नौबत आ सकती है।

आम आदमी के लिए सबक: जब पुलिस करे प्रताड़ित
यह मामला हमें सिखाता है कि अगर पुलिस कानून का पालन नहीं करती है, तो न्यायपालिका अब भी आम आदमी का सबसे बड़ा सहारा है। सीएम हेल्पलाइन की शिकायत को जबरन बंद करना एक अपराध है। यदि आपके साथ ऐसा होता है, तो आप:

  • वरिष्ठ अधिकारियों (SP/IG) को लिखित शिकायत भेजें।
  • कोर्ट में धारा 156(3) के तहत परिवाद दायर कर सकते हैं।
  • हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर कर सुरक्षा और न्याय की मांग कर सकते हैं।

FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
Q1. रीवा के सगरा थाने का मामला क्या है? यह मामला एक जमीन विवाद में पुलिस द्वारा पक्षपात करने और पीड़ित की सीएम हेल्पलाइन शिकायत को जबरन थाने ले जाकर बंद कराने से जुड़ा है।
Q2. हाईकोर्ट ने किन अधिकारियों से जवाब मांगा है? हाईकोर्ट ने मध्य प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (DGP), आईजी रीवा और एसपी रीवा से स्पष्टीकरण मांगा है।
Q3. कोर्ट ने सीसीटीवी फुटेज क्यों मांगे हैं? यह पुष्टि करने के लिए कि क्या पुलिस ने राजेश शुक्ला और उनके परिवार को अवैध रूप से हिरासत में रखा था और क्या शिकायत बंद करने के लिए मोबाइल का गलत इस्तेमाल किया गया।
Q4. क्या पुलिस सीएम हेल्पलाइन की शिकायत खुद बंद कर सकती है? नहीं, नियमानुसार शिकायतकर्ता की संतुष्टि और उसके द्वारा दिए गए फीडबैक के बिना शिकायत बंद नहीं की जा सकती। ऐसा करना दंडनीय अपराध है।

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