रीवा में ग्राहक से 'महा-फ्रॉड': जिस ट्रैक्टर को समझा था नया, वो निकला पुराना 'सेकेंड हैंड', कोर्ट के आदेश से मचा हड़कंप!

ऋतुराज द्विवेदी, रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा में रिंग रोड पर स्थित आलोक ट्रैक्टर एजेंसी के संचालक आलोक सिंह, जो राघवेंद्र सिंह के पुत्र हैं, पर ग्राहकों के साथ धोखाधड़ी करने का एक गंभीर मामला सामने आया है। यह पूरा मामला करीब तीन साल पुराना है, जब ढेकहा निवासी धर्मेंद्र पांडेय ने आलोक ट्रैक्टर एजेंसी से एक नया ट्रैक्टर खरीदने के लिए संपर्क किया। उन्होंने ट्रैक्टर की पूरी कीमत चुकाई और वाहन अपने घर ले गए।
लेकिन, जैसे-जैसे समय बीतता गया, धर्मेंद्र पांडेय को ट्रैक्टर के जरूरी दस्तावेज, जैसे रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (RC) और अन्य कागजात नहीं मिल पा रहे थे। वह लगातार एजेंसी संचालक आलोक सिंह से दस्तावेजों की मांग करते रहे, लेकिन हर बार उन्हें टाल दिया गया। संचालक ने बहाने बनाते हुए दस्तावेजों को देने में आनाकानी की। पीड़ित ग्राहक को यह बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि उसके साथ एक बड़ा धोखाधड़ी का खेल खेला जा रहा है।
परिवहन कार्यालय में कैसे खुली पोल? ग्राहक को कैसे पता चला धोखा हुआ है?
जब महीनों तक दस्तावेज नहीं मिले और धर्मेंद्र पांडेय को यह महसूस होने लगा कि कुछ गड़बड़ है, तो उन्होंने खुद इस मामले की तह तक जाने का फैसला किया। वह अपने खरीदे हुए ट्रैक्टर को लेकर परिवहन कार्यालय पहुंचे। वहां उन्होंने वाहन के इंजन और चेसिस नंबर की जांच करवाई। जैसे ही कंप्यूटर पर इन नंबरों की जानकारी डाली गई, सच्चाई सामने आ गई और पीड़ित के पैरों तले जमीन खिसक गई।
रिकॉर्ड में यह सामने आया कि जिस ट्रैक्टर को धर्मेंद्र पांडेय को नया बताकर बेचा गया था, वह दरअसल 8 महीने पहले ही किसी और व्यक्ति, उमाशंकर पांडे, के नाम पर बेचा जा चुका था। इस खुलासे से यह साफ हो गया कि एजेंसी संचालक आलोक सिंह ने एक पुराने और पहले से बिक चुके ट्रैक्टर को नया बताकर धर्मेंद्र पांडेय को बेच दिया था। इस तरह, उन्होंने न सिर्फ ग्राहक के साथ पैसों की ठगी की, बल्कि एक इस्तेमाल किए हुए वाहन को नए की कीमत पर बेचकर बड़ा फ्रॉड किया।
कानूनी लड़ाई और न्यायालय का हस्तक्षेप: पीड़ित को न्याय कैसे मिला?
धोखाधड़ी का यह मामला सामने आने के बाद पीड़ित धर्मेंद्र पांडेय ने तुरंत सिटी कोतवाली थाने और पुलिस कप्तान के पास लिखित शिकायत दर्ज कराई। उन्होंने उम्मीद की थी कि पुलिस इस मामले में तुरंत कार्रवाई करेगी, लेकिन उनकी शिकायत पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। जब पुलिस से न्याय नहीं मिला, तो धर्मेंद्र पांडेय ने हार नहीं मानी और न्याय के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
करीब तीन साल तक यह कानूनी लड़ाई चली। इस दौरान, पीड़ित के अधिवक्ता आनंदमूर्ति ने न्यायालय में सभी जरूरी सबूत और तथ्य प्रस्तुत किए। उन्होंने यह साबित किया कि कैसे आलोक सिंह ने जानबूझकर ग्राहक को धोखा दिया और एक पुराने वाहन को नए दाम पर बेचा। इन सभी सबूतों और दलीलों को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने पुलिस की निष्क्रियता पर भी संज्ञान लिया।
न्यायालय का सख्त आदेश: पुलिस को क्यों दिया गया FIR का निर्देश?
लंबे समय तक चली सुनवाई के बाद, न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी ने इस मामले में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। उन्होंने सिटी कोतवाली थाना प्रभारी को तुरंत आरोपी आलोक सिंह के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला (FIR) दर्ज करने का आदेश दिया। न्यायालय ने अपने आदेश में यह भी कहा कि इस कार्रवाई की जानकारी 7 अक्टूबर से पहले न्यायालय में प्रस्तुत की जाए।
यह आदेश न सिर्फ धर्मेंद्र पांडेय के लिए न्याय की जीत है, बल्कि यह उन सभी ग्राहकों के लिए एक संदेश है जो अक्सर इस तरह की धोखाधड़ी का शिकार होते हैं। न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया कि किसी भी नागरिक के साथ हुई धोखाधड़ी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता और पुलिस को ऐसे मामलों में तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए। यह फैसला यह भी दर्शाता है कि यदि पुलिस प्रशासन कार्रवाई करने में विफल रहता है, तो न्यायालय नागरिकों को न्याय दिलाने के लिए हमेशा तत्पर है।
ग्राहकों के लिए सबक: धोखाधड़ी से बचने के लिए क्या करें?
यह घटना हम सभी के लिए एक महत्वपूर्ण सबक है। जब भी आप कोई नया वाहन खरीदते हैं, तो कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है ताकि आप इस तरह की धोखाधड़ी से बच सकें:
दस्तावेजों की तुरंत जांच: वाहन खरीदने के तुरंत बाद उसके सभी दस्तावेज, विशेष रूप से रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (RC) और बीमा पत्र, की जांच करें। सुनिश्चित करें कि ये आपके नाम पर हों।
इंजन और चेसिस नंबर की पुष्टि: वाहन के इंजन और चेसिस नंबर को दस्तावेजों से मिलान करें। आप चाहें तो परिवहन विभाग की वेबसाइट या कार्यालय में जाकर इन नंबरों की प्रामाणिकता की जांच कर सकते हैं।
विश्वसनीय डीलर से खरीदें: हमेशा किसी विश्वसनीय और अधिकृत डीलर या एजेंसी से ही खरीदारी करें।
शिकायत दर्ज करने में देरी न करें: अगर आपको कोई भी गड़बड़ी नजर आती है, तो बिना देरी किए पुलिस और संबंधित उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज करें।
यह मामला दिखाता है कि सतर्कता और सही समय पर कानूनी कदम उठाने से धोखाधड़ी करने वालों को सबक सिखाया जा सकता है।