रीवा और मैहर के बीच 'अभिमत' की लड़ाई: क्या गांवों के विलय से मुकुंदपुर टाइगर सफारी रीवा की हो जाएगी?

 
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मैहर जिले के 6 गांवों को रीवा में मिलाने की प्रक्रिया शुरू, व्हाइट टाइगर सफारी भी रीवा में जाएगी, जनप्रतिनिधियों और आम जनता ने जताया कड़ा विरोध। 

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) मध्यप्रदेश प्रशासनिक इकाई पुनर्गठन आयोग ने एक प्रस्ताव पर काम शुरू कर दिया है, जिसके तहत अमरपाटन तहसील के छह गांवों को मैहर जिले से हटाकर रीवा जिले में शामिल किया जाएगा। इन गांवों में आनंदगढ़, आमिन, धोबहट, मुकुंदपुर, परसिया और पपरा शामिल हैं। यह खबर सामने आते ही मैहर और सतना जिले में भारी विरोध शुरू हो गया है। इस विलय का मुख्य कारण इन गांवों के साथ मुकुंदपुर व्हाइट टाइगर सफारी का भी रीवा जिले में चले जाना है, जो मैहर जिले की एक बड़ी पहचान है। यह मामला सिर्फ प्रशासनिक पुनर्गठन का नहीं, बल्कि क्षेत्रीय पहचान और राजनीतिक वर्चस्व का भी बन गया है। मैहर जिले के कौन से गांव रीवा में मिल रहे हैं यह सवाल अब आम जनता के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है।

कैसे शुरू हुई मैहर के 6 गांवों को रीवा में मिलाने की प्रक्रिया? 
इस पूरी प्रक्रिया की शुरुआत एक पत्र से हुई, जो विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी, मुख्यमंत्री कार्यालय से मध्यप्रदेश प्रशासनिक इकाई पुनर्गठन आयोग को भेजा गया था। इस पत्र में ग्राम पंचायत आनंदगढ़, आमिन, धोबहट, मुकुंदपुर, परसिया एवं पपरा के सरपंचों द्वारा दिए गए एक कथित आवेदन का जिक्र था। इस आवेदन में इन गांवों को मैहर जिले से अलग करके रीवा में शामिल करने की मांग की गई थी। इस पत्र को आधार बनाते हुए आयोग के सचिव अक्षय कुमार सिंह ने रीवा और मैहर के कलेक्टरों को प्रस्ताव पर अपनी राय (अभिमत) प्रस्तुत करने को कहा है। प्रशासनिक इकाई पुनर्गठन आयोग क्या करता है यह समझना महत्वपूर्ण है। यह आयोग सरकार को प्रशासनिक सीमाओं में बदलाव के संबंध में सलाह देता है।

क्यों संदिग्ध लग रहा है आयोग को भेजा गया पत्र? 
इस पूरे मामले में सबसे चौंकाने वाला तथ्य यह है कि आयोग को भेजा गया पत्र संदिग्ध प्रतीत हो रहा है। मुकुंदपुर ग्राम पंचायत के सरपंच के हस्ताक्षर और सील को जब ग्राम सभा के प्रस्ताव में किए गए हस्ताक्षर और सील से मिलाया गया, तो दोनों में काफी अंतर पाया गया। जिस पत्र के आधार पर यह प्रक्रिया शुरू हुई, उसमें विकास पुरुष से आग्रह किया गया है कि इन गांवों और व्हाइट टाइगर सफारी को रीवा जिले में मिला दिया जाए। वहीं दूसरी ओर, मुकुंदपुर ग्राम पंचायत की ग्राम सभा ने 15 अप्रैल 2025 को एक प्रस्ताव पास किया था, जिसमें स्पष्ट रूप से मुकुंदपुर को मैहर जिले में ही रखने की बात कही गई थी। इस विरोधाभास ने पूरे मामले को एक राजनीतिक साजिश का रंग दे दिया है। लोग अब सवाल उठा रहे हैं कि कैसे एक ग्राम सभा का प्रस्ताव संदिग्ध हो सकता है।

विवाद का असली कारण: मुकुंदपुर व्हाइट टाइगर सफारी 
मैहर के गांवों के विलय का मामला भले ही 6 पंचायतों से जुड़ा हो, लेकिन इस पूरे विवाद के केंद्र में मुकुंदपुर व्हाइट टाइगर सफारी है। यह दुनिया की पहली व्हाइट टाइगर सफारी है और मैहर जिले की एक बड़ी पहचान है। यह सफारी रीवा जिला मुख्यालय से काफी नजदीक है, यही कारण है कि इसे रीवा में शामिल करने का प्रयास किया जा रहा है। जानकारों का मानना है कि अगर सिर्फ मुकुंदपुर को रीवा में शामिल करने का प्रस्ताव आता तो उसका विरोध आसान हो जाता। इसलिए अन्य गांवों को भी साथ में शामिल करने का प्रस्ताव लाया गया, क्योंकि ये सभी पंचायतें सफारी से सटी हुई हैं। मुकुंदपुर व्हाइट टाइगर सफारी किसकी है यह सवाल अब मैहर और रीवा के बीच एक बड़ा मुद्दा बन गया है।

जनप्रतिनिधियों और जनता का कड़ा विरोध 
जैसे ही यह खबर सामने आई, मैहर और सतना के जनप्रतिनिधि और आम जनता सड़कों पर उतर आए। सांसद गणेश सिंह ने 'एक्स' पर इस प्रस्ताव को निरस्त करने की मांग की। उन्होंने लिखा कि यह क्षेत्रवासियों की भावनाओं को आहत करता है और उनके हितों के खिलाफ है। अमरपाटन के विधायक राजेंद्र कुमार सिंह ने इस कदम को रीवा के वरिष्ठ भाजपा नेता और उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला का प्रयास बताया और जनता से इसके विरोध में जेल भरो आंदोलन करने की अपील की। मैहर के पूर्व विधायक नारायण त्रिपाठी ने इसे मैहर जिले की पहचान खत्म करने की साजिश करार दिया है। वहीं, पूर्व मंत्री रामखेलावन पटेल ने भी इन गांवों को मैहर जिले में ही रखने का संकल्प लिया है। मैहर के जनप्रतिनिधियों की क्या मांग है यह उनके बयानों से साफ हो जाता है।

क्या यह मैहर की पहचान खत्म करने की साजिश है? 
मैहर के पूर्व विधायक नारायण त्रिपाठी ने आरोप लगाया है कि यह कदम मैहर जिले की पहचान खत्म करने की साजिश है। उन्होंने कहा कि मुकुंदपुर व्हाइट टाइगर सफारी मैहर जिले की पहचान है और इसे छीनने का प्रयास किया जा रहा है। जनता का भी मानना है कि रीवा के एक प्रभावशाली नेता अपने राजनीतिक लाभ के लिए मैहर की पहचान को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर लोग लगातार सवाल उठा रहे हैं कि रीवा से नजदीक होने के बावजूद अन्य पंचायतों को क्यों नहीं शामिल किया जा रहा, सिर्फ सफारी से लगी पंचायतों को ही क्यों चुना जा रहा है। रीवा में गांव शामिल करने का विरोध क्यों हो रहा है यह इस क्षेत्रीय पहचान के मुद्दे को दिखाता है।

पहले भी हुआ था मुकुंदपुर सफारी को लेकर विवाद 
यह पहली बार नहीं है जब मुकुंदपुर सफारी को लेकर विवाद हुआ हो। जब इसका लोकार्पण हुआ था, तब मुख्यमंत्री के सोशल मीडिया हैंडल पर इसे गलती से रीवा जिले में बताया गया था। उस समय सतना जिले में जनविरोध के बाद तत्कालीन कलेक्टर ने मुख्यमंत्री कार्यालय को इसकी सूचना दी और इसमें सुधार कर रीवा की जगह सतना जिला किया गया। लेकिन उसके बाद भी कई बार सरकारी प्रेस नोट में मुकुंदपुर सफारी को रीवा जिले में बताया गया। व्हाइट टाइगर सफारी को लेकर पहले क्या विवाद था यह दर्शाता है कि यह विवाद पुराना है और अब इसे आधिकारिक रूप देने की कोशिश की जा रही है।

आगे क्या हो सकता है? 
अब सबकी नजरें मैहर और रीवा के कलेक्टरों के अभिमत पर टिकी हैं। जानकारों का कहना है कि अगर मैहर कलेक्टर नकारात्मक अभिमत देते हैं और रीवा कलेक्टर सकारात्मक, तो आयोग अपने विवेक से निर्णय ले सकता है। इसके बाद यह मामला और भी ज्यादा राजनीतिक रंग ले सकता है। मैहर और सतना के जनप्रतिनिधियों ने इस मामले में आंदोलन की चेतावनी दी है, जिससे आने वाले दिनों में यह एक बड़ा राजनीतिक और सामाजिक मुद्दा बन सकता है। क्या मैहर जिला खत्म हो जाएगा यह डर मैहर के लोगों के मन में घर कर गया है।

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