Navratri Special Rewa : विंध्य क्षेत्र के रीवा जिले में बेहद चमत्कारी है रानी तालाब में माता बंगलामुखी का यह मंदिर, जानिए क्या है खास
आज हम आपको माँ कालिका के चमत्कारों और रानी तालाब वाली माँ के महत्व के बारे में बताएंगे। रानी तालाब स्थित मां कालिका देवी के मंदिर में एक फिर बार चैत्र नवरात्रि के अवसर पर आस्था, विश्वास, आराधना और भक्ति का सैलाब उमड़ा है। इस 450 वर्ष पुराने माता कलिका देवी मंदिर में नौ दिनों तक सिद्धि के लिए आराधना होगी। मान्यता है कि ज्योतिष गणना पर आधारित इस सिद्धिपीठ में नवरात्र की आराधना से लोगों को सिद्धि प्राप्त होती है।
नही उठाई जा सकी थी मूर्ति
मां कालिका की स्थापना को लेकर बताया जाता है कि तकरीबन 450 वर्ष पूर्व यहां से गुजर रहे व्यापारियों के पास यह देवी मूर्ति थी। घने जंगल और रात्रि विश्राम के समय व्यापारियों ने मां की प्रतिमा को एक इमली के पेड़ पर टीकाकर रात्रि विश्राम किया। दूसरे दिन इसे उठाना चाहा तो मूर्ति नहीं उठी। कई कोशिशो के बाद मूर्ति नहीं उठी तो व्यापारियों ने इस मूर्ति को यही छोड़ आगे बढ़ गए तब से यह मूर्ति यही हैं।
रीवा राज्य ने की थी स्थापना
बताते है कि बघेल साम्राज्य के शासन काल में रीवा रियासत के राजा व्याघ्रदेव सिंह की जानकारी में यह बात सामने आई तो उन्होंने इस स्थान पर एक चबूतरा बनवाकर इस भव्य मूर्ति की स्थापना की और नियमित रूप से यहां पूजा पाठ की शुरूआत हुई। जो सैकड़ो वर्षो से यहां आस्था और भक्ति जारी है।
वर्षाकाल की समाप्ति के बाद शरद ऋतु के आगमन के साथ ही नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। अश्विन मास की प्रतिपदा से नवरात्रि पर्व आरंभ होता है। देवी माता की भक्ति और शक्ति उपासना का यह पर्व पूरे विन्ध्य में श्रद्धा, भक्ति और उल्लास के साथ मनाया जाता है। विन्ध्य में नवरात्रि का सबसे बड़ा मेला मैहर में माँ शारदा के दरबार में लगता है। उसके बाद संभाग के सभी जिलों में कई देवी मंदिरों में माँ शारदा तथा माँ दुर्गा के अलग-अलग अवतारों की पूजा की जाती है।
रीवा शहर के पाड़ेन टोला के पुराने मोहल्ले में प्राचीन रानी तालाब है। इस तालाब के किनारे ही बगलामुखी देवी माता कालिका प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर देवी भक्तों की अनन्य श्रद्धा का केन्द्र है। नवरात्रि पर्व के दौरान सुबह तीन बजे से ही इसमें भक्तों का तांता लगा रहता है। हजारों भक्त नवरात्रि के प्रत्येक दिन पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ माता को जल चढ़ाने के लिए रानी मंदिर आते हैं। इनमें सर्वाधिक संख्या महिलाओं की होती है।
नवरात्रि पर्व में रानी तालाब मंदिर परिसर में मेले का आयोजन किया जाता है। नगर निगम रीवा द्वारा परिसर में साफ-सफाई, पेयजल तथा वाहनों के पार्किंग की व्यवस्था की जाती है। भक्तों की सुविधा और सुरक्षा के लिए सुरक्षा बल तैनात रहते हैं। रानी तालाब का मंदिर जन्मश्रुतियों के अनुसार सैकड़ों वर्ष पुराना है। इस संबंध में किवदंती प्रचलित है कि व्यापारी का एक दल जिसे उस समय लवासना कहा जाता था, रीवा आया हुआ था। उस समय रीवा की आबादी केवल उपरहटी मोहल्ले में किले के आसपास तक ही थी।
व्यापारियों के साथ माता कालिका की प्रतिमा भी थी। व्यापारी जहाँ जाते थे वहाँ बैलगाड़ी से उतारकर प्रतिमा को विराजमान कर देते थे। दो-चार दिन व्यापार करने के बाद कारवाँ आगे चलता था तो माता रानी की प्रतिमा को पूरी श्रद्धा के साथ पुन: बैलगाड़ी में रखकर ले जाते थे। रानी तालाब के किनारे जब कालिका देवी की प्रतिमा को रखा गया और व्यापारी प्रस्थान के समय उन्हें बैलगाड़ी में रखने का प्रयास करने लगे तो प्रतिमा अपने स्थान से हिली भी नहीं।
व्यापारियों ने कई प्रयास किए पर उनके प्रयास सफल नहीं हुए। अंत में यह मानकर कि अब देवी माता रानी तालाब के किनारे ही रहना चाहती हैं। व्यापारियों ने उन्हें वृक्ष के नीचे स्थापित कर दिया। इसी स्थान पर रीवा राजवंश के राजाओं ने मंदिर का निर्माण कराया। इस प्राचीन मंदिर में आज भी माता कालिका की प्रतिमा भक्तों को दर्शन देकर कल्याण कर रही हैं। नवरात्रि में रानी तालाब मंदिर में देवी माता की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।