विंध्य को बड़ी सौगात: सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में पहुंची ₹6 करोड़ की नई कैथलैब, दिल के इलाज में नहीं आएगी बाधा!

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) विंध्य क्षेत्र के लोगों के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं में एक और बड़ा इजाफा हो गया है। अब दिल के मरीजों का इलाज कैथलैब मशीन की कमी के कारण नहीं रुकेगा। करोड़ों रुपये की लागत वाली एक और अत्याधुनिक कैथलैब मशीन सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, रीवा पहुंच गई है, जिसे अस्पताल की पांचवीं मंजिल पर स्थापित किया जाएगा। इस नई मशीन से हृदय रोगियों को बड़ी राहत मिलने की उम्मीद है, खासकर उन गरीब मरीजों को जिन्हें पहले महंगे इलाज के लिए बाहर रेफर करना पड़ता था।
पुरानी कैथलैब का 'दम फूलने' लगा था, डिप्टी सीएम की पहल पर मिली नई मशीन
सुपर स्पेशलिटी अस्पताल विंध्य के हृदय रोगियों के लिए वरदान साबित हुआ है, जहां कार्डियोलॉजी विभाग में मरीजों की लंबी कतारें लगती हैं और आयुष्मान कार्डधारियों का निःशुल्क इलाज हो रहा है। अस्पताल में तीन कार्डियोलॉजिस्ट भी पदस्थ हैं, लेकिन मरीजों की बढ़ती संख्या के मुकाबले केवल एक कैथलैब मशीन थी। यह मशीन काफी पुरानी हो चुकी थी और अपनी क्षमता से कहीं अधिक काम कर चुकी थी, जिसके कारण उसमें बार-बार खराबी आने लगी थी। मशीन की खराबी के कारण दिल के मरीजों का इलाज रुक रहा था और उन्हें बाहर के शहरों में रेफर करना पड़ रहा था।
जब यह बात उपमुख्यमंत्री श्री राजेंद्र शुक्ल तक पहुंची, तो उन्होंने सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के लिए एक और कैथलैब मशीन के आदेश दिए। कुछ ही महीनों में सारी प्रक्रिया पूरी हो गई और बुधवार को यह अत्याधुनिक कैथलैब मशीन अस्पताल पहुंच गई। मशीन को विशेष रूप से क्रेन की मदद से पांचवीं मंजिल तक पहुंचाया गया है, जहां इसके लिए पहले से ही कक्ष तैयार कर लिया गया था। उम्मीद है कि इंस्टॉलेशन की प्रक्रिया के बाद, लगभग एक महीने में इस नई कैथलैब से मरीजों के दिलों का इलाज शुरू हो जाएगा।
₹6 करोड़ की 'मेड इन जापान' मशीन, 10 साल तक होगा मेंटेनेंस
सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में पहुंची यह नई कैथलैब मशीन करीब 5 से 6 करोड़ रुपये की बताई जा रही है। इसे स्थापित करने का ठेका हाइट्स कंपनी को मिला है। यह मशीन 'मेड इन जापान' है और जापान से ही मंगाई गई है। इसके इंस्टॉलेशन से लेकर 5 साल तक के मेंटेनेंस का जिम्मा भी हाइट्स के पास ही रहेगा। इसके बाद भी पांच साल तक यह मेंटेनेंस में ही रहेगी, जिससे कुल मिलाकर इसकी लाइफ 10 साल तक आंकी जा रही है। वहीं, अस्पताल की पुरानी कैथलैब मशीन 10 साल से भी अधिक पुरानी हो चुकी है और अपनी क्षमता से कहीं अधिक काम करने के कारण अब उसमें लगातार खराबी आ रही थी।
हर साल 5-6 हजार हृदय संबंधी ऑपरेशन: कैथलैब की आवश्यकता अपरिहार्य
सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में हृदय संबंधी ऑपरेशन का रिकॉर्ड है। यह प्रदेश में रिकॉर्ड तोड़ ऑपरेशन करने वाला पहला सरकारी संस्थान बन गया है। पिछले साल यहां औसतन 1800 एंजियोप्लास्टी और 3800 एंजियोग्राफी हुई थीं। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि एक साल में औसतन 5 से 6 हजार दिल के ऑपरेशन सिर्फ कार्डियोलॉजी विभाग में हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में, एक और कैथलैब मशीन की आवश्यकता अत्यधिक बढ़ गई थी। तीन डॉक्टरों के बीच पहले केवल एक ही कैथलैब थी, लेकिन अब इनकी संख्या दो हो जाएगी।
रीवा को मेडिकल हब बनाने की ओर कदम: CT स्कैन और MRI मशीन भी इंस्टॉलेशन के अंतिम चरण में
डिप्टी सीएम रीवा को मेडिकल हब के रूप में विकसित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, और इसी कड़ी में वे रीवा में उन सभी सुविधाओं को मुहैया कराने में जुटे हैं, जिनके लिए लोगों को पहले बाहर जाना पड़ता था। हाल ही में करोड़ों का बजट स्वीकृत हुआ है, जिससे आधारभूत संरचना तैयार होगी।
इसके अलावा, संजय गांधी अस्पताल में करीब 9 करोड़ रुपये की नई सीटी स्कैन मशीन पहुंच गई है और उसके इंस्टॉलेशन का काम जारी है। सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में ही करीब 13-14 करोड़ रुपये की एमआरआई मशीन भी लग चुकी है और इंस्टॉलेशन का काम लगभग पूरा हो चुका है। कंपनी के इंजीनियर फिनिशिंग में लगे हैं। उम्मीद है कि इन तीनों मशीनों का लाभ मरीजों को अगले महीने से मिलना शुरू हो जाएगा।
डॉ. अक्षय श्रीवास्तव, अधीक्षक, सुपर स्पेशलिटी अस्पताल रीवा ने बताया, "नई कैथलैब मशीन अस्पताल पहुंच गई है। पांचवीं मंजिल में इंस्टाल किया जाएगा। अगले महीने तक उम्मीद है कि इंस्टॉलेशन का काम पूरा हो जाएगा। एमआरआई का काम भी अंतिम चरण में ही है। उम्मीद है कि दोनों ही मशीनों का लाभ मरीजों को अगले महीने से मिलना शुरू हो जाएगा।"
डॉ. वीडी त्रिपाठी, एचओडी, कार्डियोलॉजी विभाग, सुपर स्पेशलिटी अस्पताल ने कहा, "सुपर स्पेशलिटी में सालभर में औसतन 5 से 6 हजार एंजियोग्राफी और एंजियोप्लास्टी हो रहे हैं। इसके हिसाब से यहां पर एक और कैथलैब की जरूरत थी। वह पूरी हो गई है। यदि यहां डॉक्टर और आ जाएं तो 5 से 6 मशीनें भी कम पड़ जाएंगी।"