रीवा में 'पोषण आहार' का महाघोटाला: मासूमों की थाली से खिलवाड़, घटिया गेहूं-चावल और तेल बेचकर 'अधिकारी' भर रहे जेबें?

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा संभाग में कुपोषण मिटाने के नाम पर ही अब महाघोटाला सामने आया है! गर्भवती महिलाओं और मासूम बच्चों को वितरित किए जाने वाले 'पोषण आहार' की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं, जिससे यह आशंका गहरा गई है कि क्या अधिकारी ही इस नेकी के काम में भ्रष्टाचार कर अपनी जेबें भर रहे हैं?
'कुपोषण बढ़ाने वाला आहार': समाजसेवी का सनसनीखेज खुलासा
समाजसेवी अधिवक्ता बी.के. माला ने इस पूरे मामले की पोल खोलते हुए रीवा संभाग के पहाड़ीया स्थित पोषण संयंत्र केंद्र पर सीधे तौर पर उंगली उठाई है. इस केंद्र से संभाग की 56 परियोजनाओं में पोषण आहार की आपूर्ति की जाती है, लेकिन माला का आरोप है कि यह आहार अमानक और बेहद घटिया गुणवत्ता का है, जो बच्चों में कुपोषण कम करने के बजाय उन्हें और बीमार कर सकता है.
भ्रष्टाचार का काला सच: घटिया सामग्री और नियमों की धज्जियां
माला के अनुसार, पोषण आहार में कई स्तरों पर भ्रष्टाचार हो रहा है:
अमानक गेहूं और चावल: पोषण आहार में इस्तेमाल होने वाला गेहूं और चावल मानक के विपरीत है. यह इतनी निम्न गुणवत्ता का है कि इसे खाने से फायदे की बजाय नुकसान हो सकता है.
बाहरी राज्यों से 'अवैध' खरीद: शासकीय नियमों के मुताबिक, पोषण आहार के लिए गेहूं सीधे सरकार से ही लिया जाना चाहिए. लेकिन, रीवा के इस संयंत्र में उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और कलकत्ता जैसे बाहरी राज्यों से छोटे व्यापारियों के ज़रिए गेहूं खरीदा जा रहा है. यह खरीद सीधे-सीधे नियमों का उल्लंघन है.
तेल और सोयाबीन का खेल: आरोप तो यहां तक है कि पोषण आहार में इस्तेमाल होने वाला तेल और सोयाबीन तक बेच दिया जाता है.
सड़कों पर फेंका जा रहा घटिया माल: भ्रष्टाचार की हद तो देखिए, गुणवत्ता विहीन पोषण आहार की कुछ सामग्री खुलेआम सड़कों पर भी फेंकी हुई मिली है. यह दिखाता है कि कितनी बड़ी लापरवाही और अनियमितता बरती जा रही है.
करोड़ों का प्रोटीन बाहर!: बी.के. माला ने एक सनसनीखेज दावा किया है कि पहाड़ीया के एक गांव में कम से कम एक करोड़ रुपये का प्रोटीन खुले में पड़ा हुआ है. उन्होंने इसकी मौके पर जांच की मांग की है.
मासूमों के स्वास्थ्य से खिलवाड़, प्रशासन पर उठे सवाल
यह पूरा मामला सीधे तौर पर रीवा संभाग के सबसे कमज़ोर वर्ग, यानी मासूम बच्चों और गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य और भविष्य से खिलवाड़ है. जब उन्हें पोषण की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है, तब उन्हें घटिया और अमानक भोजन परोसा जा रहा है.
समाजसेवी अधिवक्ता बी.के. माला ने इस गंभीर मामले की शिकायत कलेक्टर और संभाग आयुक्त से की है. अब देखना यह है कि प्रशासन इस बड़े घोटाले पर क्या कार्रवाई करता है. क्या इस मामले की उच्च स्तरीय जांच होगी और दोषियों को कड़ी सज़ा मिलेगी, ताकि भविष्य में ऐसी लापरवाही दोबारा न हो? रीवा की जनता अब अपने बच्चों के हक के पोषण के लिए जवाब चाहती है.