वन्स अपॉन टाइम इन रीवा : रीवा की सड़कों पर खून की होली: ताला हाउस, पलागो मज़ालटी और पप्पू शुक्ला की कहानी!

 
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ऋतुराज द्विवेदी,रीवा। रीवा की छात्र राजनीति और अपराध जगत की यह कहानी 1970 और 1980 के दशक की सामाजिक, जातीय और राजनीतिक जटिलताओं को दर्शाती है। इस काल में ठाकुर और ब्राह्मण समुदायों के बीच वर्चस्व की लड़ाई ने छात्र संघ चुनावों से लेकर स्थानीय अपराध तक को प्रभावित किया।

रीवा की छात्र राजनीति में 1970 से 1990 के दशक तक चार प्रमुख गुटों ने प्रभाव डाला: ताला हाउसपलागो मजालटीपप्पू शुक्ला कंपनी, और कृपालपुर हाउस। इन गुटों के बीच वर्चस्व की लड़ाई ने छात्र राजनीति को हिंसक बना दिया।

1. ताला हाउस

  • नेतृत्व: नरेंद्र सिंह मुन्नू और नृपेंद्र सिंह मुन्नू।

  • प्रभाव: रीवा राजघराने से संबंध होने के कारण विश्वविद्यालय और कॉलेजों में गहरी पकड़।

  • रणनीति: छात्र संघ चुनावों में विरोधियों को धमकाना और हिंसा का सहारा लेना।

  • प्रसिद्ध घटना: टीआरएस कॉलेज के छात्र नेता रामानंद पटेल की हत्या, जो ताला हाउस के विरोधी थे।

2. पलागो मजालटी

  • स्थापना: 1970 के दशक में ब्राह्मण समुदाय के छात्रों द्वारा।

  • प्रमुख सदस्य: रामलला शुक्ला, लवकुश मिश्रा, चंद्रदेव द्विवेदी, जगदीश तिवारी।

  • उद्देश्य: ताला हाउस के वर्चस्व को चुनौती देना और ब्राह्मण छात्रों के हितों की रक्षा करना।

  • उपलब्धि: श्रीनिवास तिवारी के विद्यापीठ कॉलेज में छात्र संघ चुनाव जीतना।

3. पप्पू शुक्ला कंपनी

  • नेतृत्व: लक्ष्मीदत्त शुक्ला उर्फ पप्पू शुक्ला।

  • पृष्ठभूमि: सरकारी नौकरी छोड़कर छात्र राजनीति में सक्रिय हुए।

  • गठन: ढेकहा क्षेत्र के युवाओं को संगठित कर एक मजबूत गैंग बनाया।

  • प्रमुख सदस्य: अश्विनी तिवारी, मृत्युंजय तिवारी, प्रदीप सोहगौरा, अशोक मिश्रा (मुंशी जी), गोमती पांडेय।

  • प्रसिद्ध घटना: कृपालपुर हाउस के पीयूष सिंह गुड्डू के साथ विवाद और उनके घर पर हमला।

  • अंत: एक सड़क दुर्घटना में पप्पू शुक्ला की मृत्यु।

4. कृपालपुर हाउस

  • नेतृत्व: पीयूष सिंह गुड्डू।

  • संबंध: ताला हाउस के सहयोगी।

  • प्रसिद्ध घटना: ढेकहा के अजय त्रिवेदी के साथ मारपीट, जिसके जवाब में पप्पू शुक्ला ने हमला किया।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: छात्र राजनीति में जातीय वर्चस्व
रीवा में छात्र राजनीति पर ठाकुर समुदाय का प्रभाव 'ताला हाउस' के माध्यम से स्पष्ट था। नरेंद्र सिंह मुन्नू और नृपेंद्र सिंह मुन्नू जैसे प्रभावशाली नेताओं के नेतृत्व में, ताला हाउस ने छात्र संघ चुनावों और विश्वविद्यालय की गतिविधियों पर नियंत्रण स्थापित किया। इस प्रभाव के विरोध में, ब्राह्मण समुदाय ने 'पलागो मजालटी' का गठन किया, जिसमें रामलला शुक्ला, लवकुश मिश्रा और चंद्रदेव द्विवेदी जैसे नेता शामिल थे। यह संगठन ताला हाउस के वर्चस्व को चुनौती देने के लिए बना था।

ताला हाउस बनाम पलागो मजालटी: संघर्ष की गाथा
छात्र संघ चुनावों में ताला हाउस और पलागो मजालटी के बीच तीव्र प्रतिस्पर्धा देखी गई। एक प्रमुख घटना में, पलागो मजालटी के नेता रामानंद पटेल की हत्या कर दी गई, जब उन्होंने ताला हाउस के विरोध में चुनाव लड़ा। इसके बाद, पलागो मजालटी ने विद्यापीठ कॉलेज में ताला हाउस के उम्मीदवार नृपेंद्र सिंह पम्पू को हराया, जिससे उनके प्रभाव में वृद्धि हुई।

पप्पू शुक्ला: एक नया चेहरा
ढेकहा के लक्ष्मीदत्त शुक्ला, जिन्हें पप्पू शुक्ला के नाम से जाना जाता है, ने रीवा की राजनीति और अपराध जगत में एक नया अध्याय जोड़ा। सरकारी नौकरी छोड़कर, उन्होंने ताला हाउस के अत्याचारों के खिलाफ मोर्चा खोला। उनकी गैंग में अश्विनी तिवारी, मृत्युंजय तिवारी और श्रवण तिवारी जैसे सदस्य शामिल थे। उन्होंने ताला हाउस के प्रभाव को चुनौती दी और कई बार हिंसक टकराव हुए।

विवाद और संघर्ष

पप्पू शुक्ला पर कई आपराधिक मामले दर्ज हुए, जिनमें हत्या के आरोप भी शामिल थे। एक घटना में, उन्होंने ताला हाउस के समर्थकों के खिलाफ गवाही दी, जिससे उनके खिलाफ हमले हुए। इसके अलावा, इंजीनियरिंग कॉलेज और साइंस कॉलेज में भी उनके गिरोह के साथ संघर्ष हुए, जिनमें गोलीबारी और हिंसा शामिल थी।

अंत: एक दुर्घटना
1990 के दशक में, पप्पू शुक्ला ने सामान्य जीवन की ओर रुख किया और व्यवसाय और राजनीति में सक्रिय होने लगे। हालांकि, एक सड़क दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई, जब वे कारीगरों को खाना खिलाने जा रहे थे। इस दुर्घटना में केवल पप्पू शुक्ला की ही मृत्यु हुई, जबकि अन्य लोग सुरक्षित रहे।

निष्कर्ष
रीवा की यह कहानी सामाजिक, जातीय और राजनीतिक संघर्षों की जटिलता को दर्शाती है। ताला हाउस और पलागो मजालटी के बीच संघर्ष ने छात्र राजनीति को प्रभावित किया, जबकि पप्पू शुक्ला जैसे व्यक्तित्वों ने इस संघर्ष को और भी जटिल बना दिया। यह कहानी हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि कैसे सामाजिक और जातीय विभाजन राजनीतिक और आपराधिक संघर्षों को जन्म दे सकते हैं।

रीवा की छात्र राजनीति और बाहुबलियों के इतिहास में चार प्रमुख गुटों की कहानियाँ उल्लेखनीय हैं:

1. ताला हाउस (ठाकुर गुट)

  • प्रमुख व्यक्ति: नरेंद्र सिंह मुन्नू और नृपेंद्र सिंह मुन्नू

  • वर्चस्व: रीवा की छात्र राजनीति में इनका दबदबा था।

  • प्रभाव: छात्रसंघ चुनावों से लेकर विश्वविद्यालय की खेल टीमों तक, इनके समर्थकों का प्रभाव था।

  • हिंसा के उदाहरण: छात्र नेता रामानंद पटेल की हत्या, विरोधियों की पिटाई।

2. पलागो मज़लटी (ब्राह्मण गुट)

  • स्थापना: 1970 के दशक में रामलला शुक्ला, लवकुश मिश्रा, चंद्रदेव द्विवेदी द्वारा।

  • उद्देश्य: ताला हाउस के वर्चस्व को चुनौती देना।

  • उपलब्धियाँ: विद्यापीठ कॉलेज में नृपेंद्र सिंह पम्पू को हराना, विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में आलोक चतुर्वेदी की जीत।

  • चुनौतियाँ: ताला हाउस के बाहुबल से निपटना, जैसे सुशील पाण्डेय का अपहरण और पिटाई।

3. पप्पू शुक्ला गैंग

  • नेता: लक्ष्मीदत्त शुक्ला उर्फ पप्पू शुक्ला

  • पृष्ठभूमि: सरकारी नौकरी से शुरुआत, बाद में बाहुबली के रूप में उभरना।

  • प्रमुख घटनाएँ:

    • कृपालपुर हाउस पर हमला।

    • बब्बू सिंह हिंनौता की पिटाई।

    • बीबी सिंह से जमीन छुड़ाना।

    • दुष्यंत सिंह बब्बी के खिलाफ गवाही।

  • संपर्क: श्यामनारायण करवरिया, हरिशंकर तिवारी जैसे उत्तर प्रदेश के बाहुबलियों से संबंध।

  • मृत्यु: सड़क दुर्घटना में निधन।

4. गुड्डा खान, अफसर अली, बबलू बाजपेयी गिरोह

  • भूमिका: पप्पू शुक्ला के अधीनस्थ के रूप में कार्यरत।

  • प्रभाव: रीवा शहर में इनका दबदबा था, और ये पप्पू शुक्ला के निर्देशों पर कार्य करते थे।

📌 मुख्य बिंदु:

  • ताला हाउस: रीवा राजघराने से जुड़ा गुट, जिसने छात्र राजनीति में दबदबा बनाया। नरेंद्र सिंह मुन्नू और नृपेंद्र सिंह मुन्नू इसके प्रमुख चेहरे थे।

  • पलागो मज़ालटी: ब्राह्मण समुदाय का संगठन, जिसने ताला हाउस के वर्चस्व को चुनौती दी। रामलला शुक्ला, लवकुश मिश्रा और चंद्रदेव द्विवेदी इसके संस्थापक सदस्य थे।

  • पप्पू शुक्ला: ढेकहा के रहने वाले, जिन्होंने ताला हाउस के खिलाफ मोर्चा खोला और रीवा की राजनीति में नया अध्याय जोड़ा।

  • गैंग वॉर: छात्र राजनीति के नाम पर हुए हिंसक टकराव, जिसमें कई लोगों की जान गई और रीवा की सड़कों पर खून बहा।

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