अन्नदाता पर पुलिस का कहर: जब सरकार के 'खाद उपलब्ध' होने के दावों के बीच किसानों को लाठी मिली

 
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ऋतुराज द्विवेदी, रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) मध्य प्रदेश के रीवा जिले में किसानों का गुस्सा उस समय फूट पड़ा जब खाद की भारी किल्लत के कारण उन्हें घंटों लाइन में खड़ा रहना पड़ा। यह आक्रोश मंगलवार देर रात एक हिंसक झड़प में बदल गया, जब करहिया मंडी में खाद की मांग कर रहे किसानों पर पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया। इस घटना ने प्रशासन के दावों और किसानों की जमीनी हकीकत के बीच के अंतर को उजागर कर दिया है, जिससे यह सवाल खड़ा हो गया है कि आखिर हमारे अन्नदाताओं को अपनी ही मेहनत का फल पाने के लिए संघर्ष क्यों करना पड़ रहा है।

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यह घटना तब हुई जब सैकड़ों किसान 24 से 48 घंटों तक लाइन में खड़े रहने के बाद भी खाद पाने में असफल रहे। मंगलवार शाम को जब खाद वितरण का काउंटर बंद हो गया, तो किसानों का धैर्य जवाब दे गया। उन्होंने प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी, जिसके बाद स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज किया। इस दौरान कई किसानों को चोटें आईं और मंडी में भगदड़ मच गई।

क्या करहिया मंडी में हुआ लाठीचार्ज सही था?
पुलिस का कहना है कि स्थिति को नियंत्रित करने के लिए 'हल्का बल' प्रयोग किया गया, लेकिन घटनास्थल से सामने आई तस्वीरें और वीडियो कुछ और ही कहानी बयां करते हैं। इन तस्वीरों में पुलिसकर्मियों को किसानों को धक्का देते, दौड़ा-दौड़ाकर पीटते और यहां तक कि महिलाओं को भी भीड़ से हटाते हुए देखा जा सकता है। पुलिस की इस कार्रवाई ने किसानों के आक्रोश को और भी बढ़ा दिया है।

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इस घटना के बाद, महिलाओं सहित कई किसानों ने पुलिस की कार्रवाई का विरोध किया। उनका कहना था कि वे कोई अपराध नहीं कर रहे थे, बस अपनी फसलों को बचाने के लिए खाद मांग रहे थे। एक तरफ किसान अपनी फसलों को सूखने से बचाने के लिए दिन-रात संघर्ष कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ उन्हें अपनी सरकार और प्रशासन की उदासीनता का सामना करना पड़ रहा है।

पूरे जिले में खाद का कालाबाजारी और किल्लत का मुद्दा

यह समस्या केवल करहिया मंडी तक सीमित नहीं है। गुढ़, त्योंथर, जवा, मनगवां और सेमरिया जैसे अन्य क्षेत्रों से भी खाद की कमी की खबरें लगातार आ रही हैं। गुढ़ में तो किसानों की कतारें एक किलोमीटर तक लंबी थीं, जहां किसान धूप और गर्मी की परवाह किए बिना अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे।

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किसान नेता शिव सिंह ने कहा: "किसान 48 घंटे तक लाइन लगाने के बाद भी खाली हाथ लौट रहे हैं। इससे बुआई का काम बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।"

किसानों ने खाद की कालाबाजारी का भी आरोप लगाया है। किसान हरीश प्रजापति के अनुसार, "खाद या तो अधिक दामों पर बेची जा रही है, या फिर कुछ खास लोगों को ही मिल रही है। आम किसान खाली हाथ लौट रहे हैं।" यह स्थिति किसानों को निराशा और हताशा की ओर धकेल रही है।

किसानों का दर्द: खाद के बदले लाठी और झूठे वादे
जिन किसानों ने अपनी आपबीती साझा की, उनका दर्द साफ झलकता है।

विनीत शुक्ला: "हमें सुबह से शाम तक इंतजार करना पड़ रहा है, और फिर भी कोई भरोसा नहीं है कि खाद मिलेगी या नहीं। यह कितनी बड़ी विडंबना है कि हमारे अन्नदाता आज एक-एक बोरी खाद के लिए चार-चार दिन लाइन में लगने को मजबूर हैं।"

पुरुषोतम सिंह: "मैं सोमवार सुबह 10 बजे से लाइन में लगा हुआ हूं। कोई गारंटी नहीं है कि खाद कब तक मिल पाएगी।"

प्रदीप मिश्रा: "किसानों को समय पर खाद उपलब्ध कराना चाहिए, न कि उन पर लाठीचार्ज करना।"

यह दर्द सिर्फ शब्दों तक सीमित नहीं है, बल्कि उस हताशा का प्रतीक है जो किसान महसूस कर रहे हैं। कांग्रेस और वकीलों ने भी इस मुद्दे पर अपनी आवाज उठाई है और सरकार की कड़ी आलोचना की है।

प्रशासन के दावे बनाम जमीनी हकीकत
एक तरफ, कलेक्टर प्रतिभा पाल का दावा है कि जिले में पर्याप्त खाद का स्टॉक मौजूद है और वितरण पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है। उन्होंने यह भी बताया कि कृषि उपज मंडी में किसानों को छाया, पानी और ओआरएस पैकेट जैसी सुविधाएं दी जा रही हैं।

लेकिन, सवाल उठता है: अगर पर्याप्त खाद है, तो किसान 48 घंटे तक लाइन में क्यों खड़े हैं? अगर सुविधाएं दी जा रही हैं, तो भी उन्हें लाठीचार्ज का सामना क्यों करना पड़ा? यह विरोधाभास साफ बताता है कि प्रशासन के दावे और किसानों की जमीनी हकीकत में बहुत बड़ा अंतर है। यह घटना सरकार और प्रशासन की जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े करती है।

भविष्य की राह: क्या समाधान है?
इस संकट को हल करने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है। प्रशासन को केवल बयानबाजी से आगे बढ़कर ठोस कदम उठाने होंगे।

वितरण प्रणाली को सुदृढ़ करना: खाद वितरण में पारदर्शिता लाई जाए और कालाबाजारी रोकने के लिए सख्त कदम उठाए जाएं।
पर्याप्त स्टॉक सुनिश्चित करना: सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बुआई के मौसम से पहले ही पर्याप्त खाद का स्टॉक उपलब्ध हो।
किसान हितैषी रवैया: पुलिस को बल प्रयोग की बजाय किसानों के साथ संवाद स्थापित करना चाहिए।

रीवा की यह घटना एक चेतावनी है। अगर समय रहते इस समस्या का समाधान नहीं किया गया, तो किसानों का असंतोष एक बड़े आंदोलन का रूप ले सकता है, जिससे फसलों के साथ-साथ सामाजिक शांति भी प्रभावित होगी।

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