मुख्यमंत्री/कलेक्टर से सवाल: "क्या लाशें ढोना ही रीवा के नागरिक का अधिकार है?" तत्काल एक्शन लो, वरना कुर्सी छोड़ो!
अमानवीयता की पराकाष्ठा: रीवा स्वास्थ्य व्यवस्था का खोखलापन और जवाबदेही का अभाव
- शीर्ष प्रशासनिक विफलता: 'नासूर' बन चुके हाइट्स कॉन्ट्रैक्ट को तत्काल रद्द क्यों नहीं?
- मांग: अधीक्षक राहुल मिश्रा, कंपनी अधिकारी अमृतांश शर्मा पर आपराधिक लापरवाही का केस दर्ज हो!
ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) श्याम शाह मेडिकल कॉलेज, रीवा से संबद्ध संजय गांधी, गांधी मेमोरियल और सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल – ये केवल भवन नहीं हैं, बल्कि मध्य प्रदेश की चरमराती स्वास्थ्य व्यवस्था का जीता जागता सबूत हैं। इन अस्पतालों में सफाई और सुरक्षा का जिम्मा संभालने वाली हाइट्स कंपनी की मनमानी और आपराधिक लापरवाही अब ‘नासूर’ बन चुकी है। यह कंपनी नहीं, बल्कि सरकारी संरक्षण में पल रहा एक भ्रष्टाचार का अड्डा है, जिसके कर्मचारियों की अराजकता ने अस्पताल को वसूली और अमानवीयता का केंद्र बना दिया है।

सवाल सिर्फ लापरवाही का नहीं है, सवाल है खुलेआम वसूली का! कुछ दिन पहले गांधी मेमोरियल अस्पताल के लेबर रूम में हाइट्स कंपनी के कर्मचारियों द्वारा प्रसूता के परिजनों से कथित तौर पर पैसे वसूलने का शर्मनाक मामला सामने आया। यह घटना बताती है कि ये कर्मचारी मात्र सफाईकर्मी या सुरक्षागार्ड नहीं हैं, बल्कि एक संगठित वसूली गिरोह का हिस्सा हैं। अस्पताल प्रबंधन आंखें मूंदे रहा, और इस भ्रष्टाचार के बीज को फलने-फूलने दिया।
क्या राहुल मिश्रा (अस्पताल अधीक्षक) को इसकी जानकारी नहीं थी? क्या यह मिलीभगत का मामला नहीं है? यह कंपनी कर्मचारियों की अनियमितताओं से परेशान नहीं, बल्कि शर्मिंदा होनी चाहिए! लेकिन शर्म कहाँ, जब पूरा सिस्टम ही खोखला हो चुका है?
सुपर स्पेशियलिटी में अमानवीयता की पराकाष्ठा: मौत के बाद भी शव का अपमान
ताजा घटना सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में हुई, जिसने मानवीय संवेदनाओं की सारी हदें पार कर दीं। चमेली साकेत की मृत्यु के बाद, उनके परिजन स्ट्रेचर की तलाश में घंटों भटकते रहे। जब स्ट्रेचर मिला, तो उन्हें स्वयं शव उठाकर स्ट्रेचर पर रखना पड़ा और धकेलते हुए ग्राउंड फ्लोर तक ले जाना पड़ा।
यह क्या हो रहा है?
क्या हाइट्स कंपनी के अधिकारी अमृतांश शर्मा को पता नहीं कि स्ट्रेचर की व्यवस्था किसकी जिम्मेदारी है?
क्या इन कर्मचारियों को लाशों की भी कद्र नहीं है?
अस्पताल का पैरामेडिकल स्टाफ कहाँ था? महिला की मृत्यु के बाद मेडिकल उपकरण हटाना भी जरूरी नहीं समझा गया। यह सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि एक गहरी संवेदनहीनता और जवाबदेही का पूर्ण अभाव दर्शाता है।
अमृतांश शर्मा का 'मामले की जानकारी न होने' की बात कहकर पल्ला झाड़ लेना उनके निकम्मेपन और अकर्मण्यता का सीधा सबूत है। यह बताता है कि उन्हें अपने कर्मचारियों की अराजकता की कोई परवाह नहीं है।
अधीक्षक की खानापूर्ति: क्या नोटिस और जुर्माना ही एकमात्र हल है?
अस्पताल अधीक्षक राहुल मिश्रा ने अब जाकर 'नोटिस जारी करने और जुर्माना अधिरोपित करने' की बात कही है।
सवाल यह है: इतने दिनों तक क्या कर रहे थे?
- जब वसूली का मामला सामने आया, तब तत्काल कॉन्ट्रैक्ट रद्द क्यों नहीं किया गया?
- क्या नोटिस और जुर्माना लगाना अपनी जिम्मेदारी से बचने की महज खानापूर्ति है?
- क्या किसी परिजन के घंटों भटकने और शव ढोने के अपमान का मूल्य केवल कुछ हजार रुपए का जुर्माना है?
यह स्पष्ट है कि छोटी मछलियों (कर्मचारियों) पर कार्रवाई का डर दिखाकर मगरमच्छ (हाइट्स कंपनी और भ्रष्ट अधिकारी) को बचाने की कोशिश हो रही है। इस समस्या को अधीक्षक 'नासूर' बता रहे हैं, तो इस नासूर को जड़ से क्यों नहीं काटा जा रहा है? क्या कोई ऊंचा हाथ है जो हाइट्स कंपनी को संरक्षण दे रहा है, जिसके सामने अधीक्षक भी बेबस हैं?
प्रशासनिक विफलता: कलेक्टर और CM की चुप्पी क्यों?
जब अस्पताल की हालत इतनी दयनीय है, जब मानवीयता शर्मसार हो रही है, तब प्रशासन के मुखिया (कलेक्टर) और राज्य के मुखिया (मुख्यमंत्री) की चुप्पी क्यों है?
कलेक्टर इस पूरे मामले में संज्ञान लेकर तत्काल कॉन्ट्रैक्ट रद्द क्यों नहीं कर रहे हैं?
- मुख्यमंत्री क्या रीवा की जनता को ऐसी घटिया स्वास्थ्य सेवाएं देने के लिए जिम्मेदार नहीं हैं?
- क्या उन्हें इंतजार है कि कोई बड़ा हादसा हो, तब जाकर वे केवल दिखावटी कार्रवाई करेंगे?
यह दिखाता है कि ऊपर से नीचे तक पूरा सिस्टम खोखला हो चुका है। स्वास्थ्य सुविधाएँ जनता का अधिकार हैं, न कि हाइट्स कंपनी के कर्मचारियों के वसूली का जरिया! इस पूरे खेल में जवाबदेही शून्य है और पीड़ित जनता बेबस है। अमृतांश शर्मा को सिर्फ नोटिस नहीं, बल्कि कानून के दायरे में लाकर जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। राहुल मिश्रा को सिर्फ जुर्माना नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की विफलता की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
सिस्टम का खोखलापन: जवाबदेही शून्य, जनता बेबस
रीवा के ये अस्पताल अब भ्रष्टाचार, लापरवाही और संवेदनहीनता का प्रतीक बन चुके हैं। हाइट्स कंपनी ने साबित कर दिया है कि मुनाफा उनके लिए मानवीय मूल्यों से कहीं ऊपर है। अस्पताल प्रबंधन ने साबित कर दिया है कि वे प्राइवेट कॉन्ट्रैक्टर्स के सामने घुटने टेक चुके हैं।
यह केवल एक खबर नहीं है; यह एक चेतावनी है!
अगर कलेक्टर, मुख्यमंत्री, और प्रधानमंत्री जैसे उच्च पदस्थ अधिकारी इस तरह की व्यवस्थागत विफलता पर ठोस और निर्णायक कार्रवाई नहीं करते हैं, तो यह माना जाएगा कि भ्रष्टाचार और लूट की इस संस्कृति में उनकी भी मौन सहमति है।
क्या रीवा की जनता को यह दिन देखने के लिए मजबूर किया जाएगा कि वे अपने प्रियजनों के शवों को भी स्ट्रेचर पर स्वयं धकेलें? पूरे कॉन्ट्रैक्ट को तत्काल प्रभाव से रद्द किया जाना चाहिए, और जिम्मेदार लोगों पर आपराधिक लापरवाही के तहत कार्रवाई होनी चाहिए। अब और 'नोटिस' का खेल नहीं चलेगा!
FAQ: रीवा अस्पताल संकट पर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
रीवा अस्पताल में हाइट्स कंपनी की प्रमुख शिकायतें क्या हैं?
रीवा के संजय गांधी, गांधी मेमोरियल और सुपर स्पेशियलिटी अस्पतालों में हाइट्स कंपनी की दो प्रमुख शिकायतें हैं: वसूली (जैसे लेबर रूम में) और कर्मचारियों की घोर लापरवाही (जैसे स्ट्रेचर न मिलना और शव को खुद धकेलना)।
अस्पताल अधीक्षक राहुल मिश्रा ने क्या कार्रवाई करने की बात कही है?
अधीक्षक राहुल मिश्रा ने हाइट्स कंपनी को नोटिस जारी कर जुर्माना लगाने की कार्रवाई करने की बात कही है, जिसे कई लोग अपर्याप्त और खानापूर्ति मान रहे हैं।
हाइट्स कंपनी के अधिकारी अमृतांश शर्मा का इस मामले पर क्या कहना है?
अमृतांश शर्मा ने मामले की जानकारी न होने की बात कहकर पल्ला झाड़ लिया, जो उनकी कंपनी की जवाबदेही और निगरानी में घोर विफलता को दर्शाता है।