'नोट शीट' में विधायक का नाम, ₹50 करोड़ का भ्रष्टाचार! रीवा से राजधानी तक हड़कंप... क्या यह MP का सबसे बड़ा घोटाला?

 
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RTI से बड़ा खुलासा: रीवा-शहडोल में PWD-विद्युत यांत्रिकी विभाग में टेंडर घोटाला, एक ही ठेकेदार को करोड़ों का फायदा; EOW में शिकायत, क्या गिरेगी 'बड़ी गाज'?

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) मध्य प्रदेश के रीवा और शहडोल संभाग में लोक निर्माण विभाग (PWD) और विद्युत यांत्रिकी विभाग से जुड़ा एक विशाल भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है, जिसने सरकारी तंत्र में व्याप्त अनियमितताओं की पोल खोल दी है। इस घोटाले में ₹50 करोड़ रुपये से अधिक की राशि की हेराफेरी का आरोप है। इस सनसनीखेज खुलासे का श्रेय रीवा के जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता और अधिवक्ता बी. केमाला को जाता है, जिन्होंने सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम का इस्तेमाल कर यह जानकारी उजागर की। RTI के तहत प्राप्त आधिकारिक अभिलेखों और नोटशीट्स ने इस भ्रष्टाचार की पुष्टि की है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि कैसे सरकारी परियोजनाओं में नियमों की अनदेखी कर कुछ खास लोगों को फायदा पहुंचाया जा रहा था। यह मामला अब पूरे राज्य में चर्चा का विषय बन गया है, और प्रशासन पर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का दबाव बढ़ गया है।

कैसे हुआ टेंडर प्रक्रिया का दुरुपयोग? नियमों की धज्जियां, एक ही ठेकेदार को करोड़ों का फायदा 
इस ₹50 करोड़ से अधिक के घोटाले का केंद्रबिंदु टेंडर प्रक्रिया में किया गया गंभीर दुरुपयोग है। आरोप है कि लोक निर्माण और विद्युत यांत्रिकी विभाग के प्रभारी कार्यपालन यंत्री विनय कुमार श्रीवास्तव ने सरकारी नियमों और प्रक्रियाओं को ताक पर रख दिया। सूत्रों के अनुसार, शासन के सर्कुलर में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि किसी भी टेंडर को केवल एक बार ही पुनरीक्षित (Revised) किया जा सकता है। लेकिन, इस मामले में नियमों की खुलकर धज्जियां उड़ाई गईं। अभिलेखों से पता चला है कि टेंडर राशि को एक नहीं, बल्कि कई बार पुनरीक्षित किया गया, जिससे एक ही ठेकेदार को बार-बार करोड़ों रुपए का अनुचित लाभ पहुंचाया गया।

इस तरह की मनमानी प्रक्रिया सरकारी धन की बर्बादी और भ्रष्टाचार का एक बड़ा उदाहरण है। पुनरीक्षण प्रक्रिया का यह दुरुपयोग दर्शाता है कि कैसे कुछ अधिकारी अपने पद का गलत इस्तेमाल कर खास ठेकेदारों के साथ सांठगांठ करके सरकारी खजाने को चूना लगाते हैं। इस प्रक्रिया में विभाग के कई अन्य अधिकारी भी कथित तौर पर शामिल थे, जिन्होंने इस अवैध कार्य को अंजाम देने में कार्यपालन यंत्री का साथ दिया। यह सिर्फ वित्तीय अनियमितता नहीं, बल्कि सरकारी नियमों और नैतिकता का खुला उल्लंघन भी है, जो सार्वजनिक परियोजनाओं की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े करता है।

विधायक का नाम नोट शीट में: राजनीतिक हस्तक्षेप के गहरे संकेत 
इस भ्रष्टाचार के मामले में एक और चौंकाने वाला पहलू सामने आया है, जिसने इसकी गंभीरता को कई गुना बढ़ा दिया है। विभाग की आंतरिक नोट शीट में रीवा के विधायक का नाम भी संदर्भित किया गया है। नोट शीट में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि विधायक ने संबंधित टेंडर की राशि बढ़ाने का "सुझाव" दिया था। यह एक बेहद संवेदनशील खुलासा है, क्योंकि यह सीधे तौर पर इस भ्रष्टाचार में राजनीतिक हस्तक्षेप या दबाव की संभावना की ओर इशारा करता है।

हालांकि, यह भी बताया गया है कि विधायक ने ऐसा कोई लिखित या औपचारिक आदेश जारी नहीं किया था। लेकिन, केवल मौखिक "सुझाव" या अनौपचारिक प्रभाव भी अक्सर प्रशासनिक प्रक्रियाओं में अनियमितताओं को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त होता है। यह घटना दर्शाती है कि कैसे राजनीतिक और प्रशासनिक गठजोड़ भ्रष्टाचार को अंजाम देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। ऐसे मामलों में जहां बड़े पैमाने पर वित्तीय हेराफेरी होती है, अक्सर सत्ता के गलियारों से प्राप्त अप्रत्यक्ष समर्थन या दबाव शामिल होता है। यह स्थिति सरकारी तंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी को उजागर करती है, जहां अनौपचारिक आदेशों या "सुझावों" को भी अधिकारियों द्वारा गंभीरता से लिया जाता है, भले ही वे नियमों के विरुद्ध हों।

प्रशासनिक लापरवाही की हदें: बिना नक्शे और एस्टीमेट के काम! 
इस घोटाले में सामने आई जानकारी केवल वित्तीय अनियमितताओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रशासनिक लापरवाही और अक्षमता की पराकाष्ठा को भी दर्शाती है। जांच में यह भी सामने आया है कि विभाग के पास कई परियोजनाओं के लिए नक्शे, एस्टीमेट (अनुमानित लागत) और मानचित्र जैसे आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध ही नहीं थे। यह एक गंभीर प्रशासनिक चूक है, जो सीधे तौर पर सरकारी कार्यप्रणाली पर सवाल उठाती है।

यह कल्पना करना मुश्किल है कि ₹50 करोड़ से अधिक के काम बिना उचित नियोजन, विस्तृत नक्शे और लागत अनुमान के कैसे संचालित किए गए। बिना इन बुनियादी दस्तावेजों के, यह सुनिश्चित करना असंभव है कि काम मानक गुणवत्ता के अनुसार हुआ है, या आवंटित धन का सही उपयोग किया गया है। यह दर्शाता है कि विभाग में जवाबदेही की भारी कमी थी और अधिकारियों ने मनमानी तरीके से काम को अंजाम दिया। यह स्थिति न केवल वित्तीय अनियमितताओं को बढ़ावा देती है, बल्कि यह सरकारी परियोजनाओं की गुणवत्ता और दीर्घकालिक स्थिरता पर भी नकारात्मक प्रभाव डालती है। बिना उचित कागजी कार्रवाई के काम करना भ्रष्टाचार को छुपाने का एक आसान तरीका भी हो सकता है, क्योंकि बाद में इसकी ऑडिटिंग या जांच करना बेहद मुश्किल हो जाता है।

सामाजिक कार्यकर्ता बी. केमाला की निर्णायक भूमिका: भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल 
इस पूरे भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने में रीवा के सामाजिक कार्यकर्ता और अधिवक्ता बी. केमाला की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण और निर्णायक रही है। उन्होंने न केवल इस बड़े घोटाले को उजागर करने का साहस दिखाया, बल्कि सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम का प्रभावी ढंग से उपयोग करके इसके ठोस सबूत भी जुटाए। केमाला ने सरकारी विभागों से अभिलेख और नोटशीट्स हासिल कर उन अनियमितताओं को सामने लाया, जिन्हें छिपाने का प्रयास किया जा रहा था।

लोकतंत्र में, ऐसे सक्रिय और जागरूक नागरिक भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ होते हैं। बी. केमाला ने केवल जानकारी जुटाने तक ही सीमित नहीं रहे, बल्कि उन्होंने इस मामले को कानूनी रूप से आगे बढ़ाया। उन्होंने इस भ्रष्टाचार के सबूतों के साथ आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (EOW), भोपाल और रीवा में शिकायत दर्ज कराई है। यह उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है कि वह केवल भ्रष्टाचार को उजागर करना नहीं चाहते, बल्कि दोषियों को सजा दिलवाना चाहते हैं। उनकी यह पहल अन्य नागरिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी ऐसे मामलों में आवाज उठाने के लिए प्रेरित करती है। यह साबित करता है कि RTI जैसे कानून आम लोगों के हाथों में कितने शक्तिशाली उपकरण हो सकते हैं, अगर उनका सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए।

EOW के दर पर मामला: क्या होगा 'महा-भ्रष्टाचारियों' का? 
रीवा और शहडोल संभाग में ₹50 करोड़ से अधिक के इस 'महा-भ्रष्टाचार' का मामला अब आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (EOW) के दरवाजे पर पहुंच गया है। सामाजिक कार्यकर्ता बी. केमाला ने सभी संबंधित अभिलेखों और सबूतों के साथ EOW भोपाल और रीवा दोनों कार्यालयों में शिकायत दर्ज कराई है। EOW जैसी शीर्ष जांच एजेंसी की भूमिका ऐसे बड़े वित्तीय घोटालों की जांच में अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। अब यह EOW की जिम्मेदारी है कि वह इस मामले की गहन, निष्पक्ष और त्वरित जांच करे।

जांच में शामिल सभी पहलुओं, जैसे टेंडर पुनरीक्षण की प्रक्रिया, ठेकेदार को दिए गए लाभ, प्रशासनिक लापरवाही और संभावित राजनीतिक हस्तक्षेप की बारीकी से पड़ताल की जानी चाहिए। यदि आरोप सही पाए जाते हैं, तो दोषियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई करना आवश्यक है, चाहे वे कितने भी प्रभावशाली क्यों न हों। EOW द्वारा की गई प्रभावी कार्रवाई ही यह संदेश देगी कि भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और कानून सभी के लिए समान है। यह मामला EOW के लिए एक बड़ी परीक्षा है कि वह ऐसे हाई-प्रोफाइल भ्रष्टाचार के मामलों से कैसे निपटती है। क्या इन 'महा-भ्रष्टाचारियों' पर बड़ी गाज गिरेगी? इसका जवाब EOW की जांच और न्यायिक प्रक्रिया के परिणाम पर निर्भर करेगा।

क्षेत्रीय भ्रष्टाचार का व्यापक जाल और उसका प्रभाव 
यह भ्रष्टाचार केवल रीवा शहर तक सीमित नहीं है, बल्कि रीवा संभाग के साथ-साथ सहरोग (शहडोल) जैसे कई अन्य इलाकों में भी फैला हुआ है। यह दर्शाता है कि कैसे भ्रष्टाचार का जाल अक्सर क्षेत्रीय स्तर पर व्यापक रूप से फैल जाता है, जिससे कई परियोजनाएं और क्षेत्र प्रभावित होते हैं। इस तरह का व्यापक क्षेत्रीय भ्रष्टाचार कई गंभीर नकारात्मक प्रभाव डालता है:

विकास पर असर: सरकारी परियोजनाओं के लिए आवंटित धन का दुरुपयोग होने से विकास कार्य रुक जाते हैं या उनकी गुणवत्ता प्रभावित होती है। इससे सड़कें, बिजली आपूर्ति, और अन्य महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजनाएं अधूरी रह जाती हैं या खराब गुणवत्ता की बनती हैं।
जनता को नुकसान: जब सरकारी धन भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है, तो जनता को उन योजनाओं और सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पाता जिनके लिए वह पैसा आवंटित किया गया था। इसका सीधा असर आम आदमी के जीवन स्तर पर पड़ता है।
आर्थिक असमानता: भ्रष्टाचार अक्सर कुछ चुनिंदा लोगों को गैरकानूनी तरीके से अमीर बनाता है, जिससे समाज में आर्थिक असमानता बढ़ती है।
सार्वजनिक विश्वास में कमी: जब लोग देखते हैं कि सरकारी तंत्र में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हो रहा है, तो उनका सरकार और प्रशासन में विश्वास कम हो जाता है। यह नागरिक भागीदारी और लोकतंत्र के लिए भी हानिकारक है।
कानून-व्यवस्था के लिए चुनौती: भ्रष्टाचार का व्यापक होना कानून-व्यवस्था के लिए भी एक चुनौती बन सकता है, क्योंकि यह संगठित अपराध और अवैध गतिविधियों को बढ़ावा देता है।

यह मामला मध्य प्रदेश के विभिन्न संभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार की एक झलक पेश करता है और यह समझने में मदद करता है कि कैसे यह सरकारी तंत्र को भीतर से खोखला कर रहा है।

निष्कर्ष: जवाबदेही और पारदर्शिता की तत्काल आवश्यकता 
रीवा और शहडोल संभाग में लोक निर्माण विभाग और विद्युत यांत्रिकी विभाग में उजागर हुआ यह ₹50 करोड़ का 'महा-भ्रष्टाचार' सरकारी व्यवस्था की विश्वसनीयता पर एक गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है। टेंडर प्रक्रिया का सुनियोजित दुरुपयोग, नियमों की सरासर अनदेखी, और राजनीतिक हस्तक्षेप के संकेत इस भ्रष्टाचार को और भी गंभीर बनाते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता बी. केमाला द्वारा सूचना के अधिकार के प्रभावी इस्तेमाल से यह मामला सार्वजनिक हुआ है, जिसने जांच एजेंसियों को सक्रिय होने के लिए मजबूर किया है।

यह प्रकरण स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए पूर्ण पारदर्शिता, कठोर जवाबदेही, गहन जांच और त्वरित न्यायिक कार्रवाई कितनी अनिवार्य है। सरकारी विभागों को अपने कामकाज में अधिक पारदर्शिता लाने और नियमों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। साथ ही, प्रशासनिक प्रक्रियाओं में सुधार और राजनीतिक दबाव से बचाव के लिए एक मजबूत और निष्पक्ष व्यवस्था स्थापित करनी होगी, ताकि सरकारी धन का सही और प्रभावी उपयोग हो सके और अंततः जनता को विकास का वास्तविक लाभ मिल सके। इस मामले की गंभीरता को देखते हुए, उच्च स्तरीय जांच, सभी दोषियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई, और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन की दिशा में ठोस कदम उठाना वर्तमान समय की सबसे बड़ी मांग है। बी. केमाला जैसे सक्रिय नागरिक और सूचना के अधिकार का प्रभावी इस्तेमाल इस दिशा में एक सकारात्मक और प्रेरक भूमिका निभा सकते हैं, जो बेहतर और जवाबदेह शासन की नींव तैयार करता है।

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