वाह रे रीवा! सरेआम तमाशाबीन बनी भीड़: महिला ने हिम्मत दिखाई, समाज बना नपुंसक, मनचले बेखौफ, पुलिस निष्क्रिय: कौन है शहर में लूट और छेड़खानी के बढ़ते ग्राफ का असली जिम्मेदार?
ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) मध्यप्रदेश के रीवा शहर में महिला सुरक्षा की स्थिति एक बार फिर सबके सामने उजागर हुई है। एक तरफ 'डबल इंजन' सरकार सुरक्षा के बड़े-बड़े दावे करती है, वहीं दूसरी तरफ शहर के सबसे भीड़भाड़ वाले इलाके रीवा के अस्पताल चौराहे पर एक युवक ने सरेआम एक महिला के साथ अभद्रता की। यह घटना न केवल कानून-व्यवस्था की धज्जियां उड़ाती है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा करती है कि जब शहर की हर गली और चौराहे पर 'तीसरी आँख' यानी सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, तो क्यों पुलिस सक्रिय नहीं होती और ऐसे अपराधी क्यों इतने बेखौफ हैं?
हिम्मत का प्रदर्शन: बीच सड़क मनचले की पिटाई और तमाशबीन समाज
घटना की भयावहता के बावजूद, महिला ने जो साहस दिखाया, वह पूरे समाज के लिए एक संदेश है। डरकर भागने के बजाय, महिला ने मौके पर ही मनचले को चप्पलों से पीट दिया।
घटना का विवरण: तमाशबीन भीड़ के बीच महिला का साहस
यह पूरी घटना दिन के उजाले में हुई, जब अस्पताल चौराहा अपने व्यस्ततम समय में था। दुकानों, यातायात और राहगीरों से भरे इस चौराहे पर युवक ने महिला से अभद्रता की।
साहस का पल: महिला ने तुरंत पलटवार किया और अपनी आत्मरक्षा के लिए चप्पलों का उपयोग किया।
समाज की विफलता: सबसे दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह रहा कि आसपास खड़े लोग केवल तमाशबीन बने रहे। किसी ने हस्तक्षेप करने या तुरंत पुलिस को सूचना देने का साहस क्यों नहीं दिखाया?
वायरल वीडियो का प्रभाव: वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद ही पुलिस हरकत में आई, जिससे यह स्पष्ट होता है कि पुलिस की सक्रियता का आधार अपराध नहीं, बल्कि वायरल फुटेज बन चुका है।
कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल: 'तीसरी आँख' की निगरानी की विफलता
यह मामला सीधे तौर पर सिटी कोतवाली थाना क्षेत्र का है। पुलिस का दावा है कि उन्होंने वीडियो के आधार पर आरोपी की पहचान शुरू कर दी है। लेकिन यह सवाल उठता है कि अगर पुलिस इतनी ही सक्रिय है, तो मनचले सरेआम अभद्रता करने की हिम्मत कैसे करते हैं?
सीसीटीवी की तीसरी आँख: निगरानी की विफलता क्यों?
रीवा शहर में सुरक्षा और अपराध नियंत्रण के लिए जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। इन्हें 'तीसरी आँख' कहा जाता है, जो चौबीसों घंटे निगरानी रखती है।
- जिम्मेदारी कौन लेगा: जब अस्पताल चौराहे जैसे अति-संवेदनशील इलाके में सीसीटीवी लगे होते हुए भी दिन दहाड़े अभद्रता होती है, तो इसका सीधा मतलब है कि सीसीटीवी की निगरानी नहीं होती। अगर निगरानी होती, तो पुलिस को वायरल वीडियो का इंतज़ार करने की ज़रूरत क्यों पड़ती?
- पुलिस सिस्टम की निष्क्रियता: पुलिस का कंट्रोल रूम कहाँ गया था? क्या सीसीटीवी की निगरानी सिर्फ दिखावा है? इस लापरवाही का सीधा परिणाम यह होता है कि अपराधियों में पुलिस का डर खत्म हो जाता है।
जिम्मेदारी किसकी? पुलिस सिस्टम, प्रशासन या सरकार?
जिम्मेदार इकाई: पुलिस सिस्टम (अधीक्षक)। विफलता का बिंदु: सीसीटीवी निगरानी में लापरवाही, वायरल वीडियो के बाद हरकत में आना। सीधा प्रश्न: पुलिस सक्रिय क्यों नहीं होती? इस निष्क्रियता का जिम्मेदार कौन है?
- जिम्मेदार इकाई: स्थानीय प्रशासन। विफलता का बिंदु: भीड़भाड़ वाले इलाकों में पुलिस पेट्रोलिंग और बीट प्रणाली का फेल होना। सीधा प्रश्न: पुलिस चौकी/बीट अधिकारी कहाँ थे जब घटना हुई?
- जिम्मेदार इकाई: राज्य सरकार। विफलता का बिंदु: महिला सुरक्षा के दावों और ज़मीनी हकीकत में बड़ा अंतर। सीधा प्रश्न: डबल इंजन सरकार के राज में महिलाओं से दिन दहाड़े वारदात क्यों हो रही हैं?
दिन दहाड़े अपराध और 'डबल इंजन' सरकार
सरकार बड़े-बड़े दावे करती है, लेकिन हकीकत यह है कि अस्पताल चौराहे पर सरेआम छेड़खानी की घटना यह दर्शाती है कि अपराधियों को न तो प्रशासन का भय है और न ही कानून का डर। पुलिस सिस्टम की ढिलाई का सीधा फायदा मनचले उठा रहे हैं।
निष्कर्ष और समाज को संदेश: अब चुप्पी नहीं
रीवा की यह घटना पूरे समाज के लिए एक चेतावनी है। महिला ने साहस दिखाया, लेकिन एक सभ्य समाज की पहचान यह होती है कि उसे अकेले नहीं लड़ना पड़े।
- पुलिस को संदेश: शिकायत मिलने का इंतजार न करें। वायरल वीडियो और सीसीटीवी फुटेज के आधार पर आरोपी पर तुरंत और सख्त कार्रवाई करें। पुलिस अधिकारियों ने जो 'कड़ी कानूनी कार्रवाई' का आश्वासन दिया है, वह केवल कोरा आश्वासन नहीं होना चाहिए।
- समाज को संदेश: ऐसी घटनाओं पर तमाशबीन बनना बंद करें। आपका एक हस्तक्षेप किसी महिला की जान या सम्मान बचा सकता है।
महिलाओं को भी डरने के बजाय आवाज़ उठानी चाहिए और तुरंत पुलिस की मदद लेनी चाहिए। तभी शहर में महिला सुरक्षा सुनिश्चित हो पाएगी।