रीवा बना निजी अस्पतालों का कब्रगाह? "अब सिर्फ इलाज नहीं, जवाबदेही भी दो! मौत पर अस्पतालों को जेल भेजेगा कानून!"

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा। रीवा जिले के प्रतिष्ठित सेंगर ट्रॉमा सेंटर में एक महिला की मौत ने जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। आरोप है कि इलाज के दौरान लापरवाही बरती गई और गलत इंजेक्शन लगाए जाने से महिला की जान चली गई। परिजनों ने इसे "मेडिकल नेग्लिजेंस से हुई हत्या" करार दिया है।
क्या है पूरा मामला?जानकारी के मुताबिक, सरोज वर्मा नाम की महिला का पैर फिसलने से फ्रैक्चर हो गया था। उन्हें इलाज के लिए रीवा के सेंगर ट्रॉमा सेंटर लाया गया, जहां डॉक्टरों ने ऑपरेशन की सलाह दी। परिजनों के मुताबिक ऑपरेशन के तुरंत बाद महिला की तबीयत अचानक बिगड़ गई। जब उसे सांस लेने में परेशानी हुई, तो डॉक्टरों ने एक इंजेक्शन दिया—और कुछ ही मिनटों में महिला की मौत हो गई।
परिजनों के आरोप क्या हैं?
परिजनों का दावा है कि सरोज को गलत इंजेक्शन लगाया गया, जिसकी वजह से उसकी मौत हुई। उनका आरोप है कि:
- अस्पताल ने मरीज की गंभीर स्थिति को छुपाया।
- ऑपरेशन के बाद बिना मॉनिटरिंग के महिला को छोड़ दिया गया।
- पैसे वसूलने की जल्दी में डॉक्टरों ने लापरवाही बरती।
पहले भी कई अस्पतालों में लापरवाही से गई जानें
रीवा जिले में ये पहली घटना नहीं है। पूर्व में कई नामचीन अस्पतालों में भी इसी तरह की घटनाएं सामने आ चुकी हैं, जिनमें मरीजों की जान चली गई थी।
गलत इंजेक्शन देने की घटनाएं इन अस्पतालों में हो चुकी हैं:
प्रार्थना हॉस्पिटल – पोस्ट डिलीवरी में दर्द का इंजेक्शन लगते ही महिला की मौत
बिहान हॉस्पिटल – गलत एंटीबायोटिक से महिला कोमा में गई
मिनर्वा हॉस्पिटल – एनाफिलेक्सिस से हुई मौत, कोई ICU सुविधा नहीं थी
संजय गांधी अस्पताल – जांच में खुलासा, बिना परीक्षण सीधे इंजेक्शन दिया गया
श्रीराम हॉस्पिटल – इंजेक्शन से रिएक्शन, बच्चे की मौत
जनसेवा हॉस्पिटल – एलर्जी की सूचना के बावजूद दिया गया दवा
आशा हॉस्पिटल – बिना डॉक्टर के नर्स ने इंजेक्शन लगाया
जीवन ज्योति अस्पताल – डुप्लीकेट दवा से रिएक्शन
साहू मेडिकल हॉस्पिटल – इंजेक्शन से हाइपोवोल्मिक शॉक
नई जीवन अस्पताल – ऑक्सीजन नहीं दी, इंजेक्शन के बाद सांस बंद
इन घटनाओं की रिपोर्ट होने के बावजूद, अब तक न तो लाइसेंस रद्द किए गए न ही जिम्मेदारों पर सख्त कार्रवाई हुई। यह दर्शाता है कि निजी अस्पतालों के लिए कानून या तो लाचार है, या उसे लागू करने की इच्छाशक्ति प्रशासन में नहीं है।
हंगामा और पुलिस हस्तक्षेप
घटना की खबर फैलते ही मृतका के परिजनों और स्थानीय लोगों की भीड़ अस्पताल में इकट्ठा हो गई। नाराज़ परिजनों ने अस्पताल परिसर में जमकर हंगामा किया, शीशे तोड़े और नारेबाजी की। पुलिस मौके पर पहुंची और स्थिति को नियंत्रित किया। परिजनों ने अस्पताल प्रबंधन के खिलाफ FIR दर्ज कराने की मांग की है।
स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल
यह कोई पहला मामला नहीं है। रीवा में बीते कुछ महीनों में कई बार निजी अस्पतालों की लापरवाही से मौतों की खबरें सामने आ चुकी हैं। पिछले महीने भी कथित तौर पर गलत इंजेक्शन लगने से पांच महिलाओं की याददाश्त चली गई थी।
प्रशासन क्या कर रहा है?
अब सवाल यह उठता है कि जब स्वास्थ्य मंत्री का गृह जिला खुद रीवा है, तो फिर यहां इस तरह की घटनाएं क्यों बार-बार हो रही हैं? क्या प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग निजी अस्पतालों की जवाबदेही तय करेगा, या ये मौतें आंकड़ों में दबी रह जाएंगी?
परिजनों के गंभीर आरोप:
- गलत इंजेक्शन दिया गया जिसकी जानकारी परिजनों को नहीं दी गई।
- महिला की हालत बिगड़ने के बावजूद ICU या लाइफ सपोर्ट नहीं दिया गया।
- इलाज से पहले किसी प्रकार की सहमति (Informed Consent) नहीं ली गई।
- महिला को बिना किसी विशेषज्ञ की निगरानी के ऑपरेशन के तुरंत बाद इंजेक्शन देना, स्पष्ट चिकित्सीय लापरवाही की श्रेणी में आता है।
कानूनी पक्ष:
- यह मामला भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट, तथा आईपीसी की धारा 304-A (लापरवाही से मृत्यु) के अंतर्गत संज्ञेय अपराध बनता है।
- परिजनों ने संबंधित थाने में एफआईआर दर्ज कराने के लिए लिखित शिकायत दी है।
- CMHO (मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी) ने जांच के आदेश दे दिए हैं।
अस्पताल प्रबंधन की चुप्पी:
मीडिया द्वारा बार-बार संपर्क करने पर अस्पताल प्रबंधन ने कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया। यह सूचना का छुपाव (Suppression of Information) माना जा सकता है, जो कि NABH (नेशनल एक्रिडिटेशन बोर्ड फॉर हॉस्पिटल्स) की गाइडलाइंस का उल्लंघन है।
प्रशासन के लिए चेतावनी:
रीवा स्वास्थ्य मंत्री का गृह जिला होने के बावजूद यदि निजी अस्पताल इस तरह बिना जवाबदेही के काम कर रहे हैं, तो यह एक गहरी प्रशासनिक विफलता की ओर इशारा करता है। अब जरूरत है कि:
- जिले के सभी निजी अस्पतालों का ऑडिट हो।
- बिना लाइसेंस, अप्रशिक्षित स्टाफ और फर्जी डॉक्टरों पर कड़ी कार्रवाई की जाए।
- मरीज की मौत की जांच के लिए स्वतंत्र चिकित्सीय बोर्ड गठित किया जाए।
जब इलाज के नाम पर लापरवाही से छिन जाए जान: कौन-सी धाराएं लागू होती हैं?
अगर किसी निजी अस्पताल में डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ या प्रबंधन की लापरवाही (Medical Negligence) से किसी मरीज की मृत्यु होती है — तो यह न सिर्फ नैतिक अपराध है, बल्कि यह दंडनीय कानूनी अपराध भी है।
कोर्ट की नजर में क्या अपराध बनता है?
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 304-A
"किसी व्यक्ति की मृत्यु यदि किसी अन्य की लापरवाही या बिना सावधानीपूर्वक किए गए कार्य से होती है, तो यह अपराध माना जाता है।"
सजा: 2 वर्ष तक की जेल, या जुर्माना, या दोनों।
धारा 336, 337, 338 (मानव जीवन को खतरे में डालना)
- जानबूझकर ऐसी हरकत करना जिससे किसी की जान या अंग को खतरा हो।
- इसमें सजा 3 महीने से लेकर 2 साल तक हो सकती है, जुर्माने के साथ।
- भ्रष्टाचार व धोखाधड़ी (धारा 420) यदि अस्पताल झूठे दावे कर इलाज का दिखावा करे।
कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट, 2019 के तहत चिकित्सा सेवाएं भी "सेवा" की श्रेणी में आती हैं
यदि लापरवाही साबित होती है, तो मरीज या उसके परिजन उपभोक्ता अदालत में मुआवजा मांग सकते हैं — जिसकी सीमा लाखों से लेकर करोड़ों तक हो सकती है।
निष्कर्ष:
हर मौत सिर्फ एक आंकड़ा नहीं होती।
सरोज वर्मा की मौत उन तमाम गरीब, अनपढ़ और भोले-भाले मरीजों की कहानी है जो प्राइवेट अस्पतालों की चमक-दमक के पीछे छुपे लालच का शिकार हो रहे हैं। अब वक्त आ गया है कि प्रशासन सख्त हो और ऐसे अस्पतालों को या तो सुधार दे या बंद करे।