रीवा में 'विवादित' अफसर का 'ऑपरेशन क्लीन': एक नोटिस ने रीवा के शिक्षा विभाग में हड़कंप मचाया, 18 प्राचार्यों को मिला 'अल्टीमेटम'

पौधरोपण में उदासीनता: सरकारी निर्देशों की अनदेखी का मामला, क्या होता है जब अधिकारी लापरवाह हों?
ऋतुराज द्विवेदी, रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा में शिक्षा व्यवस्था की बागडोर संभालने वाले प्राचार्यों पर इन दिनों संकट के बादल मंडरा रहे हैं। सरकारी विद्यालयों में पौधरोपण जैसे महत्वपूर्ण कार्य को लेकर उनकी उदासीनता और लापरवाही अब उन्हें भारी पड़ रही है। विकासखंड शिक्षा अधिकारी (बीईओ) आकांक्षा सोनी ने एक साथ 18 प्राचार्यों को नोटिस जारी कर इस लापरवाही पर तीखे सवाल उठाए हैं। यह कार्रवाई दिखाती है कि अगर सरकारी अधिकारी अपने निर्देशों के प्रति गंभीर हों, तो क्या होता है जब अधिकारी लापरवाह हों। बीईओ का यह कदम न सिर्फ इन प्राचार्यों के लिए एक सबक है, बल्कि यह रीवा के शिक्षा विभाग में एक नई जवाबदेही की लहर लाने का भी संकेत है।
बीईओ आकांक्षा सोनी का सख्त रुख: दिग्गज प्राचार्यों को भी नहीं बख्शा
बीईओ आकांक्षा सोनी, जिन्हें रीवा के शिक्षा जगत में अपने सख्त रवैये के लिए जाना जाता है, उन्होंने इस बार एक ऐसा कदम उठाया है जिसने पूरे विभाग में हलचल मचा दी है। उन्होंने जिन 18 प्राचार्यों को नोटिस जारी किया है, उनमें कुछ ऐसे दिग्गज नाम भी शामिल हैं, जिन्हें शिक्षा विभाग में वर्षों का अनुभव है। पूर्व सीईओ आर.एल. दीपांकर और मार्तंड स्कूल क्रमांक 2 के प्राचार्य प्रदीप सिंह जैसे वरिष्ठ अधिकारियों को भी नोटिस मिला है, जो दर्शाता है कि बीईओ ने इस मामले में किसी भी तरह का पक्षपात नहीं किया है।
नोटिस प्राप्त करने वाले अन्य प्राचार्यों में शामिल हैं:
मार्तंड स्कूल क्रमांक 3 - रामलल्लू दीपांकर
मार्तंड स्कूल क्रमांक 2 - प्रदीप सिंह
खैरा चोरहटा प्राचार्य - बृज बिहारी मिश्रा
भोलगढ़ प्राचार्य - बीके शुक्ला
भुंडहा प्राचार्य - प्रवीण कुमारी शुक्ला
करहिया नंबर 1 - राजकुमार पाण्डेय
चोरहटा प्राचार्य - श्रीमती मधु सिंह
रुपौली प्राचार्य - आरजे चतुर्वेदी
गवर्नमेंट स्कूल क्रमांक 2 - राजेन्द्र मिश्रा
अजगरहा प्राचार्य - राजेन्द्र सिंह
दादर स्कूल प्राचार्य - राकेश द्विवेदी
रहट प्राचार्य - गिरीश मिश्रा
तमरा प्राचार्य - प्रमोद सिंह
निपनिया प्राचार्य - अनिरुद्ध सोकत
कन्या घोघर प्राचार्य - फैज मोइन सिद्दकी
भटलो प्राचार्य - पीताम्बर पाण्डेय
पाण्डेनटोला प्राचार्य - विजयपाल सिंह
डिहिया प्राचार्य - बीके पाठक
यह कदम दिखाता है कि बीईओ अब सिर्फ कागजी कार्रवाई नहीं, बल्कि ज़मीनी स्तर पर बदलाव लाने की कोशिश कर रही हैं।
नोटिस में क्या कहा गया: तीन दिन का अल्टीमेटम और कड़ी कार्रवाई की चेतावनी
बीईओ द्वारा जारी किए गए नोटिस में प्राचार्यों की लापरवाही को स्पष्ट रूप से उजागर किया गया है। नोटिस में कहा गया है कि विभिन्न माध्यमों से बार-बार निर्देश दिए जाने के बावजूद, विद्यालयों में पौधरोपण की स्थिति काफी कम है और ईको क्लब पोर्टल पर जानकारी अपलोड नहीं की गई है। यह बताता है कि प्राचार्यों ने अपने कार्य के प्रति घोर उदासीनता दिखाई है।
नोटिस में प्राचार्यों को तीन दिन के अंदर इस लापरवाही पर लिखित स्पष्टीकरण मांगा गया है। साथ ही, उन्हें चेतावनी भी दी गई है कि अगर उनका जवाब संतोषजनक नहीं होता है या वे जवाब देने में विफल रहते हैं, तो उनके खिलाफ एकतरफा अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। यह अल्टीमेटम एक सख्त संदेश देता है कि अब लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
क्यों महत्वपूर्ण है पौधरोपण और इको क्लब पोर्टल पर जानकारी अपलोड करना?
कई लोगों के मन में यह सवाल उठ सकता है कि पौधरोपण न करने पर इतनी बड़ी कार्रवाई क्यों हो रही है। इसका जवाब सिर्फ पर्यावरण संरक्षण तक सीमित नहीं है। सरकारी स्कूलों में पौधरोपण और उसकी निगरानी कई सरकारी योजनाओं का हिस्सा हैं, जिनका उद्देश्य बच्चों को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाना है। इको क्लब पोर्टल क्या है? यह एक ऑनलाइन मंच है जहाँ स्कूलों को अपने द्वारा किए गए पर्यावरण संबंधी कार्यों, जैसे पौधरोपण, जल संरक्षण, और कचरा प्रबंधन की जानकारी अपलोड करनी होती है। यह जानकारी केंद्र और राज्य सरकारों को विद्यालयों के प्रयासों का मूल्यांकन करने में मदद करती है और भविष्य के लिए योजना बनाने में सहायता करती है। जानकारी अपलोड न करना न सिर्फ निर्देशों का उल्लंघन है, बल्कि यह पारदर्शिता की कमी को भी दर्शाता है।
क्या स्कूलों में पौधरोपण सिर्फ कागजी कार्रवाई बनकर रह गया है?
रीवा के ये हालात एक व्यापक समस्या की ओर इशारा करते हैं: क्या सरकारी योजनाएं सिर्फ कागजी कार्रवाई बनकर रह गई हैं? अक्सर, स्कूल प्रशासन पौधरोपण के लिए आवंटित फंड का उपयोग तो कर लेता है, लेकिन पौधों की देखभाल नहीं की जाती और वे सूख जाते हैं। इस तरह की घटनाओं से न सिर्फ सरकारी धन की बर्बादी होती है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण जैसे महत्वपूर्ण उद्देश्य भी प्रभावित होते हैं। रीवा के प्राचार्यों को नोटिस क्यों मिला, इसका सीधा जवाब उनकी इस उदासीनता में निहित है, जो शायद सिर्फ कागजों पर योजनाओं को पूरा करने की आदत का नतीजा है। यह घटना शिक्षा विभाग को आत्ममंथन करने का अवसर देती है कि कैसे वास्तविक बदलाव लाया जाए।
प्रशासन की सख्ती का क्या होगा परिणाम?
यह देखना दिलचस्प होगा कि बीईओ की इस सख्ती का क्या परिणाम निकलता है। क्या 18 प्राचार्य संतोषजनक स्पष्टीकरण दे पाएंगे? या फिर उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की तलवार चलेगी? यह कार्रवाई एक नजीर बन सकती है, जो भविष्य में अन्य प्राचार्यों को भी अपने कर्तव्यों के प्रति अधिक गंभीर बनाएगी। क्या होता है जब अधिकारी लापरवाह हों, यह अब सिर्फ एक प्रश्न नहीं, बल्कि एक हकीकत बनने जा रहा है। यह घटना दिखाती है कि अगर प्रशासन दृढ़ संकल्पित हो, तो वह सिस्टम की खामियों को दूर कर सकता है और जवाबदेही तय कर सकता है।