रीवा में 'फर्जी वोटिंग' का बवाल! सांसद बोले- श्रीनिवास तिवारी एक कमरे से 1000 वोट डलवाते थे

 
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ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) मध्यप्रदेश में मतदाता सूची में कथित अनियमितताओं और फर्जी वोटिंग को लेकर जारी बहस के बीच, रीवा से भाजपा सांसद जनार्दन मिश्रा का एक बयान सामने आया है जिसने पूरे प्रदेश की राजनीति में एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। रविवार को एक सार्वजनिक सभा में सांसद मिश्रा ने कांग्रेस के दिवंगत दिग्गज नेता और मध्यप्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने दावा किया कि तिवारी फर्जी वोटिंग के जरिए चुनाव जीता करते थे। यह बयान रीवा की राजनीति में एक ऐसे समय में आया है, जब सत्ताधारी पार्टी खुद को एकजुट दिखाने की कोशिश कर रही है। सांसद का यह बयान न केवल कांग्रेस के खिलाफ एक राजनीतिक हमला है, बल्कि यह भाजपा के अंदर की गुटबाजी को भी साफ-साफ उजागर करता है।

आरोप और प्रतिक्रिया: सांसद जनार्दन मिश्रा ने क्या बयान दिया और इसका क्या मतलब है?
सांसद जनार्दन मिश्रा अपने बेबाक और अक्सर विवादास्पद बयानों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने रविवार को एक कार्यक्रम में बोलते हुए, स्वर्गीय श्रीनिवास तिवारी पर सीधा हमला बोला। उन्होंने कहा, "श्रीनिवास तिवारी के जमाने में एक कमरे में 1000 वोट होते थे।" उन्होंने इस बात को एक नहीं, बल्कि दो बार दोहराया। उनके इस बयान का सीधा मतलब यह था कि स्वर्गीय तिवारी फर्जी वोटिंग की मदद से चुनाव जीतते थे। यह आरोप ऐसे समय में आया है जब देश भर में मतदाता सूचियों की शुद्धता पर बहस चल रही है।

सांसद जनार्दन मिश्रा ने क्या बयान दिया और इसका क्या मतलब है? इस बयान का राजनीतिक गलियारों में गहरा असर हुआ है। एक तरफ, यह कांग्रेस के एक सम्मानित और दिवंगत नेता पर सीधे तौर पर हमला है, वहीं दूसरी तरफ यह एक भाजपा नेता द्वारा यह स्वीकार करना है कि चुनावी प्रक्रियाओं में धांधली होती रही है। यह बयान सोमवार को सोशल मीडिया पर वायरल होते ही रीवा की राजनीति में भूचाल आ गया। यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि सांसद मिश्रा पहले भी श्रीनिवास तिवारी के खिलाफ बयान दे चुके हैं, जिससे यह साफ हो जाता है कि यह कोई अचानक की गई टिप्पणी नहीं है, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा हो सकती है।

अंदरूनी कलह: भाजपा सांसद और विधायक में विवाद क्यों हो रहा है?
इस विवाद की जड़ में भाजपा के ही दो नेताओं के बीच चल रही तनातनी है। यह विवाद सांसद जनार्दन मिश्रा और रीवा से भाजपा विधायक सिद्धार्थ तिवारी के बीच का है। सिद्धार्थ तिवारी स्वर्गीय श्रीनिवास तिवारी के पोते हैं। जब भी सांसद मिश्रा उनके दादा पर टिप्पणी करते हैं, तो विधायक सिद्धार्थ तिवारी को इससे असहजता होती है।

भाजपा सांसद और विधायक में विवाद क्यों हो रहा है? इसके कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण यह है कि जनार्दन मिश्रा और सिद्धार्थ तिवारी दोनों ही रीवा की राजनीति में अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहते हैं। विधायक तिवारी अपनी पारिवारिक राजनीतिक विरासत के दम पर आगे बढ़ रहे हैं, जबकि सांसद मिश्रा अपनी पुरानी छवि और जमीनी पकड़ के आधार पर राजनीति करते हैं। यह दोनों नेताओं के बीच एक अघोषित प्रतिस्पर्धा है, जो समय-समय पर सार्वजनिक बयानों के जरिए सामने आ जाती है। यह विवाद पहली बार नहीं है। 2024 में एक ओवरब्रिज के लोकार्पण कार्यक्रम में भी सांसद मिश्रा ने श्रीनिवास तिवारी पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि उनके समय में सड़कों की हालत खराब थी, फिर भी लोग उन्हें ‘दैयू’ (भगवान) कहते थे। यह दिखाता है कि दोनों नेताओं के बीच की खाई काफी गहरी है।

राजनीतिक विरासत और पारिवारिक सम्मान: स्वर्गीय श्रीनिवास तिवारी को बार-बार क्यों घसीटा जा रहा है?
सांसद मिश्रा द्वारा स्वर्गीय श्रीनिवास तिवारी को निशाना बनाना केवल राजनीतिक हमला नहीं है, बल्कि यह विधायक सिद्धार्थ तिवारी के लिए एक निजी हमला भी है। विधायक तिवारी ने पहले भी इस तरह की टिप्पणियों पर कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने कहा था, "अगर सांसद जी को मुझसे कोई व्यक्तिगत समस्या है, तो मुझे बताएं। मेरे स्वर्गीय दादा को बार-बार टारगेट करना अशोभनीय है।"

स्वर्गीय श्रीनिवास तिवारी को बार-बार क्यों घसीटा जा रहा है? इसके पीछे का मकसद साफ है। सांसद मिश्रा सिद्धार्थ तिवारी की राजनीतिक विरासत और उनकी पारिवारिक पहचान पर सवाल खड़ा करके उन्हें कमजोर करना चाहते हैं। श्रीनिवास तिवारी का नाम रीवा में एक कद्दावर और सम्मानित नेता के रूप में लिया जाता है, और उनके नाम पर हमला करके सांसद मिश्रा विधायक तिवारी की राजनीतिक नींव को हिलाना चाहते हैं। हालांकि, विधायक सिद्धार्थ तिवारी ने अपनी प्रतिक्रिया से यह साफ कर दिया है कि वह अपने दादा के सम्मान को लेकर कोई समझौता नहीं करेंगे। यह विवाद भाजपा की आंतरिक गुटबाजी का एक स्पष्ट उदाहरण है, जिसे अब कांग्रेस भुनाने की कोशिश कर रही है।

विपक्ष का वार: पार्टी की अंदरूनी लड़ाई पर कांग्रेस कैसे हमला कर रही है?
इस पूरे मामले पर मध्यप्रदेश कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने भी भाजपा को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने सांसद मिश्रा के बयान को भाजपा की अंदरूनी कलह और दोहरे चरित्र का उदाहरण बताया।

पार्टी की अंदरूनी लड़ाई पर कांग्रेस कैसे हमला कर रही है? जीतू पटवारी ने इस मौके को भुनाते हुए सोशल मीडिया पर एक पोस्ट लिखा। उन्होंने लिखा कि एक तरफ भाजपा मतदाता सूचियों में धांधली की बात करती है, वहीं दूसरी तरफ उसके सांसद खुद स्वीकार कर रहे हैं कि श्रीनिवास तिवारी फर्जी वोटिंग से चुनाव जीतते थे। कांग्रेस का आरोप है कि यह भाजपा की आंतरिक गुटबाजी और विरोधाभासों का प्रमाण है। कांग्रेस इसे भाजपा की कथनी और करनी में अंतर बताकर जनता के बीच ले जा रही है। पटवारी का यह बयान इस बात का संकेत है कि विपक्ष इस विवाद को एक बड़े राजनीतिक मुद्दे के रूप में देखेगा।

एक राजनीतिक विरासत और एक नया रास्ता: श्रीनिवास तिवारी कौन थे और उनका क्या योगदान था?
सांसद मिश्रा के बयान ने एक बार फिर श्रीनिवास तिवारी के राजनीतिक कद को चर्चा में ला दिया है। तिवारी 1993 से 2003 तक मध्य प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष रह चुके थे और उन्हें कांग्रेस का एक कद्दावर नेता माना जाता था। अपनी कठोरता और ईमानदारी के कारण उन्हें "सफेद शेर" के नाम से भी जाना जाता था।

श्रीनिवास तिवारी कौन थे और उनका रीवा की राजनीति में क्या योगदान था? तिवारी का रीवा की राजनीति में एक बड़ा योगदान रहा है। वे अपनी पार्टी और अपने क्षेत्र दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण आवाज थे। उनका निधन 19 जनवरी 2018 को 91 वर्ष की उम्र में हुआ था। उनकी राजनीतिक विरासत को उनके पोते सिद्धार्थ तिवारी ने आगे बढ़ाया, लेकिन उनका रास्ता अलग था। सिद्धार्थ तिवारी 18 अक्टूबर 2023 को कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। यह एक ऐसा फैसला था जिसने सभी को चौंका दिया था, क्योंकि वे एक ऐसे परिवार से आते थे जो दशकों तक कांग्रेस के प्रति समर्पित रहा था।

बदलते समीकरण और चुनौतियाँ: सिद्धार्थ तिवारी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में क्यों आए?
सिद्धार्थ तिवारी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में क्यों आए? यह सवाल रीवा और मध्य प्रदेश की राजनीति में आज भी चर्चा का विषय है। उनके भाजपा में शामिल होने के कई कारण माने जाते हैं, जिनमें कांग्रेस में उनकी उपेक्षा और भाजपा में बेहतर अवसर की तलाश शामिल है। हालांकि, भाजपा में आने के बाद भी उनकी राह आसान नहीं रही। जनार्दन मिश्रा जैसे वरिष्ठ नेताओं से उनका टकराव यह बताता है कि नई पार्टी में भी उन्हें अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। यह विवाद न केवल दो नेताओं के बीच का है, बल्कि यह रीवा की राजनीति में बदल रहे समीकरणों और आने वाली चुनौतियों को भी दिखाता है। सांसद मिश्रा का बयान इस बात का भी संकेत है कि भाजपा अपनी पार्टी के भीतर ही प्रतिद्वंदियों को कमजोर करने की कोशिश कर रही है, भले ही इसके लिए उन्हें कांग्रेस के एक दिवंगत नेता पर हमला करना पड़े। यह राजनीतिक ड्रामा अभी खत्म नहीं हुआ है, और आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह किस दिशा में जाता है।

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