शेर की तरह दहाड़े 'शेरा' : षड्यंत्र का हुआ अंत! कोर्ट ने लौटाया ब्राह्मण समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय त्रिपाठी का सम्मान; राजीव सिंह शेरा की पैरवी ने विंध्य में रचा इतिहास
ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा के सबसे चर्चित राजनिवास (सर्किट हाउस) कांड में मंगलवार को एक बड़ा कानूनी घटनाक्रम सामने आया। जहाँ एक ओर मुख्य आरोपी महंत सीताराम को उसकी दरिंदगी के लिए 'अंतिम सांस' तक जेल की सजा सुनाई गई, वहीं दूसरी ओर ब्राह्मण समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय त्रिपाठी के लिए यह दिन 'सत्य की जीत' बनकर आया। अदालत ने संजय त्रिपाठी सहित तीन अन्य को सभी आरोपों से पूरी तरह दोषमुक्त (Acquitted) घोषित कर दिया है।


28 मार्च 2022 की वो घटना जिसने रीवा को शर्मसार किया
घटनाक्रम के अनुसार, 28 मार्च 2022 को रीवा सर्किट हाउस के कमरा नंबर-4 में एक नाबालिग किशोरी को नशीली शराब पिलाकर उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था। इस मामले में रसूखदारों के नाम आने से यह प्रदेश का सबसे बड़ा मुद्दा बन गया था।
चुनौतीपूर्ण रहा अभियोजन का सफर
पुलिस ने इस मामले को साबित करने के लिए 22 गवाह और 140 दस्तावेजी सबूत पेश किए। डीएनए रिपोर्ट और सीसीटीवी फुटेज ने मुख्य दोषियों को घेरने में अहम भूमिका निभाई। 5 दिनों तक चली तीखी बहस के बाद अदालत ने दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया।

अधिवक्ता राजीव सिंह परिहार (शेरा) की दलीलों ने पलटा केस
इस केस में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव सिंह परिहार (शेरा सिंह) की रही। उन्होंने संजय त्रिपाठी और पप्पू उर्फ रवि शंकर शुक्ला का पक्ष अदालत के सामने बेहद मजबूती से रखा।
सम्मान की हुई वापसी
संजय त्रिपाठी के खिलाफ धारा 120(B), 376(D) और पॉक्सो एक्ट जैसी गंभीर धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया था। अधिवक्ता राजीव सिंह परिहार (शेरा) ने अदालत में कानूनी बारीकियों और साक्ष्यों के अभाव को उजागर किया। उन्होंने साबित किया कि संजय त्रिपाठी को इस मामले में गलत तरीके से घसीटा गया था।
राजीव सिंह परिहार (शेरा) का कहना है: "माननीय न्यायालय के इस फैसले ने न केवल संजय त्रिपाठी को न्याय दिया है, बल्कि उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा को भी बहाल किया है। यह सत्य की असत्य पर जीत है।"
22 गवाह और 140 दस्तावेज: ऐसे चला कानूनी संघर्ष
28 मार्च 2022 को रीवा सर्किट हाउस के कमरा नंबर-4 में हुई उस शर्मनाक घटना के बाद पूरा मध्य प्रदेश आक्रोशित था। पुलिस ने इस मामले में 22 गवाहों के बयान दर्ज किए और 140 दस्तावेजी सबूत अदालत में पेश किए। डीएनए रिपोर्ट और तकनीकी साक्ष्यों ने मुख्य दोषियों को सलाखों के पीछे पहुँचाने में मदद की, लेकिन संजय त्रिपाठी जैसे निर्दोष व्यक्तियों के लिए अधिवक्ता राजीव सिंह 'शेरा' की दलीलें ढाल बनकर खड़ी रहीं।
जिन्हें मिली 'अंतिम सांस' तक की जेल: दोषियों की पूरी जानकारी
अदालत ने साक्ष्यों के आधार पर माना कि इन पांच लोगों ने न केवल जघन्य अपराध किया, बल्कि मानवता को भी शर्मसार किया। इन सभी को 'शेष प्राकृतिक जीवन' (जब तक जीवित रहेंगे तब तक जेल) की सजा सुनाई गई है:
- महंत सीताराम : घटना का मुख्य सूत्रधार और रसूखदार पाखंडी बाबा।
- विनोद पांडे: सामूहिक दुष्कर्म का सहभागी और साजिशकर्ता।
- धीरेंद्र मिश्रा: अपराध में सक्रिय संलिप्तता।
- अंशुल मिश्रा: दरिंदगी में शामिल दोषी।
- मोनू पयासी: जघन्य अपराध का हिस्सा।
इन सभी दोषियों पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। जुर्माना न भरने की स्थिति में इन्हें अतिरिक्त कारावास भुगतना होगा।
जिन्हें मिली 'ससम्मान दोषमुक्ति': कोर्ट ने किया बरी
इस मामले में सबसे बड़ी खबर ब्राह्मण समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय त्रिपाठी और उनके साथियों को लेकर आई। अदालत ने पाया कि इनके विरुद्ध लगाए गए आरोप आधारहीन थे और साक्ष्यों का पूरी तरह अभाव था। इन्हें बाइज्जत बरी किया गया है:
- संजय त्रिपाठी (राष्ट्रीय अध्यक्ष, ब्राह्मण समाज): कोर्ट ने इन्हें सभी धाराओं से मुक्त कर ससम्मान बरी कर दिया।
- पप्पू उर्फ रवि शंकर शुक्ला: इनके विरुद्ध भी कोई ठोस सबूत नहीं मिले, ससम्मान बरी।
- जानवी दुबे: साक्ष्य के अभाव में अदालत ने दोषमुक्त किया।
- तौसीद अंसारी: इन्हें भी न्यायालय ने निर्दोष पाते हुए क्लीन चिट दी।
विंध्य में चर्चा का विषय बनी राजीव सिंह 'शेरा' की पैरवी
संजय त्रिपाठी और रवि शंकर शुक्ला की दोषमुक्ति में वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव सिंह परिहार (शेरा सिंह) की पैरवी सबसे अहम रही। उन्होंने कोर्ट में अभियोजन के उन दावों को चुनौती दी जिनमें इन लोगों को षड्यंत्र का हिस्सा बताया गया था। राजीव सिंह शेरा ने तर्क दिया कि संजय त्रिपाठी को केवल सामाजिक रंजिश के कारण इस मामले में घसीटा गया था।
उनकी दलीलों और कानूनी बारीकियों को स्वीकार करते हुए न्यायाधीश ने संजय त्रिपाठी की प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित किया। फैसले के बाद समर्थकों ने इसे सत्य की सबसे बड़ी जीत बताया है। जिस तरह से उन्होंने 140 दस्तावेजों और 22 गवाहों के बीच से अपने मुवक्किलों के लिए निर्दोष होने का रास्ता निकाला, उसे एक बड़ी कानूनी कामयाबी माना जा रहा है। संजय त्रिपाठी के समर्थकों और ब्राह्मण समाज ने इस फैसले का स्वागत करते हुए इसे 'दूध का दूध और पानी का पानी' होना बताया है।
न्याय का संदेश: विंध्य की धरा पर सत्य की जीत
यह फैसला एक बड़ा उदाहरण है कि भारत की न्याय प्रणाली साक्ष्यों पर चलती है। जहाँ एक ओर रसूखदार 'महंत' के तिलक के पीछे छिपे चेहरे को बेनकाब कर उसे सलाखों के पीछे भेजा गया, वहीं दूसरी ओर संजय त्रिपाठी जैसे प्रतिष्ठित व्यक्ति को झूठे आरोपों के जाल से बाहर निकाला गया।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
Q1. रीवा कांड में कुल कितने लोग बरी हुए? कुल 9 आरोपियों में से 4 लोग (संजय त्रिपाठी, रवि शंकर शुक्ला, जानवी दुबे और तौसीद अंसारी) बरी हुए हैं।
Q2. महंत सीताराम को क्या सजा मिली है? उसे शेष प्राकृतिक जीवन यानी जब तक उसकी अंतिम सांस है, तब तक जेल में रहने की सजा (आजीवन कारावास) मिली है।
Q3. संजय त्रिपाठी के वकील कौन थे? उनकी ओर से विख्यात वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव सिंह परिहार (शेरा सिंह) ने पैरवी की।
Q4. क्या दोषियों पर जुर्माना भी लगा है? हाँ, सभी 5 दोषियों पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है।
Q5. यह घटना कब हुई थी? यह घटना 28 मार्च 2022 को रीवा सर्किट हाउस (राजनिवास) के कमरा नंबर-4 में हुई थी।