भ्रष्टाचार या लापरवाही? CM राइज स्कूल में मिड डे मील में दाल-सब्जी के नाम पर पानी परोसा, चावल भी कच्चा; कलेक्टर ने मांगा जवाब

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) मध्य प्रदेश के रीवा जिले के चाकघाट स्थित सीएम राइज स्कूल से सामने आया एक वीडियो सरकारी स्कूलों में चल रही मिड डे मील योजना की जमीनी हकीकत को उजागर करता है। यह वीडियो दिखाता है कि कैसे बच्चों को पोषण के नाम पर सिर्फ औपचारिकता निभाई जा रही है, जिससे उनके स्वास्थ्य और भविष्य पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। इस घटना ने न केवल स्थानीय प्रशासन बल्कि राज्य सरकार की भी जवाबदेही पर बड़े सवाल खड़े किए हैं।
वायरल वीडियो: लापरवाही की खुली पोल
सामने आए वीडियो में साफ तौर पर देखा जा सकता है कि बच्चों को जो दाल परोसी जा रही है, वह लगभग पानी जैसी है, जिसमें दाल के नाम पर कुछ भी नजर नहीं आ रहा। इसी तरह सब्जी में भी आलू या कोई ठोस सामग्री नहीं थी, वह भी सिर्फ पानी जैसी दिख रही थी। इतना ही नहीं, जो चावल दिया गया था, वह भी अधपका था, जिसे खाना मुश्किल हो रहा था।
वीडियो में सबसे चौंकाने वाला पल तब आया जब खाना बांट रही महिला को कैमरे की भनक लगी। घबराहट में उसने बच्चों को खाना देने के बजाय दाल और सब्जी के बर्तनों से पानी निकालकर फेंकना शुरू कर दिया। यह हरकत साफ तौर पर दर्शाती है कि उन्हें अपनी लापरवाही का पूरा ज्ञान था और वे इसे छिपाने का प्रयास कर रही थीं। यह घटना सीधे तौर पर बच्चों के निवाले से खिलवाड़ का मामला है।
तीन तस्वीरों में देखिए मिड डे मील की क्वालिटी...




बच्चों की आपबीती: 'जानवरों के भी लायक नहीं' खाना
स्कूल के बच्चों ने स्वयं बताया कि उन्हें जो खाना दिया गया था, वह खाने लायक नहीं था। चावल अधपका था और दाल-सब्जी पानी की तरह थी। वीडियो में एक और दुखद दृश्य दिखाई देता है, जहां कुछ बच्चों ने परोसा गया खाना खुद न खाकर गाय को खिला दिया। उन्होंने अपनी निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि "यह खाना जानवरों को भी देने लायक नहीं है।" यह स्थिति बेहद शर्मनाक है और बताती है कि कैसे एक महत्वपूर्ण पोषण योजना अपनी मूल भावना से भटक गई है। यह बच्चों के स्वास्थ्य पर सीधा असर डाल रहा है और उनके शारीरिक-मानसिक विकास में बाधा डाल रहा है।
स्थानीय लोगों के आरोप: 'बंदरबांट' और योजना की विफलता
चाकघाट गांव के स्थानीय निवासी शिवानंद द्विवेदी ने इस मामले पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि सीएम राइज स्कूल में बच्चों को ऐसा भोजन परोसा जा रहा है, जो जानवरों के भी खाने लायक नहीं है। द्विवेदी ने यह भी दावा किया कि यह केवल एक स्कूल का मामला नहीं है, बल्कि ज्यादातर सरकारी स्कूलों में मिड डे मील की स्थिति ऐसी ही है।
शिवानंद ने सीधे तौर पर शासन पर करोड़ों रुपए खर्च करने के दावे पर सवाल उठाया और आरोप लगाया कि "बच्चों के निवाले का बजट ऊपर से नीचे तक बंदरबांट का शिकार हो रहा है।" यह आरोप भ्रष्टाचार की ओर इशारा करते हैं, जहां बच्चों के हिस्से का पैसा बीच में ही गायब हो जाता है, जिससे उन्हें खराब गुणवत्ता वाला भोजन मिलता है। यह दर्शाता है कि कैसे मिड डे मील योजना में भ्रष्टाचार बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ कर रहा है।
प्रशासन का रुख: कलेक्टर और डीईओ के निर्देश
मामले की गंभीरता को देखते हुए रीवा कलेक्टर प्रतिभा पाल ने तत्काल संज्ञान लिया। उन्होंने पूरे मामले की लिखित रिपोर्ट मांगी है और जांच के निर्देश दिए हैं। कलेक्टर ने यह भी निर्देश दिए हैं कि जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) संबंधित स्कूल का दौरा करें और सभी समूहों द्वारा स्कूलों में बच्चों को दिए जाने वाले भोजन की गुणवत्ता जांचने के लिए सैंपल लें। यह कदम पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
वहीं, रीवा के डीईओ रामराज मिश्रा ने बताया कि वीडियो की जांच कर नोटिस जारी किया जाएगा और कार्रवाई के लिए वरिष्ठ अधिकारियों को भेजा जाएगा। उन्होंने यह भी दोहराया कि बच्चों को अच्छी गुणवत्ता वाला पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने के निर्देश हैं। हालांकि, ये निर्देश जमीन पर कितने प्रभावी हैं, यह इस घटना से साफ जाहिर होता है।
मध्यान भोजन योजना: उद्देश्य और नियम क्या कहते हैं?
भारत में मध्यान भोजन योजना (Mid Day Meal Scheme) 15 अगस्त 1995 को शुरू की गई थी। इस योजना का मुख्य उद्देश्य देश में 6-14 वर्ष के बच्चों को दोपहर का मुफ्त पका हुआ भोजन उपलब्ध कराना है। यह योजना सरकारी स्कूलों और आंगनबाड़ियों में चलाई जाती है। इसके प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
- भूख और कुपोषण को कम करना: यह बच्चों को आवश्यक पोषण प्रदान कर कुपोषण से लड़ने में मदद करता है।
- स्कूल अटेंडेंस बढ़ाना: मुफ्त भोजन बच्चों को स्कूल आने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिससे नामांकन और उपस्थिति दर में वृद्धि होती है।
- शिक्षा गुणवत्ता में सुधार: पोषणयुक्त भोजन बच्चों की सीखने की क्षमता को बढ़ाता है और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करता है।
- शारीरिक-मानसिक विकास: पर्याप्त पोषण बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए आवश्यक है।
- तमिलनाडु देश का पहला राज्य था जिसने मध्यान्ह भोजन देना शुरू किया था, जो इस योजना की सफलता का एक प्रारंभिक उदाहरण है।
मेनू और पोषण मानक: क्या मिलता है और क्या मिलना चाहिए?
मध्यान भोजन योजना के तहत बच्चों को मिलने वाले भोजन का मेनू और पोषण मानक निर्धारित किए गए हैं, ताकि उन्हें पर्याप्त कैलोरी और प्रोटीन मिल सके।
प्राथमिक छात्रों (कक्षा 1-5) के लिए:
- प्रतिदिन 450 कैलोरी और 12 ग्राम प्रोटीन वाला भोजन।
- इसमें 100 ग्राम खाद्यान्न (चावल/गेहूं), 20 ग्राम प्रोटीन, 50 ग्राम पत्तेदार सब्जियां और 5 ग्राम तेल शामिल होना चाहिए।
- मिडिल क्लास के छात्रों (कक्षा 6-8) के लिए:
- प्रतिदिन 700 कैलोरी और 20 ग्राम प्रोटीनयुक्त भोजन।
- इसमें 150 ग्राम खाद्यान्न, 30 ग्राम प्रोटीन, 75 ग्राम पत्तेदार सब्जियां और 7.5 ग्राम तेल शामिल होना चाहिए।
मेनू में आमतौर पर चावल, दाल, हरी सब्जियां और रोटी/पूरी शामिल रहती हैं। रीवा के चाकघाट स्कूल में जो भोजन परोसा गया, वह इन निर्धारित मानकों से कोसों दूर था, जिससे बच्चों को अपेक्षित पोषण नहीं मिल पा रहा है। यह स्थिति सरकारी स्कूलों में बच्चों को कैसा खाना मिल रहा है इस पर गंभीर सवाल उठाती है।
आगे की राह: जवाबदेही और सुधार की आवश्यकता
- चाकघाट के सीएम राइज स्कूल की यह घटना सिर्फ एक बानगी है। यह पूरे सिस्टम में व्याप्त कमियों और भ्रष्टाचार को उजागर करती है। भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कई कदम उठाने की आवश्यकता है:
- सख्त जांच और कार्रवाई: दोषियों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाए, ताकि एक नजीर पेश हो।
- नियमित गुणवत्ता जांच: भोजन की गुणवत्ता की नियमित और अप्रत्याशित जांच होनी चाहिए, जिसमें खाद्य विशेषज्ञों की भागीदारी हो।
- स्थानीय भागीदारी और निगरानी: अभिभावकों और स्थानीय समुदाय को मिड डे मील की निगरानी में शामिल किया जाए।
- आधुनिक रसोई और भंडारण: स्वच्छता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए स्कूलों में आधुनिक रसोई और सुरक्षित भंडारण की व्यवस्था हो।
- शिकायत निवारण तंत्र: एक प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र स्थापित किया जाए, ताकि बच्चे या उनके अभिभावक आसानी से शिकायत दर्ज करा सकें।
- बजट का उचित उपयोग: यह सुनिश्चित किया जाए कि बच्चों के पोषण के लिए आवंटित बजट का पूरी तरह और ईमानदारी से उपयोग हो।
- यह सुनिश्चित करना सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है कि कोई भी बच्चा भूखा न रहे और उसे पौष्टिक भोजन मिले, क्योंकि यह सीधे तौर पर उनके भविष्य और देश के विकास से जुड़ा है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
Q1: रीवा के चाकघाट सीएम राइज स्कूल में मिड डे मील में क्या समस्या पाई गई?
A1: बच्चों को दाल और सब्जी के नाम पर पानी परोसा गया था, जिसमें दाल या सब्जी की सामग्री नहीं थी, और चावल अधपका था।
Q2: बच्चों ने खाने की गुणवत्ता पर क्या प्रतिक्रिया दी?
A2: बच्चों ने खाने को अधपका और पानी जैसा बताया, और कहा कि यह "जानवरों के भी लायक नहीं" है। कुछ बच्चों ने तो इसे गाय को भी खिला दिया।
Q3: इस मामले में स्थानीय लोगों ने क्या आरोप लगाए हैं?
A3: स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया है कि यह केवल एक स्कूल का मामला नहीं है, बल्कि ज्यादातर सरकारी स्कूलों का यही हाल है, और बच्चों के निवाले का बजट ऊपर से नीचे तक "बंदरबांट" का शिकार हो रहा है।
Q4: रीवा कलेक्टर ने इस मामले में क्या कार्रवाई की है?
A4: कलेक्टर प्रतिभा पाल ने पूरे मामले की लिखित रिपोर्ट मांगी है और जांच के निर्देश दिए हैं। उन्होंने DEO को स्कूल का दौरा करने और भोजन के सैंपल लेने के भी निर्देश दिए हैं।
Q5: मध्यान भोजन योजना का मुख्य उद्देश्य क्या है?
A5: मध्यान भोजन योजना का मुख्य उद्देश्य 6-14 वर्ष के बच्चों में भूख और कुपोषण को कम करना, स्कूल अटेंडेंस बढ़ाना, शिक्षा की गुणवत्ता सुधारना और उनके शारीरिक-मानसिक विकास को सुनिश्चित करना है।