रीवा में 'साइकिल' पर कमिश्नर, 'कार' पर अधिकारी! यह कैसा 'स्वच्छता अभियान'?

 
gvhh
रीवा संभाग कमिश्नर बीएस जामोद की सप्ताह में एक दिन साइकिल या पैदल दफ्तर आने की अपील का अधिकारियों पर कोई असर नहीं दिखा। कलेक्ट्रेट में रियलिटी चेक में अधिकांश वाहन से आते दिखे।

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा संभाग के कमिश्नर बीएस जामोद ने मंगलवार को एक अनूठी पहल करते हुए सभी सरकारी कर्मचारियों से सप्ताह में कम से कम एक दिन साइकिल या पैदल दफ्तर आने की अपील की थी। उनका मकसद था स्वास्थ्य सुधार और पर्यावरण संरक्षण। लेकिन, इस अपील का अधिकारियों और कर्मचारियों पर खास असर नहीं दिखा। हकीकत यह रही कि कमिश्नर के इस आह्वान को अधिकांश ने अनसुना कर दिया। कलेक्ट्रेट में जब 'रियलिटी चेक' किया गया, तो नजारा कुछ और ही बयां कर रहा था। यह घटना एक बार फिर दर्शाती है कि सरकारी तंत्र में बदलाव लाना कितना मुश्किल हो सकता है।

fgfg

कलेक्ट्रेट का 'रियलिटी चेक': पार्किंग फुल, साइकिलें गायब
कमिश्नर की अपील के बावजूद, रीवा कलेक्ट्रेट परिसर में मंगलवार को भी प्रमुख विभागों की पार्किंग पूरी तरह भरी हुई नजर आई। यहाँ खड़े वाहनों में इक्का-दुक्का साइकिलें ही दिखीं, जो इस पहल की जमीनी हकीकत को उजागर करती हैं। अधिकतर अधिकारी और कर्मचारी रोज की तरह अपनी कार और बाइक से ही दफ्तर पहुंचे। कुछ तो ऐसे भी थे जिन्होंने कैमरा देखकर जानबूझकर अपने वाहन की स्पीड बढ़ा दी, शायद इसलिए ताकि वे नजरों से बच सकें और अपनी 'वाहन-प्रेम' को छिपा सकें। यह स्थिति बताती है कि कमिश्नर की अपील को गंभीरता से नहीं लिया गया।

कमिश्नर खुद पहुंचे साइकिल से: स्वास्थ्य और पर्यावरण का संदेश
कमिश्नर बीएस जामोद ने अपनी अपील का पालन खुद करके एक मिसाल पेश की। वे मंगलवार को स्वयं साइकिल चलाकर दफ्तर पहुंचे। इस दौरान उन्होंने कहा, "इस पहल का उद्देश्य यह है कि अधिकारी और कर्मचारी सप्ताह में कम से कम एक दिन साइकिल या पैदल चलें। इससे उनका शरीर स्वस्थ रहेगा और शहर में प्रदूषण भी कम होगा।" उन्होंने आगे कहा, "मैंने खुद इसका पालन किया है और बाकी लोगों से भी यही उम्मीद थी।" कमिश्नर का यह कदम निश्चित रूप से सराहनीय है, लेकिन उनके अधीनस्थ अधिकारियों और कर्मचारियों ने उनकी इस उम्मीद पर पानी फेर दिया।

अधिकारियों के बहाने: 'भूल गया था' बना नया ट्रेंड
जब एमपीआरडीसी (MPRDC) के अधिकारी एसके त्रिपाठी अपनी कार से उतरते नजर आए और उनसे इस बारे में पूछा गया, तो उनका जवाब दिलचस्प था। उन्होंने कहा, "मैं भूल गया था कि आज साइकिल से आना है। इसलिए आदतन कार से ही निकल पड़ा।" यह बहाना अब सोशल मीडिया पर 'नया ट्रेंड' बन सकता है, क्योंकि यह दिखाता है कि कैसे अधिकारी अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए आसान बहाने ढूंढ लेते हैं। यह स्थिति बताती है कि कमिश्नर की अपील को गंभीरता से नहीं लिया गया और इसे केवल एक औपचारिकता मान लिया गया।

कमिश्नर बीएस जामोद खुद साइकिल से कार्यालय पहुंचे।

कमिश्नर बीएस जामोद खुद साइकिल से कार्यालय पहुंचे।

ज्यादातर अधिकारी या कर्मचारी कार लेकर पहुंचे

क्यों बेअसर रही यह पहल?

कमिश्नर की यह पहल क्यों बेअसर रही, इसके कई कारण हो सकते हैं। पहला, शायद अधिकारियों और कर्मचारियों को इस अपील के महत्व के बारे में पूरी तरह से समझाया नहीं गया। दूसरा, हो सकता है कि उन्हें साइकिल या पैदल आने के लिए पर्याप्त प्रोत्साहन या सुविधाएँ न मिली हों। तीसरा, यह भी संभव है कि यह सिर्फ एक आदत का मामला हो, जिसे बदलना आसान नहीं होता। चौथा, कुछ अधिकारी शायद अपनी 'स्टेटस सिंबल' को छोड़ना नहीं चाहते थे, क्योंकि कार या बाइक से आना उनके लिए एक प्रतिष्ठा का विषय हो सकता है। यह दर्शाता है कि केवल अपील करने से ही बदलाव नहीं आता, बल्कि इसके लिए एक मजबूत इच्छाशक्ति और ठोस योजना की आवश्यकता होती है।

क्या रीवा के अधिकारी बदलेंगे अपनी आदतें?
कमिश्नर बीएस जामोद की यह पहल स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए महत्वपूर्ण थी। साइकिल चलाने या पैदल चलने से न केवल शरीर स्वस्थ रहता है, बल्कि वाहनों से होने वाला प्रदूषण भी कम होता है। ऐसे समय में जब रीवा में प्रदूषण एक बड़ी समस्या बन रहा है, ऐसी पहलें बहुत जरूरी हैं। लेकिन, सवाल यह है कि क्या रीवा के अधिकारी और कर्मचारी अपनी आदतों को बदलेंगे और कमिश्नर की अपील का सम्मान करेंगे? या यह पहल भी सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह जाएगी? यह देखना होगा कि आने वाले दिनों में प्रशासन इस दिशा में कोई और कदम उठाता है या नहीं।

पर्यावरण और स्वास्थ्य पर असर: एक बड़ी चुनौती
इस पहल का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण को बचाना और कर्मचारियों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाना था। वाहनों के बढ़ते उपयोग से शहरों में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याएं पैदा हो रही हैं। कमिश्नर की अपील एक छोटा, लेकिन महत्वपूर्ण कदम था जो इस दिशा में एक सकारात्मक बदलाव ला सकता था। लेकिन, अधिकारियों की उदासीनता ने इस प्रयास को कमजोर कर दिया है। रीवा के लिए यह एक बड़ी चुनौती है कि वह अपने पर्यावरण को कैसे बचाए और नागरिकों के स्वास्थ्य को कैसे सुनिश्चित करे, खासकर जब सरकारी कर्मचारी ही ऐसी पहलों को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं।

कलेक्ट्रेट में अधिकारी कर्मचारियों की बाइक पार्किंग भी फुल नजर आई

कलेक्ट्रेट में अधिकारी कर्मचारियों की बाइक पार्किंग भी फुल नजर आई

Related Topics

Latest News